मोहाली में हुआ संघर्षशील माताओं का सम्‍मान

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हिमाचल के राज्‍यपाल आचार्य देवव्रत के साथ सम्‍मानित माताएं

चंडीगढ़, मई 2016/ संघर्ष के रास्ते पर चलते हुए जिंदगी में मिली हर चुनौती का डट कर सामना करने वाली 10 मताओं को मां सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया। पंजाब के डॉ. जीसी मिश्रा मेमोरियल एजुकेशन एवं चैरिटेबल ट्रस्ट और मानव मंगल स्मार्ट स्कूल, मोहाली की ओर से आयोजित छठे मां सम्मान समारोह में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने जब संघर्षशील माताओं का सम्मान किया तो सभागार में बैठे हर किसी की आंखे उनकी संघर्ष की कहानी सुनकर नम हो गई। इस समारोह में चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला के अलावा पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की माओं का भी सम्मान किया गया।
सम्‍मानित होने वालों में यमुनानगर की सोना देवी, पंचकूला की कमलेश, लुधियाना की जया दुग्गल, खरड़ की करमजीत कौर, ऊना (हिमाचल प्रदेश) की शशि बाला, पंचकूला की चंपा देवी, परवाणू (हिमाचल प्रदेश) की हेमलता भाटिया, चंडीगढ़ की राज मणि और मोहाली की करमजीत कौर शामिल हैं। समारोह में ‘मदर ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार राजिंदर कौर को दिया गया। इन सभी माओं के संघर्ष की अलग अलग कहानी है।
इस मौके पर आचार्य देवव्रत ने कहा कि मां का स्थान देवता के बराबर होता है। आज के समय में मां को वह सम्मान नहीं मिलता है जो कि पहले मिलता था। आधुनिकीकरण के दौर में हम बच्चों से यह कहते हैं कि अच्छे अंक लाना, लेकिन हम उन्हें यह संस्कार नहीं देते हैं कि वह एक अच्छा इंसान बनें। हम सबके जीवन में मां के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिता अगर बच्चों को छोड़ कर चला जाए तो मां उसे अकेले पाल लेगी,लेकिन अगर मां न हो तो पिता अकेले बच्चों को नहीं पा पाएंगे। उन्होंने छात्र-छात्रओं से आहवान किया कि वे अपनी जिम्मेदारी को पहचानें और मां के प्रति अपना सही उत्तरदायित्व निभाकर उसकी झोली खुशियों से भर दें।
इस दौरान आचार्य देवव्रत ने मयंक मिश्रा की ओर से संपादित सोविनियर ‘ए ट्रिब्यूट टू मदर्स’ का विमोचन भी किया। इस दौरान स्कूल के छात्र-छात्राओं की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया जिसमें दिखाया गया कि हर किसी के जीवन में मां का महत्व कितना होता है और मां के न होने पर वह व्यक्ति अनाथ महसूस करने लगता है।

हिमाचल के राज्‍यपाल आचार्य देवव्रत ने मयंक मिश्रा द्वारा संपादित सोविनियर ‘ए ट्रिब्यूट टू मदर्स’ का विमोचन किया
हिमाचल के राज्‍यपाल आचार्य देवव्रत ने मयंक मिश्रा द्वारा संपादित सोविनियर ‘ए ट्रिब्यूट टू मदर्स’ का विमोचन किया

समारोह में गुरू जंभेश्वर यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलाजी, हिसार के कुलपति प्रो.टंकेश्वर कुमार, चंडीगढ़ के एसडीएम (सेंट्रल) प्रिंस धवन, चितकारा यूनिवर्सिटी की प्रो चांसलर डॉ.मधु चितकारा, डीपीएस, फिरोजपुर की प्रिंसिपल डॉ.राकेश सचदेवा, डॉ. जीसी मिश्रा मेमोरियल एजुकेशन एवं चैरिटेबल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी मयंक मिश्रा, मानव मंगल ग्रुप ऑफ स्कूल्स के निदेशक संजय सरदाना भी मौजूद थे। मां सम्मान समारोह में मंच का संचालन उमा महाजन ने किया। डॉ. जीसी मिश्रा मेमोरियल एजुकेशन एवं चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से पांच सालों से मदर्स डे पर सम्मान समारोह आयोजित किया जा रहा है। डॉ. मिश्रा पीयू से रिटायर हुए थे, उन्हीं की याद में उनके पुत्र मयंक मिश्रा ने इस ट्रस्ट का गठन किया।
इन्हें किया गया सम्मानित

सोना देवी

हरियाणा के यमुनानगर के गांव हरेवा की रहने वाली सोना देवी का बड़ा बेटा कमलदीप पौने दो साल और छोटा बेटा मनोज केवल एक दिन का था जब उनके पति का अचानक निधन हो गया था। पति का खेतीबाड़ी का काम था। उस समय उन्हें लगा कि मानो उन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट गया हो। बच्चे छोटे थे। दिन रात एक ही चिंता सताती थी कि अब जीवन की गाड़ी कैसे चलेगी और खेतीबाड़ी कौन संभालेगा? लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लगभघ्ग तीस साल पहले बिना किसी अनुभव के उन्होंने खेतीबाड़ी का काम खुद संभालना शुरू किया। सोना देवी ने खूब मेहनत की और हर बार सोने जैसी फसल अपनी जमीन में उगाई। उनके पास अपने पांच एकड़ जमीन है, जिस पर उन्होंने खुद खेती की। वर्ष 2015-16 में सोना देवी के धान के खेत की औसत पैदावार प्रदेश में सर्वाधिक रही और इसके लिए उन्हें हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेस्ट फार्मर का पुरस्कार मिला।

कमलेश

पंचकूला निवासी कमलेश के पति लगभग चार दशक पहले उत्तर-प्रदेश के जिला गोंडा से चंडीगढ़ आए थे और उन्होंने चंडीगढ़ के सेक्टर-21 में कपड़े प्रेस करने का काम शुरू किया। शादी के बाद कमलेश भी चंडीगढ़ आ गईं और पति के साथ कपड़े प्रेस करने लगीं। बड़ा बेटा ओम इंजीनियर बनना चाहता था। उन्होंने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए खूब मेहनत की और कई चुनौतियों का डट कर मुकाबला किया। ओम जब बारहवीं कक्षा में था तो वह काफी बीमार हो गया और उसका एपेंडिक्स का ऑपरेशन कराना पड़ा जिससे उसे एक साल ड्राप करना पड़ा। ऐसे समय में कमलेश ने बेटे को हौसला दिया। नतीजा यह रहा कि अगले साल ओम ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की और उसका दाखिला पेक यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलाजी चंडीगढ़ में हो गया। ओम ने माइक्रोसाफ्ट और डेल जैसी कंपनियों में काम किया और अब उसका अपना बिजनेस है। कमलेश का छोटा बेटा अनूप भी अच्छी नौकरी कर रहा है।

जया दुग्गल

लुधियाना निवासी जया दुग्गल का संघर्ष उस समय शुरू हुआ जब नौवीं कक्षा में पढऩे वाला उनका बेटा राहुल अचानक मायलाइट्स पोस्ट वायरल बीमारी से पीडि़त हो गया और देश के कई बड़े डॉक्टरों ने यह कहते हुए जवाब दे दिया कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ऐसे समय में पति ने भी साथ छोड़ दिया। आर्थिक परेशानी भी बढ़ती गई और जया ने ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह से घर चलाया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने राहुल को भी प्रोत्साहित किया। राहुल ने लगभग 8 साल बेड पर लेटे लेटे बिताए। उसमें किताब पकडऩे की भी ताकत नहीं थी। जया दिन में आठ घंटे लगातार किताब को पकड़कर राहुल के सामने बैठती थी ताकि वह लेटे लेटे ही इसे पढ़ ले और याद कर ले। इसका नतीजा यह रहा कि राहुल ने बिना स्कूल गए पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में टॉप किया। और यह सिलसिला बारहवीं से लेकर बीसीए और एमसीए तक जारी रहा। राहुल चाहे लिख नहीं पाता है लेकिन कंप्यूटर पर उसकी उंगलियां तेजी से दौड़ती हैं। वह एक बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर है और अब उसकी एक ही इच्छा गूगल कंपनी में नौकरी करने की।

चंपा देवी

लगभग दो दशक पहले चंपा देवी अपने पति राकेश के साथ काम की तलाश में उत्तर-प्रदेश के जिला गोरखपुर से चंडीगढ़ आई थीं। उनके पति मजदूर हैं और दिहाड़ी पर मार्बल लगाने का काम करते हैं। चंपा देवी के पांच बचे हैं जिनमें से दो नेत्रहीन हैं और एक मूक व बधिर है। आर्थिक दिक्कतों के बाद भी चंपा देवी ने हिम्मत नहीं हारी और ठान लिया कि वे चाहे जो भी हो जाए अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाकर अपने पैरों पर खड़ा कराएंगी। वह पढ़ी लिखी नहीं हैं लेकिन अपने बच्चों का हौसला बढ़ाकर उन्हें आगे बढ़ाने में खूब मेहनत करती हैं। उनकी दो नेत्रहीन बेटियां चंडीगढ़ के ब्लाइंड स्कूल में पढ़ रही हैं और दोनों ही पढ़ाई के साथ साथ अन्य गतिविधियों में काफी होशियार हैं। बाकी बच्चे भी पढ़ाई में अव्वल आते हैं।

शशि बाला

हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के गांव मुबारिकपुर निवासी शशि बाला साधारण गृहणी हैं। वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हैं। छोटे बेटे नितिन के अंदर जब उन्होंने गाने की प्रतिभा देखी तो उन्होंने उसकी इस प्रतिभा को बड़े मंच पर ले जाने के लिए कड़ी मेहनत की। पति सरकारी नौकरी करते हैं और उनके पास समय का अभाव रहता था। ऐेसे में वह नितिन को अकसर गाना सिखाने के लिए ऊना से नंगल लेकर जाती थीं। जितनी मेहनत नितिन ने की उससे ज्यादा शशि बाला ने की। उनकी मेहनत रंग लाई जब नितिन जीटीवी के रियलिटी शो सारेगामापा लिटिल चैंप्स में काफी आगे तक गया। आज उसने बहुत कम उम्र में देश में अपनी पहचान बना ली है और उसे देश विदेश से कई सिंगिंग शोज के ऑफर मिल रहे हैं। शशि बाला का बड़ा बेटा वेटनिरी डॉक्टर की पढ़ाई कर रहा है।

हेमलता भाटिया

परवाणू में एक छोटे से कमरे में रहने वाली हेमलता भाटिया के तीन बच्चे हैं और तीनों ही बचपन से दृष्टिहीन हैं। बच्चों का इलाज भी कराया लेकिन इसका लाभ नहीं मिला। पति एक फैक्ट्री में काम करते थे। लेकिन वह बंद हो गई और अब वह छोटा मोटा काम करके किसी तरह से घर चला रहे हैं। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। लेकिन, उन्होंने अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। वह खुद सिर्फ आठवीं कक्षा पास हैं लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहती हैं और उन्हें शिक्षक बनाने की चाह रखती हैं। जीवन में हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढऩे वाली हेमलता के संघर्ष के कारण ही उनके तीनों बच्चे दृष्टिहीन होने के बाद भी पढ़ाई में तो काफी होशियार हैं ही खेलकूद में भी आगे रहते हैं। तीनों चंडीगढ़ के ब्लाइंड स्कूल के हॉस्टल में रह कर पढ़ रहे हैं।

करमजीत कौर (मोहाली)

मोहाली निवासी करमजीत कौर वन विभाग में चपड़ासी हैं। शादी के कुछ सालों के बाद ही पति का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उस समय उनके चारों बच्चे बहुत छोटे छोटे थे। पति के इलाज के लिए घर भी बिक गया था। वह खुद सिर्फ पांचवीं कक्षा तक पढ़ी थी और नौकरी का कोई अनुभव नहीं था। पति की मौत के बाद वह अंदर से टूट गईं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अकेले वह चार बच्चों को कैसे पालेंगी? उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। पति की मौत के बाद उन्हें पेंशन तो मिलने लगी लेकिन उससे गुजारा नहीं हो रहा था। उन्होंने हिम्मत कर नौकरी खोजनी शुरू की और बहुत मेहनत के बाद उन्हें चपड़ासी की नौकरी मिली। उनकी एक ही इच्छा है कि चारों बच्चों को उच्च शिक्षा देकर अपने पैरों पर खड़ा करें।

राज मणि

चंडीगढ़ के सेक्टर-52 में रहने वाली राज मणि के दो बेटे और एक बेटी है। उनके पति आटो रिक्शा चलाते हैं। तेज धूप हो या बारिश वह अपनी सेहत की परवाह किए बिना अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। घर में हमेशा पैसों का आभाव रहा है। लेकिन, इसका अहसास कभी भी बच्चों को नहीं होने दिया। हैंडबाल की खिलाड़ी बेटी पूजा ने जब अपनी काबलियत से कईयों को हरा कर मेडल जीतने शुरू किए तो उन्होंने ठान लिया कि वे उसे इस खेल में आगे बढ़ाएंगी और किसी चीज की कमी नहीं होने देंगी। आज राज मणि की बेटी पूजा कई राष्ट्रीय टूर्नामेंट में मेडल जीत चुकी हैं। राजमणि की बस एक ही तमन्ना है कि हैंडबाल में पूजा का देश में नाम हो और उनका घर मेडल्स से भर जाए।

राजिंदर कौर (मदर ऑफ द ईयर)

प्रभ आसरा संस्था की संचालक राजिंदर कौर उन 44 बच्चों की मां हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है। इन बच्चों की पूरी जिम्मेदारी वह बखूबी निभा रहीं हैं। राजिंदर कौर ने लगभग 12 साल पहले एक लावारिस बच्चों को पालना शुरू किया था। इसके बाद से उन्होंने बेसहारा बचों की मां बनकर उन्हें नई जिंदगी देनी शुरू की। अपनी पूरी जिंदगी उन्होंने इन बच्चों के लिए समर्पित कर दी है क्योंकि वह मानती हैं कि बेसहारा बच्चों को भी मां के प्यार की जरूरत है। वह खुद भी अभी भी पढ़ाई कर रही हैं और बच्चों को भी पढ़ाती हैं। आज प्रभ आसरा में 3 साल से लेकर 44 साल तक के 43 बच्चे हैं। इनमें 9 बच्चे दिव्यांग हैं।

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