राकेश अचल
ये कहावत पुरानी होकर भी सदाबहार है। भारत के प्रश्नाकुल समाज के लिए तो ये रामबाण है। कोई भी, कभी भी इसका इस्तेमाल कर सकता है। माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा अभिनेता अक्षय कुमार से साक्षात्कार के बाद ये सवाल मेरे मन में भी दूसरे असंख्य भारतीयों के मन की तरह कौंधा की- आपने “तेली का काम तमोली से क्यों कराया?” क्या भारत में पत्रकारों का टोटा पड़ गया है, या आपको भारत के पत्रकारों से भय लगता है?
माननीय प्रधानमंत्री जी को ये सलाह किसने दी या उन्होंने ये फैसला खुद किया, संघ जाने या पार्टी प्रमुख शाह, लेकिन हम तो इतना जानते हैं कि- बात कुछ हजम नहीं हुई। हमारे अभिनेता अभिनय के लिए बने हैं। वे पीर, बावर्ची, भिश्ती और खर यानी चाहे जिसकी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं, लेकिन वास्तविकता से उनका कोई वास्ता नहीं होता। उनका काम निर्देशक के इशारे पर काम करना होता है, यानी वे कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
अक्षय कुमार इस दौर में मेरे ही नहीं, बल्कि आम भारतीयों के पसंदीदा अभिनेता हैं, उन्होंने हमेशा समाज के सरोकारों से जुड़े विषयों पर बनी फिल्मों में साहसिक अभिनय किया है। माननीय प्रधानमंत्री जी के साथ साक्षात्कार लेते समय भी एक पत्रकार की भूमिका में वे जंच रहे थे, लेकिन वे भारतीय पत्रकार कम गोदी मीडिया के प्रतिनिधि ज्यादा लग रहे थे। लगना भी चाहिए, बेचारे जो वास्तव में हैं नहीं, वो लग कैसे सकते हैं? उन्हें तो जो सवाल लिखकर दे दिए गए थे, वे सवाल उन्होंने पूछ लिए। वे प्रतिप्रश्न कैसे कर सकते थे?
भारत में ऐसे विरले ही प्रधानमंत्री हुए होंगे (हुए भी हैं या नहीं ?) जिन्होंने किसी अभिनेता पत्रकार को अपना साक्षात्कार दिया होगा। ये एक नई परम्परा है और निश्चित ही दूषित परम्परा है। इससे भारत की पत्रकारिता का अपमान हुआ है। अक्षय कुमार के साथ बैठने में गौरवान्वित अनुभव करने वाले हमारे पंत-प्रधान को देश के दूसरे नामचीन्ह पत्रकारों के साथ बैठने में हिचक क्यों है? क्या प्रधान जी के पास इतना साहस नहीं है कि वे असल पत्रकारों से रूबरू हो सकें?
बहरहाल समरथ को कोई दोष दे नहीं सकता, हम भी नहीं दे सकते। हम केवल सवाल कर सकते हैं, सो कर रहे हैं। सवाल प्रतिपक्ष भी करता है किन्तु एक पत्रकार और एक विपक्ष के सवालों में फर्क होता है। विपक्ष सत्ता में आने के लिये सवाल करता है लेकिन पत्रकार सत्ता की शुचिता बनाये रखने के लिए सवाल करता है। दोनों के सवाल करने में भेद है। ऐसे में यदि कोई अभिनेता पत्रकार का अभिनय करता है तो इससे भारतीय पत्रकारिता को तो बुरा लगता ही है। वैसे पंत प्रधान ने सत्ता में भी तेली का काम तमोलियों से खूब कराया। यानि जो स्नातक भी नहीं थे, उन्हें उच्च शिक्षा मंत्री तक बना दिया था।
भगवान पंत प्रधान के साथ राजनीति में काम करने वाले दूसरे नेताओं और अभिनेताओं को सद्बुद्धि दें कि वे पत्रकारिता के पेशे को विद्रूप न बनाएं, उस पर अतिक्रमण न करें, अन्यथा एक दिन लोकतंत्र वापस राजतंत्र या तानाशाही की और निकल लेगा। आपकी आप जाने, मैंने तो अपने मन की बात आपसे कह दी।