प्रभुनाथ शुक्ल
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है। वह हमारी आस्था और संस्कारों की आत्मा है। महाराज सगर के साठ हजार पुरुखों को मोक्ष दिलाने के लिए गंगा का अवतरण धरती पर हुआ। लेकिन हमें मोक्ष दिलाने वाली गंगा खुद मोक्ष चाहती है। गंगा को अगर यह मालूम होता है कि धरती पर उनका आगमन खुद के लिए बड़ी मुसीबत बनेगा तो शायद वे भगवान शंकर की जटा से बाहर नहीं आतीं। गंगा का आंचल आज इतना मैला हो चला है कि जल आचमन के योग्य तक नहीं है। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदलता है। शायद इसी को इतिहास कहते हैं।
सरकार की मंशा को देखने से यह साफ होता है कि गंगा का आंचल अब मैला नहीं रहेगा। देश में नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत हो गई है। पांच साल की इस परियोजना पर 20 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। पहले चरण में इस पर 1600 करोड़ रुपए खर्च होंगे। सात राज्यों में 104 स्थानों से इस परियोजना की शुरुआत की गई है। 50 बड़ी परियोजनाओं पर काम होगा। पूरे गंगा बेसिन में 1142 छोटी बड़ी परियोजनाएं गंगा सफाई के लिए बनाई गई हैं। गंगा सफाई के लिए संबंधित मंत्रालय की मंत्री उमा भारती ने गंगोत्री से पदयात्रा का भी एलान किया है। गंगा की स्वच्छता को लेकर वाराणसी हरिद्वार और दूसरे शहरों की उम्मीद जगी है।
सवाल बड़ा है, क्या गंगा स्वच्छ हो पाएगी? पवित्र जल क्या आचमन योग्य होगा? हमारी गंगा की धारा क्या अविरल होगी? गंगा में पर्याप्त जल छोड़ा जाएगा जिससे वह सदानीरा और सतत वाहिनी की मर्यादा को अक्षुण्ण् रख पाए। क्योंकि इस तरह की सरकारी परियोजनाएं तो 30 साल पूर्व भी कांग्रेस सरकार में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरफ से शुरू की गई थी। राजीव गांधी ने गंगा सफाई के लिए ‘गंगा एक्शयन प्लान’ की शुरुआत 1985 में की थी जिसका दूसरा चरण 1993 में शुरू हुआ। इस योजना पर करोड़ों रुपए खर्च हुए, लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला।
गंगा सफाई पर अब तक हजारों करोड़ की राशि बहा दी गई लेकिन गंगा साफ नहीं हुई। गंगा की स्वच्छता को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत और उच्च न्यायालय में काफी संख्या में मुकदमे विचाराधीन हैं। सर्वोच्च अदालत दो बार सरकारों को चुभने वाली टिप्पणी कर चुकी है। जिसमें सरकारों से यह पूछा गया कि क्या 100 साल में भी गंगा स्वच्छ हो पाएगी? दूसरी मुखर टिप्पणी थी- कोई बताए गंगा कहां साफ हुई है? अदालत की यह तल्ख टिप्पणी सीधे परियोजनाओं की अव्यवस्था और मंशा पर सवाल उठाती है।
भौगोलिक आंकड़ों में समझें तो गंगा की लंबाई 2510 किमी है। उत्तर प्रदेश में गंगा 1000 मील का सफर तय करती हैं। उत्तराखंड में 405 और पश्चिम बंगाल में 520 किमी की यात्रा तय करती है। जबकि झारखंड में यह 40 किमी का दायरा तय करती है। 10 हजार वर्गमील के गंगा बेसिन में फैली है। इसकी गहराई 100 मीटर तक है। 1700 से अधिक शहर, कस्बे और गांव इसके बेसिन में आबाद हैं। इसकी गोद में सुंदरवन जैसा डेल्टा है। यह सात राज्यों से होकर गुजरती है। जलीय जीव जंतुओं के संरक्षण का यह अहम् माध्यम है।
गंगा से 50 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसका जल जहां अमृत है। वहीं जड़ी बूटियां मानव जीवन को संरक्षित करती हैं। बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। गंगा सिमट रही है। गंगा किसानों और कृषि के लिए हजारों मील लंबा कृषि भूभाग उपलब्ध कराती है। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को मानें तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे और हमारी गंगा का आंचल सूखा हो जाएगा।
सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है। जिसका सीधा संबंध औद्यौगिक इकाइयों और रसायनिक कंपनियों से है। गंगा के किनारे परमाणु संयंत्र, रसायनिक कारखाने और शुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग स्थापित हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा का आंचल मैला करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। गंगा में गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्यौगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़ी औद्योगिक इकाइयां स्थापित हैं।
गंगा को साफ सुथरा रखने के लिए 1912 में पंडित मदन मोहन मालवीय जी की तरफ से आंदोलन छेड़ा गया था। आखिरकार 1916 में अंग्रेसी हुकूमत के साथ एक समझौता हुआ था जिसमें गंगा को अविरल बनाने के लिए 1000 क्यूसेक पानी छोड़ने की सहमति बनी। लेकिन स्वतंत्र भारत में बनी सरकारों ने उस पर कोई अमल नहीं किया गया। आज उस पर अमल किया गया है यह अच्छी बात है। हमारे नीति नियंताओं को टेम्स नदी को लेकर उम्मीद जगी है। कहा जाता है कि 1957 में टेम्स दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार थी। जैविक तौर पर सरकार ने उसे मृत नदी घोषित कर दिया गया था। प्रदूषण के कारण वहां की राजधानी को भी हटाना पड़ा था। लेकिन लोगों की जागरूकता के चलते आखिरकार टेम्स और राइन नदी साफ और स्वच्छ हो गई। शायद यही हमारी उम्मीद है।
लेकिन हम सिर्फ नारों से गंगा को साफ नहीं कर सकते। इसके लिए स्पष्ट नीति और नजरिए की आवश्यकता है। सभी को अपने दायित्वों के साथ आगे आना होगा। सरकार के भरोसे काम नहीं किया जा सकता है। ‘नमामि गंगे’ योजना से सीधे आम लोगों और गांवों को जोड़ कर जागरूकता के माध्यम से अधिक सफलता हासिल की जा सकती है।
गंगा सफाई अभियान की सफलता के लिए सबसे पहला और प्रभावी कदम शहरी और औद्यौगिक कचरे को गंगा में गिरने से रोकने का होगा। इसके लिए कानपुर, वाराणसी, पटना और दूसरे शहरों के नालों के पानी के लिए जल शोधन संयंत्रों की स्थापना करनी होगी। कचरे का रूप परिवर्तित कर उसके उपयोग के लिए दूसरा जरिया निकालना होगा। गंगा में गिरती रसायनिक गंदगी को रोकना होगा। धार्मिक संस्कारों को लेकर जागरूकता लाई जाए। इसके अलवा गंगा को सीधे गांव और मनरेगा से जोड़ा जाए। हालांकि यह सब बताने की आवश्यकता नहीं है।
‘नमामि गंगे’ परियोजना में इसका लंबा खाका खींचा गया है। लेकिन गंगा को हम तभी स्वच्छ और साफ रखने में कामयाब होंगे जब खुद के मोक्ष के पहले हम गंगा की स्वच्छता का खयाल रखें। हमें गंगा स्नान और मोक्ष की कामना त्याग कर गंगे तव दर्शनार्थ मात्र मुक्ति पर चलना होगा। तभी हमारी गंगा स्वच्छ, साफ, सुथरी, निर्मल और आचमन के योग्य होगी।
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(वाराणसी के श्री प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र लेखक और टिप्पणीकार हैं। मध्यमत डॉट कॉम के लिए यह उनका पहला आलेख है।)