सवाल पप्पू के, जवाब सरकार के

राकेश अचल

सरकार दिल्ली की हो या पटना की, या कहीं और की, पप्पू के नाम से ही नहीं बल्कि सवालों से भी घबड़ाती है। सवाल करने वाले पप्पू किसी को अच्छे नहीं लगते। दरअसल मैं भी एक पप्पू हूँ इसलिए ये बात पूरे यकीन के साथ कह रहा हूँ। गनीमत ये है कि मेरे खिलाफ 32 साल पुराना क्या, नया भी कोई मामला थाने में दर्ज नहीं है, अन्यथा मुझे भी पुलिस पप्पू यादव की तरह उठाकर दखिल हवालात कर देती।

बिहार के पप्पू से मेरा कोई सीधा परिचय नहीं है, लेकिन उनके बारे में पढ़ा और सुना खूब है। बिहार के पप्पू यादव आजकल सुर्ख़ियों में हैं, फिलवक्त वे हवालात में हैं। पप्पू यादव दरअसल पप्पू हैं नहीं, उनका नाम राजेश रंजन है। उनके दादा ने उन्हें प्यार से पप्पू कहा तो पूरा बिहार पप्पू कहने लगा। पप्पू कहने को हमसे एक दशक छोटे हैं, लेकिन हकीकत में वे हमसे हर मामले में बड़े हैं। हम जहाँ महापौर से लेकर विधानसभा तक का चुनाव नहीं जीत पाए वहीं पप्पू यादव दो मर्तबा विधानसभा और तीन मर्तबा लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। पप्पू सबके आजमाए हुए हैं। वे लालू प्रसाद के साथ रहे, शरद यादव के साथ रहे, नीतीश बाबू से उनका सतसंग रहा लेकिन चूंकि वे पप्पू हैं इसलिए आखिर में सबसे अलग होकर आजकल अपनी पार्टी बनाकर सियासत कर रहे हैं।

पप्पू का पप्पू होना ही उनका अपराध है। पप्पू यादव ने हाल ही में कोरोना पीड़ितों के नाम पर केंद्रीय मंत्री द्वारा खरीदी गयी एम्बुलेंसों के जखीरे का राज क्या उजागर क्या किया, दिल्ली से लेकर पटना तक की सरकार पप्पू के पीछे पड़ गयी। मंत्री जी पप्पू का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे सो नीतीश बाबू के जरिये पप्पू को गांधीगीरी करने की सजा दिलवा दी। जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को बुद्धा कॉलोनी थाने के मंदिरी स्थित आवास से हिरासत में ले लिया और गांधी मैदान थाना लाया, जहां उनसे पुलिस ने पांच-छह घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की।इसके बाद पुलिस ने मधेपुरा के मुरलीगंज थाने में उनके खिलाफ 32 साल पहले दर्ज केस में कोर्ट द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट व पीरबहोर थाने में दर्ज केस के मामले में गिरफ्तार कर लिया।

चूंकि पप्पू को गिरफ्तार करना ही था सो दो दिन पहले सारण जिले में भी कोरोना प्रोटोकॉल के उल्लंघन का मामला पप्पू यादव के खिलाफ दर्ज हुआ है। देश में सबसे बड़े पप्पू भाजपा की नजर में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी हैं। वे कभी-कभी अपने पप्पू होने का प्रमाण भी दे देते हैं। लेकिन कांग्रेस के पप्पू के कारण देश चलाने वालों की नींद हराम है। पप्पू के पास सवालों का अनंत जखीरा है। वे जब सवाल करते हैं तो पूरी बिरादरी बौखला जाती है। कोरोना काल में सरकार की हर मोर्चे पर नाकामी को लेकर कांग्रेस के पप्पू ने अब तक जितने सवाल किये हैं उनमें से एक का जवाब किसी तरफ से नहीं आया है। कांग्रेस के पप्पू यानि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री जी से अपना चश्मा बदलने के लिए कहा है।

देश का दुर्भाग्य ये है कि देश कि सियासत में ही नहीं बल्कि हरेक क्षेत्र में एक से बढ़कर एक काबिल पप्पू हैं लेकिन उनकी या तो कोई सुनता नहीं है या फिर उन्हें सवाल करने पर दुश्मन मान लिया जाता है। कांग्रेस के पप्पू पर तो सरकार का जोर नहीं चल रहा वरना उन्हें भी बिहार के पप्पू यादव की तरह गिरफ्तार कर लिया गया होता। गिरफ्तारी के लिए जरूरी तो नहीं है कि कोई असली और नया मामला ही हो, कोई भी पुराना-धुराना मामला भी इसके लिए काफी है।

पप्पू यादव के कारनामों और करतूतों के बारे में मेरे पास कोई नई जानकारी नहीं है, लेकिन मेरी एक पप्पू होने के कारण उनसे पूरी सहानुभूति है। सहानुभूति का कारण है कि वे भी मेरी ही तरह रोज सवाल करते हैं। व्यवस्था से सवाल करते हैं, व्यवस्थापकों से सवाल करते हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि पप्पू यादव डरते नहीं हैं। मेरा ऐसा मानना है जो डरता है वो पप्पू हो ही नहीं सकता। पप्पू होने का मतलब ही निडर होना है। अगर पप्पू निडर न होते तो भला क्या भरी संसद में माननीय प्रधानमंत्री जी को जादू की झप्पी दे सकते थे?

इस समय देशकाल और परिस्थितियां पप्पुओं के खिलाफ हैं, इसीलिए किसी पप्पू को कहीं कोई कामयाबी नहीं मिल रही। कांग्रेस के पप्पू हों या बिहार के पप्पू या चंबल के पप्पू सबके सब शनि के प्रकोप के शिकार हैं। उनकी कोई सुनता नहीं है। उन्हें सब देशद्रोही मानते हैं, जबकि केवल पप्पू ही हैं जो पक्के राष्ट्रभक्त होते हैं। पप्पू होना बुरा नहीं है जितना कुछ और होना। मैं पप्पू के मुकाबले किसी फेंकू का जिक्र तक नहीं करना चाहता, क्योंकि जहाँ पप्पू के साथ अजान होने का भाव जुड़ा है वहीं दूसरे के साथ धूर्तता का। धूर्त होने से भला अजान होना है। अजान याने कम जानकारी वाला। आप अजान को नादान भी कह सकते हैं।

बहरहाल नयी पीढ़ी में पप्पुओं की संख्या लगातार कम हो रही है। आजकल अभिभावक अपने बच्चों का नाम पप्पू रखते ही नहीं हैं। ऐसे में आने वाले समय में पप्पू नाम का मुहावरा कहीं लुप्त न हो जाये ! मुझे भी पप्पू कहने वाले गिने-चुने लोग ही बचे हैं। पप्पू समझने वाले मुमकिन हैं कि कुछ ज्यादा हों। इसी तरह दुसरे पप्पुओं को पप्पू कहने का साहस आने वाले दिनों में शायद ही कोई कर पाए क्योंकि जो भी हो शाहों का मुकाबला है तो पप्पुओं से ही। पप्पू यानि चुनौती, पप्पू यानि एक प्रतिद्वंदी। पप्पू यानि एक विकल्प।

मुमकिन है कि आपको मेरा पप्पुओं के बारे में ये आख्यान काबिले यकीन न लगे किन्तु यदि आपके आसपास कोई पप्पू खुदा न खास्ता बचा हो तो उसे परख कर देख लीजिये। हर पप्पू प्रश्‍नाकुलता से भरा होगा। उसके सवालों से आप तिलमिला जायेंगे। चिढ़कर या तो मुंह फेर लेंगे या फिर उसे पप्पू यादव की तरह हवालात में डलवा देंगे। किस्मत से इन दिनों में देश के बाहर हूँ इसलिए मुझे तो ऐसा कोई खतरा है नहीं। आप जैसे मोदी नाम केवलम् सुनकर चमकते हैं वैसे ही आने वाले दिनों में बहुत से लोग पप्पू नाम केवलम् कहने से चमकेंगे। मैं फिर दोहराता हूँ कि मुझे अपने पप्पू होने और अपने पप्पूपन पर गर्व है। आज के दौर में गर्व करने के लिए आखिर कुछ तो चाहिए। (मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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