खबर थोड़ी पुरानी है, लेकिन इतनी भी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है कि भुला दी जाए। और फिर हाल ही में हुए घटनाक्रम ने तो उस खबर को और ज्यादा प्रासंगिक बना दिया है। 28 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के स्थापना दिवस समारोह में अपराध और पुलिस के संबंधों पर नए सिरे से विचार करने और अपराध की जांच में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करने की जरूरत बताई थी।
अपराधियों को पकड़ने से लेकर उनसे की जाने वाली पूछताछ और अभियोजन के तौर तरीकों का जिक्र करते हुए गृह मंत्री ने कहा था कि यह ‘थर्ड डिग्री’ का युग नहीं है इसके बजाय हम जांच के आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करें। बदलती चुनौतियों के अनुसार पुलिस बल में सुधार लाएं। अमित शाह का जोर इस बात पर भी था कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) और भारतीय दंड संहिता (IPC) में आवश्यक परिवर्तन के लिए सुझाव प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। दोषियों को जल्द पकड़ने और उन्हें सजा दिलवाने से पीड़ितों को न्याय तो मिलेगा ही, लोगों में अपराध करने की मानसिकता भी कम होगी।
देश में पुलिस सुधार का मामला कई दशकों से चर्चा में है। लेकिन केंद्र व राज्य स्तर पर कई आयोगों और कमेटियों की रिपोर्ट आ जाने के बावजूद कोई कारगर पहल अभी तक नहीं हो सकी है। ऐसी ज्यादातर रिपोर्टें धूल खा रही हैं। एक तरफ अपराध करने के तौर तरीके नए और आधुनिक होते जा रहे हैं, दूसरी तरफ पुलिस उसी परंपरागत तरीके और मानसिकता से उनसे निपट रही है। यही कारण है कि तमाम कोशिशों के बावजूद न तो पुलिस की छवि में अपेक्षित सुधार आ पाया है और न ही उसके कामकाज में।
पुलिस और अपराध का यह प्रसंग आज इसलिए भी याद आया क्योंकि 20 जून 2019 को झारखंड के धतकीडीह में 22 साल के तबरेज अली नाम के युवक की भीड़ द्वारा पिटाई के बाद मौत हो जाने के मामले में नया मोड़ आ गया है। आपको याद होगा तबरेज की मॉब लिंचिंग का यह मामला उस समय बहुत सुर्खियों में आया था। हालांकि फौरी तौर पर भीड़ के हिंसक होने का कारण तबरेज पर मोटर सायकल चोरी करने का शक बताया गया था। उस दौरान इस बात ने भी बहुत तूल पकड़ा था कि पिटाई करने वाली भीड़ ने तबरेज पर जय श्रीराम का नारा लगाने का दबाव डाला था। तबरेज की पत्नी ने इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया था कि उसके पति को समय पर इलाज भी नहीं मुहैया कराया गया।
उस घटना के बाद देश के कई बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखकर मांग की थी कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर तत्काल रोक लगे। फिल्म जगत की 49 हस्तियों ने मॉब लिंचिंग के बढ़ते चलन पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए एक ऐसा माहौल बनाने की मांग की थी जहां असहमति को कुचला नहीं जाए। उनका कहना था कि हमारा संविधान भारत को एक सेकुलर गणतंत्र बताता है, जहां हर धर्म, समूह, लिंग, जाति के लोगों के बराबर अधिकार हैं। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में मणिरत्नम, अदूर गोपालकृष्णन, रामचंद्र गुहा, अनुराग कश्यप जैसे लोग शामिल थे।
उस घटना का जिक्र संसद में भी हुआ था और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान अपने भाषण में खुद नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में कहा था कि- “उस युवक की हत्या का दुख यहां सबको है, मुझे भी है और होना भी चाहिए। दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा भी मिलनी चाहिए। … मैं मानता हूं कि देश के हर नागरिक की सुरक्षा की गारंटी हमारा संवैधानिक दायित्व है, साथ साथ मानवता के प्रति हमारी संवेदनशील जिम्मेादारी भी है, उसको हम कभी नकार नहीं सकते।‘’
पर तबरेज मामले में हाल ही में जो चौंकाने वाली जानकारी आई है वो यह है कि झारखंड पुलिस ने इस मामले को हत्या के मामले से बदलकर गैर इरादतन हत्या का मामला बना दिया है। यानी अब मामले के आरोपियों पर धारा 302 के बजाय 304 के तहत मामला चलेगा। पुलिस का कहना है कि मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में तबरेज की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया है इसलिए मामला सीधे हत्या का नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या का बनता है।
धारा 302 के तहत दोषी पाए जाने पर मौत या उम्रकैद के अलावा जुर्माने का प्रावधान है, जबकि 304 के तहत उम्रकैद, दस साल की कैद व जुर्माने के प्रावधान हैं। तबरेज की पत्नी परवीन का कहना है कि उसके पति की भीड़ ने पीट कर हत्या की थी। पहले यह केस धारा 302 (हत्या) के तहत दर्ज था, मगर बाद में प्रशासन के दबाव में इसे धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) में तब्दील कर दिया गया। यह दोषियों को बचाने की कोशिश है और पूरे मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए।
इससे पहले राजस्थान में गोतस्करी को लेकर पहलू खान नाम के व्यक्ति की भीड़ द्वारा हत्या के मामले में भी अदालत ने छह आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था। सवाल यह है कि सरेआम भीड़ द्वारा पिटाई के वीडियो सामने आने के बावजूद आरोपितों का इस तरह बरी हो जाना या फिर उनके खिलाफ लगी धाराओं को कमजोर किया जाना आखिर क्या दर्शाता है? क्या ऐसा नहीं लगता कि कुछ खास मामलों में पुलिस का तंत्र या तो जानबूझकर या फिर किसी दबाव में काम कर रहा है? एक तरफ स्वयं प्रधानमंत्री संसद में कहते हैं कि झारखंड के युवक की ‘हत्या‘ का हम सभी को दुख है, लेकिन पुलिस कहती है कि उसकी मौत ‘मॉब लिंचिंग’ से नहीं, हार्ट अटैक से हुई। एक तरफ पहलू खान को पिटते हुए पूरी दुनिया देखती है लेकिन दूसरी तरफ पुलिस को अदालत में उसकी हत्या साबित करने लायक साक्ष्य नहीं मिलते।
मामलों का दर्ज होना, उनमें अपराध की गंभीरता के मुताबिक धाराएं लगाया जाना, अपराध के साक्ष्य जुटाना, सबकुछ यदि कानून के मुताबिक न होकर किसी और मुताबिक हो रहा है तो, सचमुच पुलिस और उसकी कार्यप्रणाली को तत्काल बदलने की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस तत्परता और दृढ़ इच्छाशक्ति से धारा 370 को खत्म करने का जतन किया गया, उसी तरह पुलिस के कामकाज में बदलाव लाने की भी ईमानदार कोशिश होगी और जल्द होगी… धूल चेहरे पर हो तो आईना साफ करके उसे मिटाने की कोशिश बेकार है।