राकेश अचल
इस सदी की सबसे रहस्यमय और राजनीतिक महामारी कोविड-19 से जूझते हुए पांच-छह महीने से ऊपर हो गए हैं। इस महामारी से निपटने के लिए लम्बे लॉकडाउन के बाद अनलॉक के भी अनेक चरणों से जनता गुजर चुकी है लेकिन न कोविड-19 का प्रसार रुका है और न जनता की तकलीफें कम हुईं हैं, उलटे जनता लॉकडाउन से भी बुरे दिनों का सामना कर रही है और अच्छे दिन हैं कि वापस आने को तैयार नहीं हैं।
दुनिया का सबसे लंबा लॉकडाउन झेलने वाले भारत में लॉकडाउन के दौरान जनता ने जितने कष्ट झेले उससे ज्यादा कष्ट अब अनलॉक के तीन से अधिक चरण पूरे होने के बाद झेलना पड़ रहे हैं। अब सवाल किये जा रहे हैं कि लॉकडाउन से आखिर देश को क्या मिला? देश हर तरह से बर्बाद हो गया। आपको बताना जरूरी है कि देश में पहला मरीज मिलने के 55 दिन बाद 25 मार्च से टोटल लॉकडाउन लगाया गया। उसके बाद चार बार कुछ-कुछ रियायतों के साथ लॉकडाउन बढ़ता रहा।
आखिरकार 67 दिन बाद देश से लॉकडाउन हटा और अनलॉक की प्रक्रिया शुरु हुई। 16 जुलाई तक देश में 10 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके थे, जिनमें से 80 फीसदी से ज्यादा मामले 1 जून के बाद ही आए। इसी तरह अब तक 24 हजार 929 मौतें हुई हैं, जिनमें से 78 फीसदी मौतें यानी 19 हजार 524 मौतें देश के अनलॉक होने के बाद हुई हैं।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में कोविड-19 से अब तक 21,756,357 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 771,635 लोगों की मौत हो चुकी है। इतनी तबाही के बाद भी अभी तक दुनिया के हाथ में इस महामारी से निपटने के लिए कोई निर्विवाद औषधि नहीं है। रूस का टीका भी विवादों से घिरा है। कोविड- 19 की वजह से जहाँ भारत में जनता परेशान हुई है वही सत्ता ने अपने स्वार्थ सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आप कह सकते हैं कि आपदा के इन पांच-छह माह को सरकार ने अपनी मनमानी के लिए खुलकर इस्तेमाल किया है।
देश में अवाम ही नहीं लोकतंत्र को भी बीमार कर दिया गया है। लोकतंत्र के लिए जरूरी कार्यपालिका और विधायिका पंगु बना दी गयी हैं, न्यायपालिका भी सीमित काम कर रही है। सब काम सीमित दायरे में किये जा रहे हैं और अधिकांश ऐसे हैं जिनसे जनता को नहीं, सत्ता को ज्यादा लाभ हो रहा है। अनलॉक के बावजूद न रेलें शुरू हुई हैं और न पूरी तरह हवाई सेवाएं। सड़क यातायात भी बेहद सीमित है।
जनता अघोषित रूप से आपातकाल का सामना कर रही है। विधानसभाएं और संसद ठप्प पड़ी है। विधानसभाएं केवल बहुमत साबित करने के लिए एक-एक दिन के लिए खुल रही हैं। सारे कारोबार ठप्प हैं लेकिन विधायकों की खरीद-फरोख्त पर कोई रोकटोक नहीं है। सरकारें ही नहीं अदालतें तक वर्चुअल चल रहीं हैं।
एक बीमार देश को इलाज के बजाय जानलेवा बहसों और गैर जरूरी उन्माद के सहारे ज़िंदा रखा जा रहा है। विपक्ष मरणासन्न है और मीडिया गोदीमय। लोकतंत्र की हिफाजत करे तो कौन करे? अदालतें अवमानना का गंडासा लिए बैठी हैं, वे भी पहले की तरह सहिष्णु नहीं दिखाई दे रहीं। मायलॉर्ड अदालतों के भीतर और बाहर संदिग्ध हो गए हैं। सब दूर भरोसे का संकट है, फिर भी जनता अदालतों का मान बनाये हुए है इस उम्मीद पर कि शायद किसी दिन उन्हें न्याय मिल ही जाएगा।
देश में सबसे लंबा लॉकडाउन लगाने वाली सरकार की दाढ़ी के अलावा कुछ और बढ़ता दिखाई नहीं दे रहा। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस उपलब्धि पर बीमार देश अवश्य गर्व कर सकता है। इस बात पर भी गर्व किया जा सकता है की माननीय प्रधानमंत्री जी इस आपदा में देश की जनता को अकेला छोड़कर एक दिन के लिए भी विदेश नहीं गए। मौजूदा दौर में ऐसा लगने लगा है कि देश की जनता को अब न बस की जरूरत है और न रेल की, हवाई जहाज में गरीब बैठता नहीं सो वे चलें या न चलें कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता। इसलिए अब देश की जीवनरेखा कही जाने वाली रेल को बेच दिया जाना उचित लगने लगा है। हवाई कंपनियाँ तो बिकने के लिए कमर कसे खड़ी हुई हैं ही।
धीरे-धीरे,चोरी-चोरी,चुपके-चुपके देश को बेचने की राष्ट्रवादी कोशिशों के खिलाफ विपक्ष बोले तो राष्ट्रद्रोही है और जनता बोलने की स्थिति में है नहीं, उसके सामने तो अभी दो जून रोटी का संकट है। जिस प्रबल शत्रु चीन का नाम न लेकर प्रधानमंत्री जी ने अनेक परोक्ष हमले किये हैं वो ही चीन अब हमारी बैंकों के हिस्से खरीद रहा है लेकिन सरकार मौन है। अब आप ही तय कीजिये कि आप क्या केवल चीनी माल का बहिष्कार कर चीन की कमर तोड़ रहे हैं या चीन आपकी बैंकों की हिस्सेदारी खरीद कर आपके देश की कमर तोड़ रहा है?
सोशल मीडिया को कठपुतली की तरह नचाते हुए देश में नफरत का कारोबार करने वाले लोग आपको राहत इंदौरी और मुनव्वर राणा पर हमले करने के लिए तैयार करते रहेंगे और आप वास्तविक मुद्दों से मुंह मोड़कर बैठे रहेंगे, बैठे रहिये! शायरों के सवालों के उत्तर किसी के पास नहीं हैं लेकिन उन्हें जिहादी बनाने का सारा सामान उनके पास है। आपको सचेत करना भी तो राष्ट्रद्रोह है, सो ये अपराध हम क्यों करने चले भला? आप घरों में कैद रहिये, सड़कों पर हमारी सरकार और नेता तो जान हथेली पर रखकर आपकी रक्षा कर ही रहे हैं न?
अब सड़कें जितनी सूनी रहेंगी कोविड-19 उतनी जल्दी मर जाएगा। जब उसे शिकार ही नहीं मिलेगा तब बचेगा कैसे वो। अनलॉक के दौरान आप सड़क पर आकर करेंगे भी तो क्या? आप धरना, प्रदर्शन करने के लायक रहे नहीं, प्रतिरोध की क्षमता आपने राष्ट्र पर होम कर दी है, मनोरंजन के लिए आपको घर बैठे सुविधाएं दी जा रहीं हैं। दंगल टीवी चैनल दिखा ही रहे हैं।
लॉकडाउन और अनलॉक का तजुर्बा झेलकर भी ज़िंदा अवाम को सम्मानित करने की जरूरत है। देश की जनता ने देश में पहली बार लगे आपातकाल के दौरान भी इतना धैर्य नहीं दिखाया था जितना इस आपदा के समय दिखा रही है। पूर्व के देशों में तो जनता ने कोविड की आड़ में सरकार द्वारा किये जा रहे तमाम प्रतिबंधों को धता दिखा दिया है। वहां की जनता से हमारी जनता की कोई तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए हम जीतेंगे, अवश्य जीतेंगे भले ही लोकतंत्र हार जाये। वैसे भी लोकतंत्र एक हारी हुई व्यवस्था बना दी गयी है, क्योंकि जनता कोविड-19 का शिकार जो है। जनता खुद को बचाये या लोकतंत्र को?