‘मूड आफ दि नेशन’ और ‘मन की चुप्पी’

राकेश अचल

मुझे ऐसे विषयों पर लिखने में संतोष होता है जो प्राय: दूसरे साथियों के लिए रोचक नहीं होते। जैसे आज मैं आज दो विषयों को एक साथ जोड़कर लिख रहा हूँ। एक है ‘मूड आफ दी नेशन’ और दूसरा है ‘श्रीमन के मन की चुप्पी।‘ देश में जब-जब हमारे प्रधानमंत्री जी की लोकप्रियता पर खतरे के बादल मंडराते हैं तब-तब देश की सिद्धहस्त कंपनियां देश का मूड जानने के लिए जुट जाती हैं। दो महीने से देश में चल रहे किसान सत्याग्रह के कारण प्रधानमंत्री जी की नेतृत्व क्षमता पूरी दुनिया में सवालों के घेरे में है, लेकिन इसी नाकामी को छिपाने के लिए इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स ने एक सर्वे ‘मूड ऑफ द नेशन’ के जरिये ये सिद्ध करने का प्रयास किया है कि सब कुछ ठीक है, साहब की लोकप्रियता को कहीं, कोई बट्टा नहीं लगा है।

इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स के ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वे के मुताबिक, अधिकांश लोग कोरोना महामारी को संभालने के सरकारी प्रयासों से खुश हैं और अगर अभी लोकसभा चुनाव कराए जाते हैं तो भाजपा ही उनकी पहली पसंद होगी। देश का मूड भांपने वाला ये सर्वे कहता है कि कांग्रेस भले ही कुछ भी कहे, लेकिन कोरोना संकट जैसी तमाम परेशानियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा बरकरार है। देश की जनता आज भी प्रधानमंत्री मोदी को उतना ही प्यार करती है और यदि आज लोकसभा चुनाव कराए जाएं तो भाजपा आसानी से बहुमत के आंकड़े को प्राप्त कर लेगी। ऐसे सर्वे बेहद लुभावने होते हैं लेकिन कभी-कभी लगता है कि ये सर्वे कहीं देश में मध्यावधि चुनाव की ओर तो इंगित नहीं कर रहे?

आपको ये बता दें कि यह सर्वेक्षण 3 से 13 जनवरी के बीच 19 राज्यों में कराया गया। इस दौरान कुल 12,232 लोगों से साक्षात्कार किए गए। सर्वे में पाया गया कि 73 प्रतिशत जनता कोरोना संकट से निपटने में प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से संतुष्ट है। उसे लगता है कि प्रधानमंत्री की प्रभावी नीतियों और फैसलों के चलते भारत को दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले कम नुकसान हुआ। सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, 64 फीसदी लोग एनडीए सरकार के अब तक के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं।

मजे की बात ये है कि ये प्रायोजित सर्वे न केवल नेताओं की लोकप्रियता का प्रमाणपत्र बांटते हैं बल्कि उनका राजनीतिक भविष्य भी बता देते हैं, जैसे इसी सर्वे में कहा गया है कि अगर अभी लोकसभा चुनाव होते हैं, तो 543 लोकसभा सीटों में से मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को 43 फीसदी वोटों के साथ 321 सीटें मिल सकती हैं। वहीं अकेले भाजपा को ही 37 फीसदी वोटों के साथ 291 सीटें मिलने की संभावना है। यूपीए के लिए स्थिति ज्यादा बदलने वाली नहीं है। उसे 27 फीसदी वोटों के साथ 93 सीटें मिल सकती हैं, जबकि अकेले कांग्रेस को महज 51 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। वहीं अन्य दलों को 30 फीसदी वोटों के साथ 129 सीटें मिल सकती हैं।

ये अजब-गजब सर्वे ये भी बताते हैं कि इस सदी की महान आपदा के समय भी बहुत कुछ बदला नहीं है। मसलन सर्वेक्षण में शामिल 66 फीसदी लोगों ने माना कि कोरोना के चलते उनकी आय प्रभावित हुई है। जबकि 19 फीसदी ने कहा कि उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। जहां तक राज्य स्तर पर कोरोना से लड़ाई का सवाल है, 70 प्रतिशत राज्य सरकारों के कामकाज से खुश हैं। इसी तरह 76 फीसदी मरीजों ने अस्पताल में इलाज पर संतुष्टि जताई है। वैक्सीन लगवाने के सवाल पर 76 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो इसके लिए तैयार हैं। हालांकि, 21 फीसदी इसके खिलाफ नजर आए। यानि असंतोष की खबरों से भरे अखबार झूठे हैं और ये सर्वे सच्चे।

देश में मोदी केबिनेट के जिन मंत्रियों को लेकर सबसे ज्यादा वितृष्णा है उन्हें ये सर्वे सर्वश्रेष्ठ होने का प्रमाणपत्र बांटने में संकोच नहीं करते। आखिर ये सर्वे कराये ही ठकुरसुहाती के लिए हैं। उदाहरण के लिए इस बहुउद्देशीय सर्वे में यह भी पूछा गया कि मोदी सरकार का कौन सा मंत्री सबसे अधिक पसंद है। इस सवाल के जवाब में 39 फीसदी लोगों ने अमित शाह का नाम लिया और उनके कामकाज को नंबर-1 बताया। जबकि, 14 फीसदी लोगों को राजनाथ सिंह और 10 फीसदी को नितिन गडकरी सबसे अच्छी मंत्री लगे।

सर्वे के बाद अब आइये प्रधानमंत्री जी के मन की बात के साथ उनके मन की चुप्पी की भी बात कर लें। प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात में कभी किसान सत्याग्रह में शहीद होने वाले किसानों के प्रति संवेदना नहीं जताते। वे अरुणाचल में चीन द्वारा एक पूरा गांव बसाये जाने के मामले में भी अपने मन को बोलने नहीं देते। जबकि चीन के विदेश मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि ”अपने खुद के क्षेत्र में चीन की विकास और निर्माण गतिविधियां” सामान्य तथा दोषारोपण से परे हैं। सर्वे में हमारी विदेश नीति को शामिल करने की जरूरत समझी ही नहीं गयी।

देश का मूड जानने के लिए किये जाने वाले सर्वे में न किसान सत्याग्रह होता है और न देश की कानून और व्यवस्था। न महंगाई न बेरोजगारी। सर्वे की धुरी नेता जी के आसपास ही घूमती है। ऐसे सर्वे कितने भरोसेमंद होते हैं, मैं तो नहीं जानता, हाँ भक्तों के लिए ये आधार होते हैं यशगान के। जैसे कोरोना जांचने के लिए किट आती है वैसे ही देश का मूड भांपने के लिए ये सर्वे किट जैसे ही हैं। इन्हें आप अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि शीघ्र ही विपक्षी दल भी इसी तरह का एक न एक सर्वे जरूर कराएँगे, क्योंकि अब देश तक तो किसी कि पहुँच है नहीं।

दरअसल इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स के पास जादू की छड़ी है जो 130 करोड़ की आबादी के मूड को 12 हजार लोगों से बात कर भांप लेती है। आपको शायद पता होगा कि जब सरकारी विज्ञापन जनता की आँखों में धूल झोंकने में नाकाम होते हैं तब ऐसे सर्वे बैसाखी का काम करते हैं। कभी-कभी यह बैसाखी काम कर भी जाती है और कभी-कभी नहीं भी करती। अविश्वास के इस दौर में इन सर्वेक्षणों पर विश्वास करना न करना आपकी अपनी मर्जी पर निर्भर करता है। हमारे यहां कहा जाता है एक चावल पूरी खिचड़ी का हाल बता देता है, शायद इसीलिए ये सर्वे पूरे देश का मिजाज बताने का दावा कर रहे हैं। वैसे एक मछली भी होती है जो सारे तालाब को गंदा कर देती है लेकिन इसे ये सर्वे वाले कहाँ मानते हैं?

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