पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ दिनों से चल रहा हिंसक और खूनी घटनाक्रम धीरे धीरे इस राज्य को राष्ट्रपति शासन की दिशा में ले जा रहा है। यदि ऐसा हुआ तो यह अमित शाह की अगुवाई में, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान, गृह मंत्रालय द्वारा किसी राज्य के खिलाफ उठाया गया इस तरह का पहला कदम होगा।
पश्चिम बंगाल में पिछला चुनाव 2016 में हुआ था। कुल 295 सीटों वाली विधानसभा में 294 सीटों के लिए हुए चुनाव के दौरान ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 211, कांग्रेस को 44 व माकपा को 26 सीटें मिली थीं। बाकी सीटें अन्य दलों व निर्दलियों को गई थीं जिनमें से भाजपा के खाते में सिर्फ 3 सीटें आई थीं। वो चुनाव मई 2016 में हुए थे और उस हिसाब से बंगाल की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल अभी दो साल और बचा है। वहां ममता बैनर्जी 2011 से सत्ता में हैं।
बंगाल में वर्चस्व जमाए बैठी माकपा को अकेले दम पर अपदस्थ करने वाली ममता बैनर्जी को यूं तो बंगाल में कोई चुनौती नहीं थी। लेकिन भाजपा ने पिछले कुछ सालों के दौरान वहां अपनी सक्रियता के बूते अच्छी खासी पैठ बनाई और उसी का नतीजा रहा कि 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भाजपा राज्य की 42 में से 18 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रही। ममता की तृणमूल को 22 सीटें मिलीं। कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा, जबकि माकपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
तृणमूल और भाजपा में लोकसभा चुनाव के दौरान तीखी टकराहट देखने को मिली थी। हालांकि उससे पहले राज्य में हुए पंचायत चुनावों के दौरान भी दोनों पार्टिंयों के कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष हुए थे। पर लोकसभा चुनाव के बाद से तो बंगाल जैसे राजनीतिक रूप से उबल रहा है। बाकी राज्य और पार्टियां जहां परिणामों को स्वीकार कर, अपनी धूल झाड़ पोंछ कर भविष्य की ओर देखने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं बंगाल अभी तक लोकसभा चुनाव के माहौल में ही ठहरा हुआ है।
सबसे अधिक चिंता की बात वहां तृणमूल और भाजपा के बीच लगातार हो रही हिंसा है। पिछले शनिवार यानी 8 जून को भाजपा के झंडे उतारे जाने जैसी मामूली बात को लेकर जो हिंसा हुई है, उसमें दोनों ही पक्षों के दावों को स्वीकार कर लिया जाए तो मरने वालों की संख्या आठ हो जाती है। जिसमें से भाजपा के पांच और तृणमूल के तीन कार्यकर्ता बताए जा रहे हैं। यह संघर्ष भी मामूली नहीं था, बल्कि इसमें दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी हुई।
अब हालत यह है कि भाजपा ने केंद्र में अपनी सरकार से मांग कर डाली है कि चूंकि राज्य सरकार कानून और व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने में नाकाम रही है इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए। उत्तरी 24 परगना जिले में हुई हिंसा के बाद भाजपा के महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय का बयान आया है कि अगर बंगाल में ऐसे ही हालात रहे तो केंद्र को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। हम धारा 356 लागू करने की मांग करते हैं।
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में हो रही घटनाओं की रिपोर्ट तलब करने के साथ ही स्थिति की समीक्षा की है। केंद्र ने राज्य के हालात को सरकारी मशीनरी की विफलता बताते हुए एडवायजरी जारी की है कि राज्य सरकार बेकाबू हो रही स्थितियों को संभाले और कानून एवं व्यवस्था को बिगड़ने से रोके। मामले की नजाकत को इस बात से और ज्यादा समझा जा सकता है कि सोमवार को बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात की।
उधर बंगाल सरकार ने केंद्र की एडवायजरी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राज्य के चीफ सेक्रेटरी मलय कुमार ने पत्र में लिखा- चुनाव के बाद कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा की गई थी। ऐसे मामले रोकने के लिए अधिकारियों ने बिना किसी देरी के कार्रवाई की। राज्य में स्थिति नियंत्रण में है और इस प्रकार की घटनाओं के आधार पर राज्य में कानून व्यवस्था को असफल नहीं माना जा सकता।
उधर तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन ने गृह मंत्रालय की एडवायजरी को राजनीतिक साजिश करार देते हुए कहा कि हम इसका उचित जवाब देंगे। बिना जमीनी हकीकत जाने कानून व्यवस्था पर एडवाइजरी जारी की गई है। गृह मंत्रालय आंख मूंद कर भाजपा नेताओं की बात मान रहा है। टीएमसी नेताओं के ये बयान बताते हैं कि राज्य में कोई भी अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं है।
बंगाल में जो हालात बन रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि ममता बैनर्जी स्थिति की नजाकत को समझे बिना खुद अपनी सरकार को गिराए जाने और वहां राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने की स्थिति को न्योता दे रही हैं। खुद उनके सहित टीएमसी के बड़े नेताओं द्वारा ‘खून का बदला खून’ से की तर्ज पर कार्यकर्ताओं को उकसाए जाने से नुकसान उन्हीं का होने वाला है। बंगाल में जितनी अधिक हिंसा होगी, केंद्र को वहां उतनी जल्दी कार्रवाई करने का मौका भी मिलेगा और उसका औचित्य साबित करने का भी।
दूसरा आश्चर्य लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय राजनीति के बदले हुए परिदृश्य को लेकर हो रहा है। ये वे ही ममता बैनर्जी हैं जो एक समय विपक्षी नेताओं की गतिविधियों की धुरी बनने चली थीं और कोलकाता में तमाम गैर भाजपा/एनडीए दलों के नेताओं ने एक मंच पर खड़े होकर हाथों में हाथ डालकर एकजुटता का प्रदर्शन किया था। लेकिन अब बंगाल के मामले में ममता के साथ कोई खड़ा नजर नहीं आ रहा।
ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों ने भी बंगाल की लड़ाई को तृणमूल और भाजपा की निजी लड़ाई मानकर उससे पल्ला झाड़ लिया है। ऐसे में ममता अपने किले में अकेली पड़ती नजर आ रही हैं। भले ही आज उनके हाथ में बंगाल की सत्ता है, लेकिन सत्ता के यही सूत्र उनके गले का फंदा बनने जा रहे हैं, क्योंकि भाजपा मुद्दा ही इस बात को बना रही है कि ममता से बंगाल नहीं संभल रहा। अभी आठ लोगों के मरने की खबर आई है, कोई ताज्जुब नहीं आने वाले दिनों में 80 लोग ऐसी हिंसा की बलि चढ़ा दिए जाएं।
ध्यान रखें, यह सत्ता की लड़ाई है, इसमें बलि कार्यकर्ताओं की ही चढ़ती है। समझदारी तो यह होती कि लोकसभा चुनाव के बाद ममता शांत रहकर बंगाल के गवर्नेंस पर ध्यान देतीं और हिंसा न होने देने के माकूल इंतजाम करतीं। हिंसा का जवाब हिंसा से देने का जो टकराव वाला रास्ता उन्होंने अपनाया है वह उन्हें पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी से और बाद में बंगाल की राजनीति से दूर करने का सबब बन सकता है।