थोड़ा अपने भीतर झांक लीजिए …

आपका नाम ‘मुहम्मद असलम’ है और आप आसिफ़ा के लिए सिर्फ़ इसलिए हल्ला मचाये थे कि उसका नाम ‘आसिफ़ा’ था.. ‘नीति शर्मा’ या ‘मधु त्यागी’ नहीं.. तो कहीं कुछ बहुत भारी गड़बड़ है आपके भीतर, जिसे आपने अगर नहीं सुधारा तो आपकी नस्लें इस धरती से मिट जाएंगी ।
आपका नाम ‘राजेश कुमार’ है और आप ‘ट्विंकल शर्मा’ के लिए सिर्फ़ इसलिए चिल्ला रहे हैं कि वो ‘ट्विंकल शर्मा’ है, कोई ‘फ़ातिमा’ या ‘नुसरत’ नहीं.. तो आपके भीतर कुछ भारी ‘गड़बड़ी’ पनप चुकी है और इसे आपने नहीं सुधारा तो आने वाले भविष्य में क़ुदरत आपके साथ वही करेगी जो आसिफ़ा के ‘धार्मिक’ समर्थकों का करेगी ।
सोच कर देखिये कि इतनी छोटी बच्ची का क्या धर्म होगा? क्या उसे पता भी रहा होगा कि वो किस ‘झुंड’ और ‘क़बीले’ की थी?
सोच के देखिये कि यदि छोटे बच्चे को आप हिन्दू या मुसलमान बोल कर गाली भी देंगे तो वो बस आपको देखता रहेगा.. उसे कुछ भी समझ नहीं आएगा.. सोच के देखिये कि कैसी भोली नज़र से वो आपको देखेगा बस!
ऐसे ही ट्विंकल है और ऐसे ही आसिफ़ा थी.. जिसने भी इनके साथ जो भी किया होगा उसे ये वैसी ही भोली नज़र से देख रही होंगी और बाद में डर के बस चिल्ला चिल्ला के रोई होंगी.. सोच के देखिये मन सिहर जाएगा.. और फिर ऐसी बच्ची अगर आपके सामने ऐसे किसी भी अत्याचार से गुज़र रही होती तो आप ने अपनी जान की परवाह किये बिना उसे बचाया होता.. है कि नहीं? जब तब धर्म न देखते तो अब क्यूं देख रहे हो?
किसी ने कहा है कि अगर ‘कसाई घर’ की दीवारें कांच की बना दी जाएं तो दुनिया के आधे से अधिक लोग शाकाहारी हो जाएंगे.. कितने तो सिर्फ़ इसलिए मांस आराम से खा लेते हैं क्यूंकि वो जानवर को कटते नहीं देखते हैं.. लगातार कटते देखते रहें तो खाना छोड़ दें.. आधे से ज़्यादा लोग तो बस बेहोशी में मांस खाते रहते हैं।
ऐसे ही आपका धर्म के नाम पर लोगों से नफ़रत करना भी होता है.. आप बस बेहोशी में नफ़रत करते रहते हैं.. आप जिनसे सिर्फ़ धर्म के नाम पर नफरत करते हैं और हिंसक हो जाते हैं, उन्हें आप अपने सामने मरता देख लें तो सिहर उठेंगे.. इतिहास गवाह है कि धार्मिक दंगों में जिन जिन आम इंसानों ने इंसानों को मारा है वो पूरी उम्र कभी अपने को माफ़ नहीं कर पाए.. चाहे गोधरा की ट्रेन में लोगों का जलना हो या नरसंहार में लोगों का मरना.. आप देख नहीं सकते हैं.. इसीलिए जब भी ऐसे टॉपिक पर कोई भी फ़िल्म बनती हैं तो हाल में हर धर्म का इंसान ‘रो’ रहा होता है क्यूंकि उसने कांच की दीवारों वाले ‘कसाई घर’ में जानवरों का कटना देख लिया होता है ।
इसलिए समझिये इसे कि नाम तो बस माध्यम है पुकारने का.. उस नाम में अगर आपको इतने छोटे बच्चों का भी धर्म दिखने लगे, तो आपको सच में अपने आप से घृणा करनी चाहिए और अकेले में चिल्ला चिल्ला के रोना चाहिए कि आप इंसान से क्या बन गए हैं?

(यह सामग्री श्री सुरेंद्र दांगी की फेसबुक वॉल से ली गई है)

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