प्रत्‍यक्ष लाभ और परोक्ष हानि को तौलना जरूरी है

गिरीश उपाध्‍याय

मध्‍यप्रदेश में शराब एक बार फिर चर्चा में है। चर्चा का पहला मुद्दा पिछले दिनों मुरैना जिले में हुआ जहरीली शराब कांड है जिसमें अभी तक दो दर्जन से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और कई लोग इससे गंभीर रूप से पीडि़त हुए हैं। दूसरा मुद्दा इस शराब कांड के चंद दिन बाद ही सरकार की तरफ से आया यह संकेत है कि वह अपनी आय के स्रोतों को बढ़ाने के लिहाज से प्रदेश में शराब दुकानों की संख्‍या में इजाफा करने पर विचार कर रही है।

पहले बात मुरैना जिले की। मुरैना में जो कुछ हुआ उसके कारण किसी से छिपे हुए नहीं थे। कार्रवाई भले न हो रही हो लेकिन शासन प्रशासन में इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी ऐसा बिलकुल नहीं था। कुछ समय पहले प्रदेश के ही उज्‍जैन में इस तरह की त्रासदी हो चुकी थी और उस समय भी नकली या जहरीली शराब से हुई मौतों पर बवाल हुआ था। लेकिन लगता है कि शराब का यह अवैध धंधा अपनी जड़ें इतनी गहरी जमा चुका है, कि उन्‍हें उखाड़ना इतना आसान नहीं है।

वैसे मुरैना की तो क्‍या ही बात की जाए! पता नहीं क्‍यों यह जिला मिलावट के मामले में अव्‍वल आने पर क्‍यों तुला है। चाहे वह दूध और दूध से बने पदार्थों में मिलावट का मामला हो या फिर खाद्य तेल का या शराब का। खाने-पीने की शायद ही कोई ऐसी चीज बची हो जिसमें मिलावट करने या जिसका नकली माल तैयार करने की कोशिश यहां न हुई हो। यह स्थिति न सिर्फ मुरैना के लोगों और वहां के समाज के लिए बल्कि वहां की राजनीति और प्रशासन के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए भी चिंता और चुनौती दोनों का विषय है।

अब यह मुरैना के ही लोगों को तय करना है कि वे अपने क्षेत्र को इस दाग से दूर रखकर उसकी छवि को निखारना चाहते हैं या फिर डिजिटल घोखाधड़ी का हब बन चुके झारखंड के जामताड़ा की तरह मुरैना को मिलावट और नकली खाद्य पदार्थों के मामले में देश में अव्‍वल देखना चाहते हैं। करीब चार साल पहले मुझे मुरैना में एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला था और उसी दौरान यह जानकर बहुत ही अच्‍छा लगा था कि एक समय गोली और खून की होली के लिए कुख्‍यात मुरैना अंचल अब अपने शहद और गुलाबजल के लिए पहचाना जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि चंबल अंचल में उद्यमशीलता की कमी है। वहां पुरुषार्थ और उद्ययमशीलता दोनों मौजूद हैं, जरूरत उन्‍हें दिशा देने की है। हालांकि कुछ दशकों में इस अंचल में विकास गतिविधियों का काफी विस्‍तार हुआ है और सरकार के साथ साथ स्‍थानीय लोगों ने भी इस क्षेत्र की परंपरागत छवि को तोड़ने की कोशिशें की हैं। फिर भी चंबल अंचल में जितनी संभावनाएं हैं उनका शायद आधा भी दोहन अभी तक नहीं हो सका है। इसके लिए सरकार और समाज दोनों के संयुक्‍त प्रयास जरूरी हैं।

अब दूसरी बात… मुरैना जहरीली शराब कांड के चंद दिनों बाद ही सरकार की ओर से यह संकेत दिया जाना कि वह प्रदेश में शराब की और अधिक दुकानें खोलने पर विचार करेगी, बहुत चौंकाता है। इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि शायद सरकार की मंशा उन लोगों तक ठीक क्‍वालिटी की शराब पहुंचाने की है जो पीने के नाम पर जहर भी पी जाते हैं।

इसका दूसरा पहलू प्रदेश के खजाने से जुड़ा है। शराब सामाजिक रूप से कितनी ही हेय दृष्टि से देखी जाए लेकिन खजाना भरने के लिहाज से उसकी क्षमता को अनदेखा करना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल है। शराबबंदी की बात जरूर होती है लेकिन हर बार घूम फिरकर मामला शराब बिक्री से होने वाली आय के मुद्दे पर आकर खत्‍म हो जाता है। कोई भी सरकार आसान तरीके से होने वाली इस आय को खोना नहीं चाहती। शराब से होने वाली आय की मात्रा भी इतनी बड़ी है कि उसे खो देने के बाद उसका वैसा वैकल्पिक स्रोत नजर नहीं आता।

इस बार शराब की और दुकानें खोलने के विचार के पीछे सबसे कारण भी यही है। सरकार का मानना है कि जब मध्‍यप्रदेश के पड़ोसी राज्‍य शराब से अच्‍छी खासी आय अर्जित कर रहे हैं तो हम क्‍यों पीछे रहें। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि महाराष्‍ट्र और उत्‍तरप्रदेश जैसे राज्‍यों की तुलना में मध्‍यप्रदेश में प्रति एक लाख की आबादी पर शराब दुकानों की संख्‍या बहुत कम है। इसे बढ़ाकर, लोगों को गुणवत्‍तापूर्ण शराब मुहैया कराने के साथ-साथ, खजाने की सेहत को भी सुधारा जा सकता है।

यह सच है कि कोविड काल के चलते इन दिनों हर सरकार की माली हालत खस्‍ता है और सरकारें अपनी आय के नए-नए स्रोत खोजने के साथ ही पुराने स्रोतों के भरपूर दोहन पर भी ध्‍यान केंद्रित कर रही हैं। ऐसा ही पुराना और आजमाया हुआ स्रोत शराब भी है। लिहाजा सार्वजनिक रूप से शराब को हानिकारक बताने के बावजूद कोई नहीं चाहता कि इस ‘हानि’ से होने वाला ‘लाभ’ हाथ से चला जाए।

लेकिन आमदनी के स्रोतों की खोज और उनके भरपूर दोहन के उपायों के बीच यह भी नहीं भूला जाना चाहिए कि उनके ‘प्रत्‍यक्ष लाभ’ और ‘परोक्ष हानि’ का हमने अच्‍छी तरह आकलन कर लिया है या नहीं। शराब से लाख ‘हींग लगे न फिटकरी’ वाली अनाप-शनाप आय हो जाती हो, लेकिन उसके कारण सामाजिक तानेबाने और लोगों की सेहत को जो हानि पहुंचती है उसका क्‍या? आय बढ़ाने के उपाय जरूर होने चाहिए लेकिन समाज, परिवार और व्‍यक्ति के जीवन और उनकी सेहत की कीमत पर कतई नहीं…(मध्‍यमत)

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