पर जो हाथी खेत में घुस चुके हैं, उन्‍हें भी तो निकालिये

भारत की पहली स्‍वतंत्र महिला वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमन ने शुक्रवार को संसद में मोदी-02 सरकार का पहला पूर्ण बजट पेश करते हुए एक कहानी सुनाई। उन्‍होंने कहा- ‘’हाथी की भूख मिटाने के लिए धान के खेत के एक छोटे से हिस्‍से से निकाले गए चावल पर्याप्‍त होंगे। लेकिन यदि हाथी खुद उस भूख को मिटाने के लिए खेत में घुस कर फसल को खाना शुरू कर दे तो क्‍या होगा? होगा यह कि हाथी जितना खाएगा, उससे कहीं ज्‍यादा फसल अपने पैरों से कुचलकर बरबाद कर देगा।‘’

सीतारमन ने यह कहानी बजट भाषण के दूसरे भाग में कर संबंधी घोषणाएं पढ़ने के शुरुआत में सुनाई। दरअसल उनका इशारा करों में दी जाने वाले छूट की लगातार बढती अपेक्षाओं की तरफ था। शायद वे कहना चाह रही थीं कि करदाताओं को जितनी छूट मिलनी चाहिए उतनी दी जा चुकी है और अब वे उस हाथी की तरह फसल को चरने का प्रयास न करें, जिसके खेत में घुस जाने से फसल के ही बरबाद होने का खतरा है।

और जैसे ही वित्‍त मंत्री ने प्रत्‍यक्ष करों यानी आयकर छूट को पांच लाख रुपए तक सीमित रखने की बात की, मुझे लगता है टीवी पर बजट देखने वाला अधिकांश दर्शक वर्ग उसी समय उठकर चल दिया होगा। वैसे भी जो वर्ग टीवी पर बजट को देखता है उसमें से ज्‍यादातर वही होता है जिसकी रुचि न तो विकास या जनकल्‍याण की योजनाओं में होती है और न ही सरकार की उन नीतियों में जिनका हमारी अर्थव्‍यवस्‍था पर दूरगामी असर पड़ने वाला हो।

टीवी पर बजट देखने वाला वर्ग बस इसी बात पर टकटकी लगाए रहता है कि वित्‍त मंत्री इनकम टैक्‍स में कितनी छूट दे रही हैं या फिर कौनसा सामान सस्‍ता और कौनसा महंगा होने वाला है। हालां‍कि पिछले कुछ सालों से सरकारें भी चालाक हो गई हैं और वे सस्‍ते और महंगे का ब्‍योरा बजट में देने के चक्‍कर में पड़ती ही नहीं। वो तो प्रत्‍यक्ष करों का ब्‍योरा बताने का बहुत ज्‍यादा दबाव होता है इसलिए सरकार ने अभी इससे पिंड नहीं छुड़ाया है, वरना उसका बस चले तो वह यह ब्‍योरा भी न देकर सिर्फ इतना कह दे कि इसकी विस्‍तृत जानकारी संलग्‍न परिशिष्‍टों में दे दी गई है।

आइये अब बजट के कुछ और बिन्‍दुओं पर बात कर लें। मैं पिछले पांच दिनों से इस कॉलम में देश की अर्थव्‍यवस्‍था के अधिक से अधिक निजीकरण की सरकारी मंशा को केंद्र में रखकर लिख रहा था। निजीकरण को बढ़ावा देने की सरकार की इस मंशा की झलक गुरुवार को संसद में प्रस्‍तुत वर्ष 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में भी देखने को मिली थी। शुक्रवार को निर्मला सीतारमन का बजट इस बात पर मुहर लगाता दिखा।

मुझे लग रहा है कि सरकार देश की आर्थिकी को लेकर किया जाने वाला डिस्‍कोर्स ही बदल देना चाहती है। चुनाव से पहले जब तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी माह में अंतरिम बजट पेश किया था तो उसे भी परंपरागत तरीके से पेश न करते हुए दस बिन्‍दुओं में बांट दिया था। निर्मला सीतारमन ने अपने बजट भाषण में उन बिन्‍दुओं का जिक्र भी किया। लेकिन एक जमाने में दियासलाई, चप्‍पल की बद्दी, जूते के फीते तक के महंगे और सस्‍ते होने का ब्‍योरा देने वाला बजट, फरवरी 2019 तक आते आते दस बिन्‍दुओं में सिमट कर रह गया था और निर्मला सीतारमन ने इस वर्गीकरण को और छोटा करते हुए बजट को मोटे तौर पर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में बांट दिया।

सीतारमन जब ग्रामीण और शहरी भारत के लिहाज से बजट की विशेषताएं और प्रावधान गिना रही थीं तब मुझे 17 वीं लोकसभा का चुनाव संपन्‍न हो जाने के दूसरे दिन 24 मई को, भाजपा मुख्‍यालय में, पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित स्‍वागत और अभिनंदन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया भाषण याद आ गया। उसमें प्रधानमंत्री ने कहा था-  ‘’21वीं सदी में भारत में दो ही जातियां रहेंगी। एक गरीब और दूसरी गरीबी हटाने वाली।… देश इन दो जातियों पर ही केंद्रित होने वाला है।‘’

मैं सोच रहा था कि लोकसभा चुनाव को देश के जातिवादी ढांचे पर करारी चोट बताते हुए प्रधानमंत्री ने इस ‘सामाजिक परिवर्तन’ को जिस तरह ‘आर्थिक परिवर्तन’ के संदर्भ में व्‍याख्‍यायित किया था, उसकी झलक मुझे सीतारमन के बजट में मिलेगी। इस बजट से स्‍पष्‍ट हो सकेगा कि बकौल प्रधानमंत्री देश में जो दो जातियां- गरीब और गरीबी हटाने वाले- बची हैं उन्‍हें यह बजट किस दृष्टि से देखता है।

लेकिन सीतारमन वैसा साहस नहीं दिखा पाईं। हो सकता है उनकी कोई मजबूरी रही हो, शायद इसीलिए वे बजट को गरीब और गरीबी हटाने वाले दो वर्गों या जातियों की दृष्टि से तैयार करने के बजाय ग्रामीण और शहरी खांचे में ही बांट सकीं। इस वर्गीकरण से यह समझना मुश्किल है कि गरीब, जो कि गांव और शहर दोनों जगह मौजूद है, उनके लिए बजट में आश्‍वस्ति का प्रतिशत कितना है और गरीबी हटाने वाले जो आमतौर पर शहरों या कि महानगरों में रहते हैं, गरीबी हटाने में उनकी भूमिका किस तरह सुनिश्चित की गई है।

उलटे मोटे तौर पर देखें तो ‘गरीबी हटाने वालों’ यानि कॉरपोरेट वर्ग को यह बजट सहलाता, पुचकारता ही नजर आता है। उन्‍हें कर्ज देने के लिए इसमें बैंकों को 70 हजार रुपए का फंड देने की बात भी है तो 25 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्‍स का दायरा 200 करोड़ टर्नओवर वालों से बढ़ाकर 400 करोड़ टर्नओवर वालों तक करने का प्रावधान भी। अब 25 फीसदी से ज्‍यादा कॉरपोरेट टैक्‍स देने वाली कंपनियां सिर्फ 0.7 प्रतिशत ही रह जाएंगी।

अलबत्‍ता वित्‍त मंत्री ने 2 से 5 करोड़ रुपये की करयोग्‍य आय वालों पर 3 फीसदी और 5 करोड़ से अधिक करयोग्‍य आय वालों पर 7 फीसदी अधिभार लगाने की बात जरूर की। इसे अमीरों से ज्‍यादा पैसा वसूलने वाला कदम बताया गया है, लेकिन पेट्रोल और डीजल पर अलग अलग मदों में दो रुपये प्रति लीटर अधिभार लगाकर सीतारमन ने ऊपर से लेकर नीचे तक सबको एक ही वार में निपटा दिया।

तो सज्‍जनो, इस बजट कथा में से अब आप अपने लिए खुशफहमी या दुखफहमी ढूंढते रहिए। पता लगाते रहिए कि बजट प्रावधानों और उसकी परिभाषा में कौन गरीब और कौन गरीबी हटाने वाला है। मुझे तो सिर्फ इतना कहना है कि मंत्रीजी आपने जो कहानी सुनाई उसके मुताबिक आप हाथी को भले ही खेत में न घुसने दें, लेकिन जो हाथी ऑलरेडी घुसे हुए हैं और खेत को तहस नहस कर रहे हैं, उन्‍हें भी तो बाहर निकालिये।

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