कोरोना से पैदा भेदभाव और लांछन के खिलाफ धर्मगुरु एकजुट

भोपाल/ विभिन्न पंथों के धर्मगुरु 22 जून को एक मंच पर आये और इन्‍होंने कोविड-19 महामारी से उपजे भेदभाव के खिलाफ एकजुट होकर कार्य-योजना बनाने की बात कहीl ऑनलाइन संवाद में मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों से लगभग 100 पंथ-प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता एक ज़ूम वेबीनार में भागीदार हुए। दरअसल कोविड महामारी के कारण समाज में व्याप्त भय, भेदभाव और कोरोना पॉजिटिव को लांछित करने की तेजी से फ़ैल रही प्रवृत्ति एक बड़ी समस्या बन रही है।

इन बातों को देखते हुए स्वास्थ्य-कर्मियों, सफाईकर्मियों, आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और दिहाड़ी मजदूरों के प्रति भेदभाव और तिरस्कार की भावना को शीघ्र खत्म किया जाना जरूरी है। प्रवासन और पुनर्प्रवासन भी एक बड़ी चुनौती है। घर या कार्य-स्थल पर वापस लौटने वाले मजदूर और सामान्य लोग सन्देह के दायरे में आ रहे हैं। धर्मगुरुओं ने इन मुद्दों पर सरकार और सामाजिक संगठनों की मदद करने का भरोसा दिलाया।

मध्यप्रदेश में कार्यरत संस्था स्पंदन, पुणे स्थित स्फीयर इंडिया ने यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूएसएड के सहयोग से यह बेव-संवाद आयोजित किया। स्फीयर इंडिया के सीईओ विक्रांत महाजन ने संवाद में सभी धर्मगुरुओं और प्रतिभागियों का स्वागत किया। यूनिसेफ के मध्यप्रदेश प्रमुख माइकल जूमा ने धर्मगुरुओं/पांथिक संगठनों की भूमिका के बारे में कहा कि बच्चों और महिलाओं के जीवन-स्तर को सुधारने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। तिरस्कार और भेद-भाव विरोधी अभियान में इनका योगदान अहम है। संवाद कार्यक्रम को विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉ. रितु चौहान, अन्तरराष्ट्रीय संस्था यूएसएड की इंडिया मिशन डायरेक्टर रोमाना इएल हमजोई ने भी संबोधित किया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में भागवत कथावाचक देवकरण पंड्या ने कहा कि धर्मगुरुओं को राहत कार्यों और जागरूकता प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इस्लामिक स्‍कॉलर और ब्लॉगर डॉ. कायनात क़ाजी ने कहा कि महामारी की विषम स्थिति में स्थानीय स्तर पर ही रोजगार के अवसर विकसित किया जाना जरूरी है।  ब्रम्हाकुमारीज की डा. बी.के. रीना ने धर्मगुरुओं में एकता और समन्वय पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौर में लोगों का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। इस समय यह अत्यंत आवश्यक है कि हम सभी एकजुट होकर समाज को सकारात्मक सन्देश दें।

कथावाचक और वरिष्ठ पत्रकार पं. रमेश शर्मा ने भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा और जीवन पद्धति को सभी समस्याओं का समाधान बताते हुए व्यक्तिगत, भोजन, पानी आदि की स्वच्छता संबंधी आदतों पर गौर करने की सलाह दी। बौद्ध धर्मगुरु और बुद्ध भूमि धम्म्दूत संघ के अध्यक्ष भंते शाक्यपुत्र सागर थेरो ने कहा कि ध्यान और योग के द्वारा भय और तनाव को कम किया जा सकता है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी संतुलित करता है।

गुना के शहर क़ाजी नुरुल्ला यूसुफजई ने कहा कि यह जरूरी है है कि हम किसी भी संक्रमित व्यक्ति को नजरअंदाज न करें और शारीरिक दूरी बनाये रखें। हमें सामाजिक और भावनात्मक दूरी नहीं बनानी है। लोगों को भावनात्मक सहयोग देकर भय, भेद-भाव और तिरस्कार की भावना को दूर किया जा सकता है। जमायते इस्लामी मध्यप्रदेश के डॉ. अजहर बेग ने कहा कि कोविड-19 से बचाव के लिए जमायते इस्लामी ने हर प्रकार का प्रयास किया है। स्वच्छता को बढावा देने वाले इस्लामिक व्यवहार वुजू के महत्‍व का उल्लेख करते हुए उन्होंने विभिन्न पंथों के सकारात्मक संदेशों को अपनाने की सलाह दी।

सिख पंथ की प्रतिनिधि नीरू सिंह ज्ञानी ने सिख गुरुओं की वाणी और कर्म का स्मरण करते हुए भय और तनाव को दूर करने के लिए सामुदायिक प्रयासों पर बल दिया। उन्‍होंने सिख गुरुओं द्वारा अपनी आमदनी का 10 प्रतिशत सेवा कार्यों हेतु देने के सन्देश का हवाला भी दिया।

स्पंदन संस्था के सचिव डॉ. अनिल सौमित्र ने धर्मगुरुओं को समाज को दिशा देने वाली शक्ति बताया। धर्मगुरु सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी संचारक हैं। इनके संदेशों का प्रभाव अपने समुदाय और अनुयायियों के साथ सम्पूर्ण समाज पर होता है। सरकार, सामाजिक संगठन और मीडिया इनके प्रभाव का सकारात्मक उपयोग करे। इनका सन्देश भेदभाव और घृणा के खिलाफ अचूक उपाय हो सकता है।

संवाद का संचालन वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने किया। संवाद में यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी, स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वन्दना भाटिया, शिक्षा विशेषज्ञ एफ.ए. जामी, वैद्यराज अनिल डोगरा, रूपाली अवाधे, भाजपा प्रवक्ता नेहा बग्गा, रेणुका दुबे, नितिन भाटिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय अनेक प्रतिभागियों ने हिस्सेदारी की।

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