राकेश अचल
मध्यप्रदेश के कोरोना पीड़ित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को उनके सलाहकारों और नौकरशाही ने मिलकर मजाक का पात्र बना दिया। चिरायु अस्पताल में भरती मुख्यमंत्री की प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ सुनते बिना मास्क की तस्वीरें जारी कर इस चौकड़ी ने सोचा कि ऐसा करने से मुख्यमंत्री की मोदी भक्ति में चार चाँद लग जायेंगे, लेकिन हुआ उलटा। उनकी मोदी भक्ति में चार चाँद लगे या नहीं किन्तु उनके अनाड़ीपन में चार दाग जरूर लग गए।
कोरोना मरीजों के इलाज का एक निर्धारित प्रोटोकॉल है। इसके तहत उन्हें अस्पताल में भी मुंह पर मास्क लगाना अनिवार्य है साथ ही उनके वार्ड में बाहर का कोई व्यक्ति आ-जा नहीं सकता। लेकिन मुख्यमंत्री के वार्ड में न सिर्फ कोरोनाग्रास्त एक विधायक भेंट करने गए बल्कि सरकारी फोटोग्राफर को भी तस्वीरें लेने के लिए भेजा गया। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री जी अपने पलंग पर बिना मास्क के बैठे टीवी देखते दिखाए गए। इन सबने उन्हें हास्य का पात्र बना दिया।
देश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकेले कोरोना पीड़ित नहीं हैं। उनके जैसे अनेक वीवीआईपी कोरोनाग्रस्त हैं और इस समय भी इलाज करा रहे हैं, लेकिन किसी की भी ऐसी तस्वीरें नहीं सामने आईं। देश के नंबर वन अभिनेता अमिताभ बच्चन वार्ड में एकांत का कष्ट झेलकर अपने ब्लॉग पर लिख रहे हैं। लेकिन शिवराज सिंह के वार्ड को तो सरकारी दफ्तर बना दिया गया। उन्हें बिना मास्क के देखकर कौन नहीं उनका अनुसरण करना चाहेगा। उनके गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा तो पहले से मास्क का इस्तेमाल नहीं करते। यानि बड़े मियाँ तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानअल्ला।
प्रचार की भूख सभी नेताओं को होती है लेकिन इतनी भी नहीं जितनी की माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को है। वे क्या एक पखवाड़े तक मीडिया से अदृश्य नहीं रह सकते? क्या सचमुच उन्होंने कोरोना को एक मामूली सर्दी-जुकाम ही मान और समझ रखा है? यदि ऐसा है तो फिर मुझे कुछ नहीं कहना अन्यथा न सिर्फ उन्हें अपने किये पर शर्मिंदगी होना चाहिए अपितु चिरायु अस्पताल के प्रबंधन को भी अपने लिजलिजेपन पर प्रदेश से माफी मांगना चाहिए। चिरायु अस्पताल प्रबंधन पहले से कोरोना के इलाज के लिए सरकार के साथ सांठगांठ के आरोपों से घिरा है, ऊपर से ये नया किस्सा सामने आ गया है।
मुख्यमंत्री के सलाहकारों और नौकरशाहों की चौकड़ी ने गलती की, यदि वे मुख्यमंत्री जी को लगातार सुर्ख़ियों में बनाये रखना चाहते थे तो उन्होंने मुख्यमंत्री निवास में ही अस्पताल बना देना था, अन्यथा कोरोना का प्रोटोकॉल तो ये कहता है कि पूरे मुख्यमंत्री निवास को कुछ दिन के लिए सील कर दिया जाता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अर्थात आमजन के लिए कोरोना प्रोटोकॉल अलग है और मुख्यमंत्री जी के लिए अलग। अच्छा तो तब लगता जब मुख्यमंत्री जी चिरायु के बजाय हमीदिया अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होते। उन्हें वे सब सुविधाएं हमीदिया में भी मिल जातीं।
भाजपा के राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी माँ भी कोरोना का शिकार रह चुके हैं। उन्होंने इस रोग की तकलीफ को जाहिर करते हुए भाजपा की एक वर्चुअल रैली में कहा था कि-भगवान दुश्मन को भी ये रोग न दे जाहिर है कि कोरोना एक संगीन रोग है और उसके साथ जैसा मजाक शिवराज सिंह ने किया है वैसा किसी और जन प्रतिनिधि को नहीं करना चाहिए। मुझे मालूम है कि शिवराज सिंह के बारे में लिखी गयी इन पंक्तियों को मजाक में ही लिया जाएगा लेकिन हकीकत ये है कि इस घटना की प्रतिध्वनि दूर तक ही नहीं बल्कि देर तक सुनाई देगी।
किसी मुख्यमंत्री का कोरोनाग्रास्त होना पूरी सरकार का बीमार होना माना जाता है। भले ही मुख्यमंत्री ने अपनी बीमारी के दौरान डॉ. नरोत्तम मिश्र को रोजमर्रा के कामकाज के लिए प्रभार दे दिया हो, लेकिन मुझे नहीं लगता की मुख्यमंत्री की मंशा और सहमति के बिना प्रदेश में कोई प्रशासनिक पत्ता हिल सकता है। इस समय मुख्यमंत्री जी की बीमारी को लेकर पूरी सरकार को गंभीर रहना चाहिए। मुख्यमंत्री जी बेहतर इलाज के जरिये जल्द ठीक होकर अस्पताल के बाहर आएं ये हम सबकी मुराद है, लेकिन हम सब यानि प्रदेश की जनता ये भी चाहती है कि मुख्यमंत्री जी को मजाक का पात्र भी न बनाया जाये।
इस पूरी घटना को लेकर चूंकि तीर तो कमान से बाहर निकल गया है इसलिए कुछ किया नहीं जा सकता, यानि कुछ किया नहीं जाएगा। लेकिन आने वाले दिनों में इसकी पुनरावृत्ति न हो इसका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए, अन्यथा प्रदेश में कोरोना को अपने पांव पसारने से कोई नहीं रोक सकता। राजनीति तो वैसे भी कोरोना से कम ही डरती है। कोरोना के कारण भले ही सब कुछ स्थगित हो किन्तु राजनीति स्थगित नहीं है। राजनीतिक दलों की बैठकें, सभाएं जारी हैं। आपको याद रखना चाहिए कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह समेत कोरोना के 26927 मामले हैं जबकि 799 की मौत हो चुकी है। 18 हजार से ज्यादा ठीक भी हो चुके हैं। भगवान सबकी रक्षा करें।