मोदी सरकार की (कोरी?) एंसरबुक और प्रोफेसर जोशी का ‘चश्मा’!

अजय बोकिल
भाजपा के वरिष्ठ मार्गदर्शक व पूर्व पार्टी अध्याक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में फिजिक्स पढ़ाते वक्त कैसे प्रोफेसर थे, यह तो पता नहीं, लेकिन मोदी सरकार के मूल्यांकन के मामले में वे बेहद ‘स्ट्रिक्ट वेल्युएटर’ लगते हैं। इतने सख्त कि जब इंदौर में उनसे मोदी सरकार के चार साल के काम काज पर नंबर देने के बारे में पूछा गया तो जोशीजी का तीखा तंज भरा जवाब था कि जब कॉपी में कुछ लिखा हो तो नंबर दूं! मतलब साफ है कि जब पूरी उत्तर पुस्तिका ही कोरी हो तो कितना भी उदार प्रोफेसर आखिर कितने नंबर दे सकता है?

मोदी सरकार अपनी चौथी सालगिरह को उपलब्धियों के पिटारे की तरह मनाए, खूब आंकड़ों के अनार फोड़े लेकिन पार्टी के बुजुर्ग मूल्यांकनकर्ताओं की नजर में वह पास होने लायक भी नहीं है। इसके पहले एक और मार्गदर्शक और पार्टी त्यागी यशवंत सिन्हा ने बेबसी से कहा था कि मोदी सरकार से लोकतंत्र को खतरा है। पार्टी के एक और घोर असंतुष्ट और बागी तेवर वाले पूर्व अभिनेता और वर्तमान सांसद शत्रुघ्न सिन्हा बोले थे कि आज ‍भाजपा सरकार ‘मोदी सरकार’ बन कर रह गई है। हालांकि चार साल के चौतरफा जश्न मनाने में डूबी मोदी सरकार ने इन तीनों टिप्पणियों पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं है, लेकिन पार्टी के भीतर यह अहसास जरूर है कि कहीं कुछ गड़बड़ है।

इंदौर में अभ्यास मंडल द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रतिष्ठित व्याख्यान माला में डॉ. जोशी ने मोदी सरकार का खुला पोस्टमार्टम किया। उन्होंने नीति आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर इसे आयोग का नाम क्यों दिया गया, जबकि इसका नाम नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (NIIT) है। इसके बारे में किसी को पता नहीं कि यह करता क्या है, क्या योजनाएं बनाता है और किसके लिए काम करता है? अटल सरकार में मानव संसाधन मंत्री रहे डॉ. जोशी ने शिक्षा के मुद्दे पर कहा, “निजी क्षेत्र हों या सरकार” कोई भी शिक्षा का विकास नहीं कर पा रहा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अगर पैसा नहीं दे पा रहा है तो सवाल किया जाना चाहिए कि आखिर इतना पैसा जा कहां रहा है?

हो सकता है मोदी रक्षक टीम डॉ. जोशी के बयान को खुन्नस अथवा अनभिज्ञता का प्रतीक साबित करे। क्योंकि पार्टी ने उन्हें जिस केबिन में ला बिठाया है, उसमें दरवाजे-खिड़कियां और छत ही नहीं है। कहा जा सकता है कि जोशीजी मोदी सरकार में कोई अहम भूमिका चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें वो पेपर जांचने के काम में लगा रखा है, जिसकी पूरी परीक्षा ही ऑनलाइन और ‘वर्च्युअल’ हो रही है। ऐसे उत्तर जांचने के लिए अलग चश्मा चाहिए।

यशवंत सिन्हा तो प्रोफेसर भी नहीं थे। राजनीति में आने से पहले आईएएस अफसर थे। उनको भी मोदी सरकार में भारी खोट नजर आ रही है। कारण कि मोदी सरकार की सिंगल पाइंट कार्यशैली में दूसरों के लिए कोई जगह ही नहीं है। यूं कहने को मंत्रिमंडल है, लेकिन ज्यादातर मंत्रियों की स्थिति शोभा की सुपारी की तरह है, जो सरकार की सालगिरह पर उपलब्धियों के आंकड़ों की बधाइयां गाने का काम करते हैं। कहते हैं कि ये आंकड़े भी पीआर एजेंसियों के हिसाब से तैयार किए जाने लगे हैं।

भाजपा में विरक्ति और आसक्ति की मिश्रित प्रतिमूर्ति बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी हैं। उन्होंने तो सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करना भी बंद कर दिया है। वे कभी कभार किसी शपथ ग्रहण समारोह में हाथ जोड़े खड़े नजर आ जाते हैं। इसी तरह भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा तो मार्गदर्शक मंडल में भी नहीं हैं। लेकिन वे जब तब पेवेलियन एंड से गुगली फेंकते रहते हैं।

यहां बुनियादी सवाल यह है कि सत्ता में रहने के चार साल बाद मोदी सरकार की झोली में आखिर कितनी उपलब्धियां हैं? अगर हैं तो वो डॉ. जोशी जैसी बूढ़ी और तपी आंखों को क्यों नहीं दिखती हैं? सरकार के कामकाज की कॉपी में कितने एंसर टू द पाइंट हैं या फिर पूरी कॉपी ही कोरी छोड़ दी गई है? क्या सरकार केवल एंसरबुक का कवर पेज हाथ में लेकर बल्लियों उछल रही है अथवा यह विरोधियों का दृष्टि दोष है?

याद करें कि मोदी सरकार ने जब तीन साल पूरे होने का सरकारी जश्न मनाया था, तब यह बात सामने आई थी कि सरकार करीब तीन दर्जन ऐसी योजनाएं चला रही हैं, जिन्हें वह (चुनावी) गेम चेंजर मानती है। इनमें नोटबंदी, जीएसटी, जन धन योजना, मेक इन इंडिया, अर्थ व्यवस्था का डिजीटलाइजेशन इत्यादि हैं। अब चौथे साल इस गेम चेंजर लिस्ट में दो और महत्वाकांक्षी योजनाओं का शुमार हुआ, ये हैं फसल बीमा योजना और मेगा हेल्थ केयर योजना।

सरकार शायद यह मानती है कि जितनी ज्यादा गेम चेंजर योजनाएं होंगी, उतनी ही जनता किसी योजना का जमीनी हिसाब पूछने की मनस्थिति में नहीं रहेगी। वैसे भी योजनाओं का ‍अंतिम सिरा आंकड़ों पर ही खत्म होता है। योजनाओं के धुआंधार और आंकड़ों के नवाचार से एंटी इनम्बेंसी नामक वायरस स्वयं सुप्तावस्था में चला जाता है। मजे की बात यह है कि जो सरकार जनता के लिए रात-दिन काम करने का दावा करती है, वही सरकार अपनी उपलब्धिायों को जनता के बीच ले जाने का खटकरम भी जी जान से और मेगा शो की तरह करती है।

उससे यह कौन पूछे कि जब सारी योजनाएं जनता के लिए हैं, उनसे लाभान्वित होने वाली भी जनता है तो फिर उसी जनता को यह बताना कि हमारी योजनाओं से तुम्हें इतना लाभ हुआ, बोलो हुआ है कि नहीं, गमी के माहौल में पंचर जोक सुनाने जैसा है।

बहरहाल अपने काम काज पर मुग्ध भाजपा ने मोदी सरकार की उपलब्धियों को गांव की चौपाल और हर चुनावी बूथ तक ले जाने की योजना तैयार कर ली है। इसमें रियलिटी शो की तरह बुद्धिजीवी सम्मेलन भी शामिल हैं। लेकिन इनके अलावा सरकार की कई अघोषित उपलब्धियां भी हैं, जो ‘अचीवमेंट’ में शामिल भले न हों, पर महसूस की जा सकती हैं। मसलन हर चुनाव को महाभारत की तरह लड़ना और जीतने का हरसंभव प्रयास, सरकार बनाने के लिए नीति-अनीति के चक्रव्यूह से बाहर निकलना, प्रत्येक घटना और उपलब्धि को मेगा इंवेट की तरह पेश करना, पूरी पार्टी को सिंगल विंडो में बदलना, धर्म-अधर्म की सुविधा सापेक्ष व्याख्या करना और अपने हर कदम का 56 इंची छाती से औचित्य सिद्ध करना।

यह बात अलग है कि सरकार की उत्तरपुस्तिका की ये ‘अलिखित उपलब्धियां’ अधिकृत एजेंडे में नहीं होंगी और डॉ. जोशी जैसे पुराने जमाने के प्रोफसरों को कभी नहीं दिखेंगी। वे इन ‘उपलब्धियों’ को न तो कभी समझ पाएंगे और न ही बूझ पाएंगे। अपने व्याख्यान के दौरान डॉ. जोशी ने एक बेकार-सा सवाल यह भी किया कि सरकार के पास विविध संसाधनों से इतना पैसा आ रहा है, वो किसकी जेब में और कहां जा रहा है, कोई तो बताए?

इसका वन लाइनर जवाब यह है कि पैसा विकास’ के काम में जा रहा है। विकास किसका, कैसे, कितना और कहां हो रहा है, ये एंसरबुक में लिखे जाने वाले जवाब हैं ही नहीं। इन्हें केवल ‘फील’ किया जा सकता है। इसीलिए डॉ. जोशी को अगर मोदी सरकार की एंसरबुक कोरी दिखी तो गलत क्या है?
(सुबह सवेरे से साभार)

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