पिछले कुछ दिनों से हम इस कॉलम में सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश और निजीकरण के मुद्दे को लेकर बात कर रहे हैं। अभी तक के अनुभव बता रहे हैं कि सरकारें चाहे कांग्रेस के नेतृत्व वाली रही हों या भाजपा के। सभी ने 1991 के उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर के बाद बाजार की घुसपैठ को बढ़ाने और आर्थिकी को ज्यादा से ज्यादा निजी क्षेत्र पर निर्भर बनाते जाने का ही काम किया है।
गुरुवार को संसद में प्रस्तुत वर्ष 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में ऐसी कई बातें हैं जो इस धारणा को न सिर्फ और आगे बढ़ाती हैं, बल्कि इसके दायरे और आयामों को भी और विस्तार देती हैं। ताजा सर्वेक्षण में प्रस्तावना के बाद पहले अध्याय का शीर्षक ही सब कुछ कह देता है। यह शीर्षक है- ‘’परिवर्तन का दौर: विकास, रोजगार और मांग में तेजी लाने का मुख्य प्रेरक निजी निवेश’’
इस अध्याय की शुरुआत जिस बात से हुई है वह सुनिये- ‘’पिछले पांच वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने अच्छा प्रदर्शन किया है। ऊपर से नीचे की ओर हितलाभ संचरण के कई रास्ते खोल कर, सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि समष्टि आर्थिक स्थिरता के लाभ पिरामिड के निचले स्तर तक पहुंचें। जैसाकि प्रधानमंत्री ने निर्धारित किया है, भारत को वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का उद्देश्य हासिल करने के लिए, वास्तविक संदर्भ में 8 फीसदी की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर कायम रखने की जरूरत है।‘’
सर्वे आगे कहता है- ‘’अंतर्राष्ट्रीय अनुभव, विशेषकर उच्च विकास दर वाली पूर्वी एशिया की अर्थव्यवस्थाओं का अनुभव यह सुझाव देता है कि ऐसा विकास केवल बचत, निवेश और निर्यात के सद्चक्र से संचालित विकास मॉडल से ही बनाए रखा जा सकता है जिसे अनुकूल जनांकीय दौर से मदद मिले। निवेश, विशेषकर निजी क्षेत्र से आया निवेश, वह महत्वपूर्ण कारक है जो मांग को संचालित करता है, क्षमता निर्माण करता है, श्रम उत्पादकता में वृद्धि करता है, नई प्रौद्योगिकी का आगम सुसाध्य बनाता है, सृजनात्मक ध्वंस (Creative Distruction) करता है और नौकरियां सृजित करता है।‘’
अगर आप भारत को 2024-25 तक पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने के प्रधानमंत्री के सपने को साकार करने का सूत्र देती आर्थिक सर्वेक्षण की ‘सृजनात्मक ध्वंस’ वाली इस भाषा से डर गए हों,जैसाकि खुद मेरे साथ भी हुआ है, तो आपके लिए मोटी बात यह है कि इस सर्वे में निजी क्षेत्र के निवेश, जिसे दूसरे शब्दों में आप निजी क्षेत्र पर निर्भरता भी कह सकते हैं, को भारत की आर्थिक समृद्धि की चाबी बताया गया है। तो पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था वाले भारत को देखने के लिए आप अपनी आंखों और माथे पर निजी क्षेत्र का चश्मा और टोपी पहनने की तैयारी रखें।
राजकपूर की सर्वकालिक फिल्म ‘श्री420’ (1955) में महान गीतकार शैलेंद्र ने बहुत चर्चित गीत लिखा था जिसकी पंक्तियां थीं- मेरा जूता है जापानी/ ये पतलून इंगलिस्तानी/ सर पे लाल टोपी रूसी/ फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी… इन लाइनों में बस आप अमेरिका और जोड़ लीजिए और चाहें तो आप उसे दिल की जगह भी फिट कर सकते हैं…
क्या लोग थे वो, जिन्होंने 64 साल पहले लिख दिया था- निकल पड़े हैं खुल्ली सड़क पर/ अपना सीना ताने/ मंजिल कहाँ, कहाँ रुकना है/ ऊपरवाला जाने… सचमुच हम निजी क्षेत्र की खुल्ली सड़क पर निकल पड़े हैं, हमें न तो यह पता है कि मंजिल कहां है और न यह पता है कि रुकना कहां है… सब कुछ ऊपरवाले के भरोसे है…
आर्थिक सर्वेक्षण में दूसरा मामला, जिसकी गुरुवार को मीडिया में काफी चर्चा रही वह सरकारी नौकरियों से जुड़ा है। खबरें कह रही थीं कि मोदी सरकार यदि मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन और उनकी टीम की सलाह पर आगे बढ़ती है तो यह संभव है कि देश में रिटायरमेंट की उम्र बढ़कर 70 साल हो जाए। सर्वे में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने को लेकर कई दलीलें देते हुए इसके समर्थन में जर्मनी, अमेरिका, यूके, चीन, जापान सहित कई देशों का उदाहरण भी दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘’भारत में महिला और पुरुषों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेटेंसी) लगातार बढ़ रही है। इसे देखते हुए अन्य देशों के अनुभवों के आधार पर पुरुषों और महिलाओं की रिटायरमेंट उम्र में बढ़ोतरी पर विचार किया जा सकता है। यह पेंशन सिस्टम में व्यावहारिकता बढ़ाने की कुंजी है। रिटायरमेंट उम्र में वृद्धि अनिवार्य है, इसलिए इस परिवर्तन का पहले से संकेत देना आवश्यक है ताकि पेंशन और अन्य रिटायरमेंट प्रावधानों की अग्रिम योजना बनाने में मदद मिले।‘’
यद्यपि सर्वेक्षण में यह साफ नहीं कहा गया है कि रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर कितनी कर दी जाए, लेकिन इसमें इस बात का उल्लेख जरूर किया गया है कि बढ़ती हुई वृद्ध जनसंख्या और पेंशन फंडिंग पर बढ़ते दबाव के कारण बहुत से देशों ने पेंशन योग्य रिटायरमेंट उम्र को बढ़ाना शुरू कर दिया है। इनमें जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं। कई विकसित देशों, जैसे कनाडा, जर्मनी, यू.के. और अमेरिका ने पहले से तय समयतालिका के अनुसार रिटायरमेंट उम्र बढ़ाते रहने के संकेत दिए हैं। जैसे यूके में 2020 तक राज्य पेंशन उम्र पुरुषों और महिलाओं के लिए 66 वर्ष हो जाएगी। वर्ष 26-28 में यह 67 और 2044-46 में 68 वर्ष करने की योजना है।
यानी एक तरफ सरकार की खुद की मंशा सेवा, रोजगार या नौकरी का अधिक से अधिक भार निजी क्षेत्र पर डालने की है और दूसरी तरफ उसे यह सलाह भी दी जा रही है कि वह वर्तमान सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु बढ़ाए, जो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 70 साल भी हो सकती है। ऐसे में आप अंदाज लगाइए कि भविष्य में नौकरी पाना और कितना कठिन, और कितना प्रतिस्पर्धी हो जाएगा। निजी क्षेत्र अपने हिसाब से सेवा शर्तें तय करते हैं, और इधर सरकारें वर्तमान अमले को ही बनाए रखकर नए लोगों या युवाओं के लिए सरकारी नौकरी के दरवाजे करीब करीब बंद करने की राह पर जा रही है।
इसका कारण यह बताया जा रहा है कि 2011 की जनगणना की तुलना में 2041 तक भारत में 19 वर्ष तक के युवाओं की संख्या 41 से घटकर 25 फीसदी रह जाएगी, जबकि 60 वर्ष की आयु वाले लोगों की संख्या 8.6 फीसदी से बढ़कर 16 फीसदी हो जाएगी। समझना कठिन है कि एक तरफ तो राजनीतिक तंत्र में बढ़ती आयु के लोगों को सक्रियता के दायरे से बाहर किया जा रहा है और दूसरी तरफ सरकार के संचालन यानी गवर्नेंस के लिए जिम्मेदार लोगों की उम्र को बढ़ाने की बात हो रही है।
शायद इसीलिए शैलेंद्र ने लिखा होगा- मंजिल कहां, कहां रुकना है, ऊपर वाला जाने…