गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश ने इस सप्ताह एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर एक बार फिर साबित कर दिया है कि यदि सुविचारित कार्ययोजना और दृढ़ संकल्प के साथ कोई काम किया जाए तो उसमें सफलता निश्चित रूप से मिलती है। मध्यप्रदेश को भी यह उपलब्धि 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन, दुनिया में एक ही दिन में सबसे अधिक कोरोना वैक्सीन लगाने के रिकार्ड के रूप में हासिल हुई है। निश्चित रूप से यह प्रदेश के लिए गर्व की बात है।
मध्यप्रदेश ने 21 जून को 10 लाख लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य रखा था लेकिन उसके मुकाबले 16 लाख 91 हजार 967 लोगों को टीका लगा कर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है। जिस समय कोरोना महामारी के दूसरे चरण के उतार पर होने की खबरों के साथ साथ तीसरी लहर के आने की खबरें हवा में तैर रही हों और कोरोना के एक और ज्यादा घातक डेल्टा वेरियेंट के मध्यप्रदेश में आ जाने की बात न सिर्फ साबित हो गई हो बल्कि उससे एक मौत होने की पुष्टि भी की जा चुकी हो, वहां टीकाकरण का यह आंकड़ा बहुत बड़ी राहत देने वाला है।
हालांकि टीकाकरण की इस उपलब्धि पर विवाद के छींटे भी पड़े और कहा गया कि सरकार ने रिकार्ड बनाने के लिए जोड़तोड़ का सहारा लेते हुए 21 जून से पहले टीकाकरण की गति जानबूझकर धीमी कर दी थी ताकि निर्धारित तारीख को अधिक से अधिक टीके लगाए जा सकें। इस आरोप के समर्थन में तर्क के रूप में 21 जून से पहले और उसके ठीक अगले दिन यानी 22 जून के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा गया था कि, ये सरकार की चालाकी की पोल खोलने वाले हैं। लेकिन सरकार ने यह सफाई देते हुए आरोप लगाने वालों को चुप करा दिया कि जिस दिन टीकाकरण की संख्या कम बताई जा रही है वे दिन तो राज्य में टीकाकरण के अवकाश के दिन हैं। राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के अनुसार प्रदेश में सप्ताह में चार दिन ही निशुल्क टीके लगाए जा रहे हैं।
टीकाकरण के इस पूरे महाअभियान में राजनीति का प्रवेश हैरान करने वाला है। यदि किसी एक दिन लक्ष्य तय करके अधिक से अधिक लोगों को टीका लगाने के लिए कोई अलग से इंतजाम किए भी गए थे तो भी यह राजनीतिक वाद विवाद का मुद्दा नहीं बनना चाहिये था। कुछ भी हो आखिर इतनी संख्या में लोगों को टीके तो लगे ही हैं ना। हां, विवाद तब होता या आरोप तब जायज ठहराए जा सकते थे जब सरकार ने टीके न लगाकर भी संख्या को बढ़ाचढ़ाकर बताया होता या फिर रेकार्ड बनाने के चक्कर में और उसकी अफरा तफरी में लोगों के साथ कोई अनहोनी हुई होती। लेकिन अभी तक तो ऐसी कोई सूचना कहीं से नहीं आई है कि ऐसा कुछ हुआ है।
दरअसल कोरोना महामारी से निपटने में कई स्तरों पर बहुत अच्छा काम हुआ है तो कई स्तरों पर नादानियां और गंभीर चूक भी हुई है। लेकिन देखा यह जाना चाहिए कि जिस बात पर उंगली उठाई जा रही है वह उंगली उठाए जाने लायक है भी या नहीं। लोगों को बड़ी संख्या में टीका लग गया इस पर यदि सवाल खड़े किए जाएंगे तो राजनीतिक दृष्टि से भी यह कोई समझदारी भरा कदम नहीं होगा। निश्चित रूप से ऐसी उपलब्धियों से प्रचार का लाभ मिलता है, लेकिन प्रचार का लाभ यहां कौन नहीं ले रहा। पक्ष हो या विपक्ष जिसको जब मौका मिलता है वह इस तरह का लाभ लेने का मौका चूकना नहीं चाहता।
अलबत्ता कोरोना प्रकरण को लेकर ही कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर बात जरूर होनी चाहिए। ऐसा ही एक मुद्दा कोरोना के कारण होने वाली मौतों की संख्या का है। सरकार के तमाम दावों और सफाई के बावजूद इस बात से धुंध छंट नहीं सकी है कि आखिर प्रदेश में कोरोना के कारण मरने वालों की संख्या है कितनी? जगह जगह से आने वाली वे सारी की सारी खबरें पूरी तरह गलत तो नहीं ही हो सकतीं जो कहती हैं कि श्मशान या कब्रिस्तान में कोरोना से मृत लोगों के जलाए और दफनाए जाने वालों की संख्या और सरकारी रिकार्ड में दर्ज संख्या में भारी अंतर है।
इसी तरह खबरें ये भी हैं कि मृतकों के मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण नहीं लिख जा रहा है। ये बातें बहुत गंभीरता से ध्यान देने और उनका निराकरण करने की मांग करती हैं। ऐसा इसलिये भी है क्योंकि खुद सरकार ने कोरोना से मृत लोगों के परिवारजनों के लिए कई कल्याणकारी कदमों की घोषणा की है। अब यदि किसी की मृत्यु का कारण कोरोना लिखा ही नहीं होगा तो उन योजनाओं का लाभ आखिर उस परिवार को मिलेगा कैसे? एक तरह से यह लोगों के साथ धोखा होगा और माना जाएगा कि सरकार ने सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए ऐसी घोषणाएं की हैं।
ऐसे में जिस तरह सरकार ने पूरी योजना बनाकर, पूरे तंत्र को सक्रिय कर, दृढ़ संकल्प के साथ कोरोना टीकाकरण के वर्ल्ड रिकार्ड को हासिल कर लिया है, उसी तरह कोरोना से मरने वालों की वास्तविक संख्या का पता लगाने और उसे उजागर करने का काम भी पुख्ता योजना, सक्रियता और दृढ संकल्प के साथ, अभियान चलाकर पूरा किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि एक संख्या जो वाहवाही दिला दे उसे तो हर स्तर पर बुलंदी के साथ घोषित किया जाए और दूसरी संख्या जो ऐसा न कर पाने वाली हो उसे दबा दिया जाए।
हमें याद रखना होगा कि टीका लगने वाली संख्या यदि लोगों की जान बचाने वाली है तो मृतकों की संख्या भी सैकड़ों परिवारों को भविष्य में होने वाले कष्ट से बचाएगी, क्योंकि कोरोना से मौत की पुष्टि के चलते ही वे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के हकदार बनेंगे। ये दोनों ही काम जनहित के हैं, इसमें लाभ-हानि के आधार पर हेरफेर की स्थिति नहीं बनने दी जानी चाहिए।