शनिवार को टीवी चैनलों पर एक और तमाशा हुआ। जिसे खबर बनना चाहिए था वह बात खबर नहीं बनी या नहीं बनने दी गई और जो खबर अभी हवा में ही थी उस पर घंटों लंबे कार्यक्रम चला दिए गए। हवाबाजी पर टिका छूत का रोग एक ‘समर्पित चैनल’ से शुरू हुआ और देखते ही देखते बाकी चैनलों पर भी फैल गया। नतीजा यह हुआ कि असली सवाल हाशिये पर चला गया या फिर उसका जिक्र ही नदारद हो गया।
आपको याद होगा कि शुक्रवार को राहुल गांधी के सलाहकार सैम पित्रोदा के एक बयान को लेकर मीडिया ने काफी बवाल काटा था। पित्रोदा ने पुलवामा आतंकी हत्याकांड को लेकर कहा था कि बाहर से कुछ लोग आएं और कुछ कर जाएं तो उसके लिए आप पूरे देश (पाकिस्तान) को दोषी नहीं ठहरा सकते। उन्होंने इस कांड के बाद भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में की गई एयरस्ट्राइक के सबूत भी मांगे थे।
पित्रोदा के बयान पर भाजपा से लेकर मीडिया तक ने कांग्रेस को नोच खाया था। इसमें भी मीडिया, राजनीतिक दलों से ज्यादा सक्रिय नजर आया था। यह मुद्दा भाजपा के लिए छींके की तरह टूटा था। लेकिन समय का फेर देखिए कि 24 घंटे बीतते बीतते एक छींका कांग्रेस के लिए भी आ टूटा। लेकिन न तो पार्टी उसमें से लुढ़के सियासी मक्खन को ठीक से चख पाई और न ही मीडिया ने उसमें कोई रुचि दिखाई।
हुआ यूं कि भारत पाकिस्तान के इन दिनों चल रहे तनावपूर्ण रिश्तों के बीच पाकिस्तान दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिया गया शुभकामना संदेश वायरल हो गया। खुद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने दुनिया को इसकी जानकारी देते हुए ट्वीट किया कि मोदीजी ने अपने संदेश में लिखा है कि ’मैं (नरेंद्र मोदी) पाकिस्तान के नैशनल डे पर पाकिस्तान की जनता को अपनी बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। यही समय है कि आतंक और हिंसा से मुक्त माहौल में उपमहाद्वीप के लोग लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण, प्रगतिशील और खुशहाल क्षेत्र के लिए साथ मिलकर काम करें।’
जाहिर है पित्रोदा के बयान के बाद कसमसाकर रह जाने और उस बयान से पल्ला झाड़ने वाली कांग्रेस के लिए यह पलटवार का बहुत अच्छा मौका था। सवाल अब भाजपा और मोदी सरकार से बनता था कि, कांग्रेस तो चलो मान लिया कि पाकिस्तान की गोद में बैठ गई है, लेकिन मोदी सरकार क्यों आतंकवाद की इस पनाहगाह से गलबहियां कर रही है।
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पूछा भी कि मोदी जी ने पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर इमरान खान को चोरी-छिपे ‘लव लेटर’ लिखा लेकिन उसमें पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और पाकिस्तानी आतंकी संगठनों व आईएसआई की ओर से किए जा रहे आतंकवाद की चर्चा करना भूल गए। मोदी जी, क्या यहीं आपका राष्ट्रप्रेम है?
सुरजेवाला का कहना था कि- इस देश की जनता की तरफ से हम मोदी जी और अमित शाह जी से पूछना चाहते हैं कि सरकार ने अपने ‘लव लेटर’ में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, दाऊद इब्राहिम और दूसरे आतंकवादियों की बात क्यों नहीं की? क्या यह राष्ट्रहित को नुकसान पहुंचाने वाला मामला नहीं है और क्या इसके लिए प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष को देश से माफी नहीं मांगनी चाहिए?
मामला बढ़ा तो विदेश मंत्रालय की ओर से सफाई दे दी गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे देशों के प्रमुखों और सरकारों को उनके राष्ट्रीय दिवसों पर परंपरा के तहत संदेश भेजते हैं। (यानी वह संदेश रूटीन में चला गया था) मंत्रालय ने यह भी जोड़ा कि हमने तो उलटे पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर नई दिल्ली स्थित पाक उच्चायोग में आयोजित कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला किया है।
लेकिन कायदे से जैसी चर्चा एक दिन पहले सैम पित्रोदा के बयान को लेकर हुई थी ‘चीखू मीडिया’ के लिए वैसी ही बहस भारत की ओर से दिए गए इस शुभकामना संदेश को लेकर भी बनती थी। लेकिन गोबर जैसी बातों पर उछल पड़ने वाले चैनलों ने चुप्पी साध ली। किसी ने इसे मुद्दा नहीं बनाया कि आखिर यह हुआ कैसे? यदि आपके लिए पित्रोदा का बयान मुद्दा था तो फिर मोदी का संदेश भी मुद्दा होना चाहिए था, लेकिन नहीं, वैसा नहीं हुआ।
इसके उलट एक समर्थक चैनल ने संभवत: मामले को डायवर्ट करने के लिए भारी चीखपुकार के साथ यह बहस चलाई कि राहुल गांधी दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं। अमेठी के साथ साथ वे केरल के वायनाड से भी उम्मीदवार होंगे। कुछ छुटभैये नेताओं के बयानों और सुनीसुनाई बातों पर आधारित इस खबर को राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा बनाते हुए यह नारे तक गढ़ लिए गए कि ‘हार के डर से भागे राहुल’, ‘अमेठी के लोगों ने राहुल को भगाया’ इत्यादि…
सब कुछ इतना प्रायोजित था कि आनन फानन में इस अफवाही सूचना पर भाजपा के बड़े नेताओं के बयान आ गए और अमेठी से भाजपा की उम्मीदवार बनाई गईं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट तक कर डाला कि- ‘’जगह-जगह से बुलावे का स्वांग रचाया, क्योंकि जनता ने ठुकराया। भाग राहुल भाग,सिंहासन खाली करो राहुल जी कि जनता आती है…’’
मैंने पित्रोदा वाले प्रसंग के संदर्भ में लिखा था कि असली भारत पाकिस्तान की तरह एक भारत-पाकिस्तान हमारे मीडिया में भी है, जो खबरों को अपने हिसाब से देखता या तोड़ता मरोड़ता है। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद देश में आचार संहिता लागू हो चुकी है। आचार संहिता का एक बिन्दु पेड न्यूज भी है। उस लिहाज से नहीं, लेकिन चुनाव को निष्पक्ष या पक्षपातरहित बनाने के लिए ही सही, क्या मीडिया के भीतर कोई आचार-विचार नहीं होना चाहिए? चुनाव राजनीतिक दल लड़ रहे हैं या फिर उनकी तरफ से या उनके लिए, हमारा मीडिया?