Board Result : ये परीक्षा परिणाम आने के दिन हैं। यह समय अधिकांश छात्रों और उनके माता-पिता के लिए तनाव और चिंता से भरा होता है। जब परिणाम अपेक्षा के अनुसार नहीं आते, तो यह बच्चों के आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकता है। कुछ बच्चे इस स्थिति को संभाल लेते हैं, लेकिन कुछ बच्चे अवसाद, आत्मग्लानि और सामाजिक अलगाव का शिकार हो सकते हैं।
ऐसे समय में माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
सवाल यह है कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए क्याै उपाय किए जाएं, जिन्हेंा अपनाकर माता-पिता अपने बच्चों को इस कठिन समय में मानसिक रूप से सशक्त बना कर उन्हें अवसाद में जाने से रोक सकें। आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में…
1. पहले भावनाओं को समझें, प्रतिक्रिया नहीं करें
परीक्षा परिणाम आने के बाद बच्चों के मन में भय, शर्म, निराशा और हताशा हो सकती है। माता-पिता को सबसे पहले यह समझना होगा कि यह समय भावनात्मक सहारे का है, न कि डांटने, ताने देने या तुलना करने का।
बच्चे के साथ शांतिपूर्वक बैठें।
उसे अपनी बात कहने का पूरा अवसर दें।
सिर्फ सुनें, बिना टोका-टोकी या टीका-टिप्पणी के।
यह भावनात्मक जुड़ाव बच्चे को यह महसूस कराता है कि वह अकेला नहीं है।
2. तुलना से बचें
“देखो तुम्हारा दोस्त टॉप कर गया”, “तुम्हारे भाई ने 90 परसेंट लाए थे”, ऐसे वाक्य बच्चे के आत्मसम्मान को गहरी चोट पहुंचाते हैं।
हर बच्चा अलग होता है और उसकी क्षमताएं भी अलग होती हैं।
तुलना करने से बच्चे में हीन भावना जन्म लेती है, जो आगे चलकर गंभीर मानसिक समस्याओं का कारण बन सकती है।
3. सकारात्मक संवाद बनाएं
माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे बच्चे को यह भरोसा दिलाएं कि एक परीक्षा का परिणाम उसकी पूरी जिंदगी तय नहीं करता।
कहें: “असफलता भी सफलता की राह का एक हिस्सा है।”
कहें: “तुम्हारे प्रयास महत्वपूर्ण थे, और हम तुम्हारे साथ हैं।”
कहें: “हम अगली बार और बेहतर तैयारी करेंगे।”
यह सकारात्मकता बच्चे को दोबारा प्रयास करने का साहस देती है।
4. रोजमर्रा की गतिविधियों में शामिल करें
अवसाद की शुरुआत तब होती है जब बच्चा खुद को अलग-थलग महसूस करने लगता है। उसे परिवार की सामान्य गतिविधियों में शामिल करें। साथ खाना खाएं, टहलने जाएं, या कोई खेल खेलें। उसे अकेला न छोड़ें, लेकिन उस पर दबाव भी न बनाएं। इस तरह वह खुद को सामान्य माहौल में वापस लाने लगेगा।
5. स्कूल और शिक्षकों से संवाद करें
यदि परिणाम बहुत खराब हैं, तो यह जरूरी है कि माता-पिता स्कूल और शिक्षकों से बातचीत करें। शिक्षक अक्सर बच्चे की पढ़ाई की कमजोरी या व्यवहार में बदलाव को पहले देख लेते हैं। उनसे मिलकर समाधान की दिशा तय की जा सकती है। यह संवाद बच्चे की आगे की रणनीति बनाने में सहायक हो सकता है।
6. काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक सहयोग लें
यदि बच्चे में लगातार उदासी, अकेलेपन की इच्छा, पढ़ाई या खेल में रुचि की कमी, या आत्महत्या जैसे विचार आ रहे हों तो यह गंभीर संकेत हैं।
ऐसे में तत्काल मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लें।
बच्चों के लिए विशेष बाल-मनोचिकित्सक होते हैं जो इस स्थिति को समझने और सुधारने में मदद कर सकते हैं। यह मदद लेना कमजोरी नहीं, बल्कि जिम्मेदार अभिभावक होने का प्रतीक है।
7. अभिव्यक्ति के रास्ते खोलें
कई बार बच्चे अपने भीतर की भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते और यह उनके लिए घातक सिद्ध होता है। उन्हें डायरी लिखने के लिए प्रेरित करें। कला, संगीत, नृत्य या खेल जैसी रचनात्मक गतिविधियों में हिस्सा लेने को कहें। यह गतिविधियां बच्चों की भावनात्मक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देती हैं।
8. असफलता को सामान्य बनाएं
बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि जिंदगी में असफलता कोई अपमान नहीं बल्कि एक अवसर है।
अपने जीवन के अनुभव या किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की कहानी साझा करें जिनका रास्ता असफलताओं से होकर गया।
कहें कि “हर हार के पीछे सीख छिपी होती है।”
जब असफलता को सामान्य बना दिया जाता है, तो उसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है।
9. समीक्षा करें और नई योजना बनाएं
अब समय है यह समझने का कि क्या कारण थे परिणाम खराब होने के:
क्या बच्चे की रुचि विषय में नहीं थी?
क्या पढ़ाई का तरीका गलत था?
क्या समय प्रबंधन में समस्या थी?
बच्चे के साथ मिलकर इन सवालों के उत्तर ढूंढ़ना और नई रणनीति बनाना अगली सफलता की नींव रखता है।
10. सिर्फ अंक नहीं, कौशल की पहचान करें
हर बच्चा पढ़ाई में ही तेज हो, यह जरूरी नहीं। किसी में कला, किसी में तकनीक, किसी में खेल या लेखन का कौशल छिपा होता है।
माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे की प्रतिभा को पहचानें।
अगर बच्चे को किसी विशेष क्षेत्र में गहरी रुचि है, तो उसमें उसका मार्गदर्शन करें। इससे बच्चे में आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और वह अपनी रुचि के क्षेत्र में बेहतर कर पाएगा।
ध्यान रखें…परीक्षा परिणाम जीवन का अंत नहीं है, बल्कि एक मोड़ है जहां से नई शुरुआत की जा सकती है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करना उतना ही आवश्यक है जितना कि उनकी शिक्षा की चिंता करना। माता-पिता यदि धैर्य, समझदारी और प्रेम के साथ बच्चों का मार्गदर्शन करें, तो वे किसी भी विफलता को अवसर में बदल सकते हैं।
बच्चों की सफलता का मार्ग सिर्फ अंकों से होकर नहीं गुजरता, वह आत्मविश्वास, साहस और सहयोग से होकर भी जाता है और इसमें सबसे बड़ा सहारा माता-पिता ही होते हैं।