‘पागल कुत्ता’, ‘नाली का कीड़ा’, ‘गंगू तेली’, ‘औरंगजेब’, ‘जल्‍लाद’

यह न तो किसी गली मोहल्‍ले की लड़ाई में होने वाली आपसी गाली गलौज है और न ही हिन्‍दी फिल्‍मों में नायक-खलनायक के बीच होने वाले संवाद का हिस्‍सा। ये सारी गालियां इन दिनों चल रहे लोकसभा चुनाव प्रचार का हिस्‍सा हैं। ये वो विशेषण या उपाधियां हैं जिनसे एक दल का नेता दूसरे दल के नेता को इन दिनों सार्वजनिक रूप से विभूषित कर रहा है।

ये जो गालियां मैंने ऊपर आपको बताई हैं, वे भी सिर्फ एक दिन यानी 8 मई को संदर्भित हुई हैं। बुधवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र (वाह स्‍थान का भी क्‍या संयोग है) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर हमलावर होते हुए अपना गुस्‍सा निकाला। वे बोले- कांग्रेस में मुझे गाली देने की होड़ लगी है।

उसके बाद प्रधानमंत्री ने वे गालियां गिनानी शुरू कीं जो बकौल उनके, उन्‍हें सार्वजनिक मंचों से दी गईं। उन्‍होंने गिनाया- इनके एक नेता ने मुझे ‘गंदी नाली का कीड़ा’ कहा, तो दूसरा मुझे ‘गंगू तेली’ कहने आ गया। इनके एक नेता ने तो मुझे ‘पागल कुत्ता’ भी कहा। इनके बड़े-बड़े नेताओं ने मुझे ‘मानसिक तौर पर बीमार’ बताया, ‘नीच किस्म का आदमी’ कहा।

मोदी बोलते रहे-‘’यहां तक कि ये भी पूछा गया कि मेरे पिता कौन थे ये नहीं मालूम, मेरे दादा कौन थे, ये नहीं मालूम। इनके एक और मंत्री ने मुझे वायरस कहा तो दूसरे ने दाऊद इब्राहिम का दर्जा दे दिया। मुझे Most Stupid PM कहा गया, जवानों के खून का दलाल कहा गया। इनके प्रेम की डिक्शनरी से मेरे लिए गद्दाफी, मुसोलिनी, हिटलर जैसे शब्द भी निकले।

जिस दिन प्रधानमंत्री कांग्रेस द्वारा खुद को दी जाने वाली गालियां गिनाते हुए लोगों से अपील कर रहे थे कि वे ये गालियों वाले वीडियो देश भर में फैलाएं, ताकि देश को कांग्रेस की सच्चाई पता लग सके, उसी समय मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस में कांग्रेस नेता संजय निरुपम उन्‍हें आधुनिक औरंगजेब और राजद नेता एवं बिहार की पूर्व मुख्‍यमंत्री राबड़ी देवी जल्‍लाद की संज्ञा दे रहे थे। एक दिन पहले प्रियंका गांधी उन्‍हें दुर्योधन बता ही चुकी थीं।

लेकिन यह सब प्रधानमंत्री और भाजपा का पक्ष है। हो सकता है कांग्रेस या विपक्ष की ओर से भी ऐसी ही कोई सूची तैयार की जा रही हो जिसमें प्रधानमंत्री द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ‘भ्रष्‍टाचारी नंबर वन’ बताए जाने से लेकर भोपाल में प्रज्ञा ठाकुर द्वारा मुंबई हमले में शहीद एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के खिलाफ कही गई बातें शामिल हों।

वैसे सही तरीका तो यही है कि ऐसे हर शब्‍द को अनदेखा, अनसुना किया जाए। पर वैसा होता नहीं। यदि सामने वाला ईंट फेंकता है तो जवाब में दूसरी तरफ से पत्‍थर ही बरसता है। गालियों के इस गोटमार युद्ध में कोई भी पराजित नहीं होना चाहता,भले ही समूची चुनाव प्रक्रिया इससे लहूलुहान हो रही हो।

दो दिन पहले जब मैंने फोनी तूफान पीडि़तों की मदद के मामले को लेकर प्रधानमंत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बैनर्जी के बीच असंवाद का जिक्र किया था तो हमारे एक सुधी पाठक ने टिप्‍पणी की थी कि ‘’इस की शुरुआत किसने की है?मोदी द्वारा जो अपशब्द कहे गए वो कभी किसी पीएम के शब्दकोष में नहीं थे। दूषित वातावरण के लिए मुख्यतः मोदी ही दोषी हैं।‘’

अब इस विवाद को इस नजरिये से देखें या कुरेदें तो शायद इसका अंत कभी न हो या फिर बहस वैसे ही प्रश्‍न में उलझ कर रह जाए कि पहले मुर्गी आई या अंडा। हमें तो यह देखना होगा कि इसमें हमारा यानी मीडिया का रोल या उसकी जिम्‍मेदारी क्‍या है। वहां एक अलग खेल चल रहा है। एक तरफ ये सारी गालियां बदस्‍तूर दिखाई जा रही हैं और दूसरी तरफ उसीके समानांतर इस गालीगलौज के खिलाफ पैनल चर्चाएं हो रही हैं। अरे भाई, यदि आप मानते हैं कि यह गालीगलौज गलत है तो आप खुद इसका प्रसारण मत करिये। लेकिन चस्‍का तो आपको भी लगा हुआ है ना, यह सब दिखाने का…

वैसे चुनाव आचार संहिता में इस बात का साफ उल्‍लेख है कि कोई भी उम्‍मीदवार किसी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्‍तेमाल नहीं करेगा, किसी धर्म, जाति, संप्रदाय आदि को लेकर कोई आपत्तिजनक बात नहीं कही जाएगी, पर आचार संहिता को देखता कौन है, उसको मानता कौन है… और चलिए कोई शिकायत हो भी जाए तो सबको पता है कि उस शिकायत का हश्र क्‍या होगा…

चुनावों के दौरान विवादास्‍पद या घृणास्‍पद भाषणों को लेकर मैं यूं ही कुछ संदर्भ खोज रहा था तो एक साल पुरानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्‍स (एडीआर) की एक रिपोर्ट हाथ लगी। इसमें बताया गया कि पिछली संसद में चुनकर आए सांसदों में से 15 सांसदों ने अपने हलफनामों में इस बात का उल्‍लेख किया है कि उनके खिलाफ ‘हेट-स्‍पीच’ के मामले दर्ज हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में 58 सांसदों और विधायकों ने अपने हलफनामों में मंजूर किया था कि उनके खिलाफ ‘हेट-स्‍पीच’के मामले हैं। लोकसभा के जिन 15 सांसदों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज थे, उनमें से दस भारतीय जनता पार्टी के थे। राज्‍यसभा के किसी भी सदस्‍य के खिलाफ ऐसा कोई मामला नहीं था।

राज्‍यों के हिसाब से देखें तो सर्वाधिक 11 विधायक तेलंगाना के थे जिनके खिलाफ हेट-स्‍पीच के मामले दर्ज थे। उसके बाद उत्‍तरप्रदेश के नौ, बिहार और महाराष्‍ट्र के 4-4, आंध्र और कर्नाटक के 3-3, उत्‍तराखंड और पश्चिम बंगाल के 2-2 और गुजरात, मध्‍यप्रदेश, तमिलनाडु, राजस्‍थान व झारखंड के एक-एक विधायक इस सूची में शामिल थे।

लेकिन सवाल ये है कि ऐसे हलफनामों में जब गंभीर किस्‍म के अपराध दर्ज होने का भी लोगों पर कोई असर नहीं पड़ता तो‘हेट-स्‍पीच’ जैसे मामले किस गिनती में आएंगे। और जब कोई सजा ही नहीं मिलनी या वोटों पर कोई खास असर ही नहीं होना तो फिर किसको पड़ी है कि अपनी जुबान पर लगाम लगाए…

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