मीटिंग में आया जीका से निपटने का नायाब ‘आइडिया’

शहर में जानलेवा जीका वायरस पाए जाने की खबर आने के बाद से ही स्‍वास्‍थ्‍य विभाग में हड़कंप मचा हुआ था। हड़कंप का कारण जीका नहीं बल्कि उसका बड़े साहबों की बस्‍ती ‘चार इमली’ में पाया जाना था। इस घटना को उस बस्‍ती की शान पर तोहमत माना गया। लिहाजा विभाग के अफसरों का ऊपर नीचे होना लाजमी था।

अखबारों में लगातार आ रही खबरों के बाद स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के आला अफसरों ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। बड़े साहब ने मीटिंग में बहुत संजीदगी से पूछा- ‘’क्‍या कहते हैं आप लोग, हमें क्‍या करना चाहिए?’’ इलाके के इंचार्ज अफसर ने कहा- ‘’सर फॉगिंग आदि तो करवा ही रहे हैं, हमने सर्च ऑपरेशन भी शुरू कर दिया है…’’

‘’लेकिन सूरी साहब इससे बात बन नहीं रही। आला अफसरों के रोज फोन आ रहे हैं। पूछते हैं ये क्‍या हो रहा है, जीका हमारे इलाके तक आ गया और आपको खबर भी न हुई। लिहाजा हमें कुछ तो ऐसा करना होगा जिससे लगे कि वाकई हम कुछ कर रहे हैं। हमें वायरस या मच्‍छरों की नहीं, आला हाकिमों की चिंता है। आप ऐसा कोई आइडिया दें जो नया हो…

साहब की यह मिन्‍नत सुन, अपने भतीजे से सरकार के ‘आइडिया कैंपेन’ में सुझाव भिजवा चुके एक कर्मचारी के पेट में गुड़गुड़ होने लगी। उसने पहले तो इधर-उधर देखा और जब लगा कि आइडिया देने के नाम पर सबको सांप सूंघ गया है तो उसने बड़ी शान से हाथ उठाया।

‘’हां, चौधरी बोलो क्‍या कहना चाहते हो…’’ साहब ने उसका हौसला बढ़ाया। ‘‘सर, हमारे गांव में शीतला माता का एक मंदिर है, कहते हैं वहां पूजा करने वालों के घरों में कभी चेचक नहीं होती, तो क्‍यों न हम भी इस रोग की शांति के लिए कोई मंदिर बनवा दें…’’

चौधरी की बात सुनते ही मीटिंग में ठहाका लगा। लेकिन साहब की बगल में बैठे डिप्‍टी अस्‍थाना की आंखें अचानक चमक उठीं। उसने धीरे से साहब के कान में कहा- ‘‘आइडिया बुरा नहीं है सर..’’ अस्‍थाना का पूरा नाम वैसे तो कृष्‍णबिहारी अस्‍थाना था, लेकिन वे विभाग में सालों से डिप्‍टी के पद पर थे, इसलिए लोग उन्‍हें ‘डिप्‍टी अस्‍थाना’ के नाम से ही बुलाने लगे थे।

डिप्‍टी के इस कमेंट पर बड़े साहब ने उसकी तरफ घूरकर देखा और बोले- ‘’देखो अस्‍थाना, वहां दिल्‍ली में तो तुम्‍हारा नामराशि पीएम के लिए मुसीबत बना ही हुआ है, यहां तुम मेरी वाट लगाने पर क्‍यों तुले हो। तुम्‍हें पता भी है तुम क्‍या कह रहे हो…’’

लेकिन अस्‍थाना को तो मानो अलादीन का चिराग मिल गया था। उसने आंखें नचाते हुए कहा- ‘’नहीं सर मैं क्‍यों आपकी वाट लगाने लगा, पर आप जरा सोचिए तो सही… चार इमली के टेम्‍पल कॉम्‍प्‍लेक्‍स में यदि हम जीका देव का मंदिर बनवा दें तो उसके कितने फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि ये जो हल्‍ला हो रहा है वह पूरी तरह डायवर्ट हो जाएगा…’’

अस्‍थाना बोलता जा रहा था- ‘’और फिर सर हम ऐसा पहली बार थोड़े ही कर रहे हैं। याद है आपको, एक बार अज्ञात बुखार फैला था जिसकी वजह हमारी समझ में नहीं आई थी और हमने उसकी शांति के लिए यज्ञ, हवन, अनुष्‍ठान आदि करवाए थे। कारण चाहे जो भी रहा हो, पर थोड़े दिनों बाद लोग बीमार होना बंद हो गए थे, क्‍या पता इस बार भी यह तरकीब काम कर जाए…’’

‘’लगता है तुम मेरी नौकरी लेकर ही मानोगे। तुम जानते नहीं तुम क्‍या कह रहे हो, अरे वो टाइम और था, ये इलेक्‍शन का टाइम है, इधर हमने मंदिर का नाम लिया नहीं कि उधर इलेक्‍शन कमीशन हमें टांग देगा। लगता है चुनाव के मौसम में तुम भी पॉलिटिकल वायरस की चपेट में आ गए हो…’’

‘’नहीं सर, ऐसा कुछ नहीं होगा…’’ अस्‍थाना ने पूरे इत्‍मीनान से कहा। ‘’सर हम खुद थोड़े ही मंदिर बनवाने जा रहे हैं। हम तो बस अपने कुछ लोगों को इशारा कर देंगे। आप निश्चिंत रहें सर, आप तो हां कह दें, बाकी सारा काम मैं फिट करवा लूंगा। हम तो कहीं पिक्‍चर में भी नहीं आएंगे। और फिर यह मंदिर सिर्फ आज के लिए ही नहीं, बरसों बरस हमारी मदद करता रहेगा…’’

इतना कहते-कहते अस्‍थाना की आंखों में एक शातिर धंधेबाज जैसी चमक उठ आई। उसने आंख दबाकर कहा-‘’सर जरा सोचिए, जीका देव का मंदिर चार इमली में होगा, साहब लोग तो साहब लोग, उनकी मैडमें अपने बच्‍चों की खैर कुशल के लिए यहां मन्‍नत मांगने आया करेंगी, हम अपने ही किसी आदमी को पुजारी के रूप में बिठा देंगे, जरा सोचिए हमारी पहुंच कहां कहां तक होगी…’’

बड़े साहब की चढ़ी हुई त्‍योरियां कुछ ढीली पड़ीं, वे सोच में पड़ गए। धीरे से बुदबुदाए-‘’लेकिन अस्‍थाना कोई ऊंच नीच हो गई तो…? ‘कुछ नहीं होगा सर, हम कहीं से पिक्‍चर में सामने रहेंगे ही नहीं, हमारा रोल तो परदे के पीछे होगा, जो कुछ करेगा हमारा वो पुराना ठेकेदार करेगा और बाकी काम हमारा पुजारी संभाल लेगा… आप तो बस हां कर दीजिए..’’

‘’इसमें बहुत पोटेंशियल है सर, आप समझिए, वो बस्‍ती कोई मामूली बस्‍ती नहीं है। जीका देव का मंदिर बनेगा तो वहां क्‍या-क्‍या नहीं होगा। सारे बड़े साहब, सारे मंतरी-संतरी आएंगे, मंदिर से जब इतने बड़े लोग जुड़ेंगे तो बाकी जनता तो वहां वैसे ही टूट पड़ेगी, जबरदस्‍त चढ़ावा आएगा सर, माल और रसूख दोनों अथाह होंगे इस मंदिर के पास…’’

‘’सर, आगे चलकर हम हर साल यहां जीका जयंती का आयोजन कर सकते हैं। थोड़े दिनों बाद यहां जीका देव का मेला भरने लगेगा। नौजवान युवक युवतियां यहां मन्‍नत मांगने आएंगे और जीका देव के दरवाजे पर धागा बांधेंगे। वहां जीका देव की तसवीरें, उनकी मूर्तियां, उनका प्रसाद, उनकी भभूत, उनकी किताबें, उनकी अगरबत्‍ती, जाने क्‍या क्‍या हम बेच सकते हैं।‘’

‘’जरा सोचिए, एक बीमारी कितने लोगों के लिए रोजगार का जरिया बनेगी, राजधानी में एक नया पर्यटन केंद्र विकसित हो जाएगा, लोग दूर-दूर से यहां जीका देव के दर्शन के लिए आएंगे, जीका देव के मेले में शामिल होंगे, इससे देश का सांस्‍कृतिक तानाबाना मजबूत होगा.. सर मैं तो कहता हूं शायद ईश्‍वर ने स्‍वयं यह पुण्‍य कार्य आपके भाग्‍य में लिखा है, शायद उसकी भी यही इच्‍छा है कि यह अनुष्‍ठान आपके ही हाथ से संपन्‍न हो, आप ही इस मंदिर के संस्‍थापक और प्रणेता के नाम से जाने जाएं…’’

अस्‍थाना की बातें, बड़े साहब पर जादू जैसा असर कर रही थीं, थोड़ी देर के लिए वो भविष्‍य के सुनहरे सपनों में खो गए… अस्‍थाना ने उनका हाथ पकड़कर हिलाया, सर… कहां खो गए…? साहब खयाली दुनिया से फिर मीटिंग में लौटे और बोले, आज की मीटिंग खत्‍म, आगे इस पर और विचार करेंगे, अब आप लोग जाइए…

और हां, अस्‍थाना, तुम मेरे कमरे में आओ, तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है… कहते हुए बड़े साहब तेजी से अपने चैंबर की ओर बढ़ गए…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here