अजय बोकिल
इधर रोहिंग्या शरणार्थियों के पुनर्वास को लेकर भारत ने क्लीयर स्टैंड लिया ही था कि उधर एमनेस्टी इंटरनेशनल की चौंकाने वाली रिपोर्ट आ गई कि पिछले साल रोहिंग्या आतंकियों ने म्यांमार के एक गांव में रहने वाले हिंदुओं का कत्लेआम किया था। ये खबर पिछले सितंबर में ही सामने आई थी कि लेकिन करीब सौ हिंदुओं को किसने मारा इसको लेकर भ्रम की स्थिति थी।
लेकिन अब मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने व्यापक पड़ताल के बाद बताया है कि हिंदू आतंकी रोहिंग्या मुसलमानों के प्रतिशोध का शिकार हुए। यह शर्मनाक घटना म्यांमार के राखाइन प्रांत के गांव खा मौंग सिक के पास हुई। खास बात यह है कि जो हिंदू मारे गए, वो भी रोहिंग्या ही हैं।
इस नरसंहार का खुलासा वहां से जान बचाकर बंगला देश भागकर आए हिंदुओं ने किया। उन्होंने बताया कि गांव में कुछ नकाबपोश आतंकी घुसे और उन्होंने हिंदुओं को घरों से निकाल कर मारना शुरू कर दिया। हालांकि म्यांमार की सेना ने भी उन सामूहिक कब्रों की जानकारी दी थी, जहां इन हिंदुओं को मारकर दफना दिया गया था। लेकिन तब इस पर कम लोगों ने भरोसा किया था।
एमनेस्टी की रिपोर्ट के मुताबिक यह नरसंहार 25 अगस्त 2017 को हुआ था, जिसमें 99 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था। यह वही दिन था, जिस दिन रोहिंग्या उग्रवादियों ने म्यांमार में पुलिस पोस्ट पर हमले किए थे और राज्य में जातीय संकट शुरू हो गया था। उग्रवादियों के हमले के बाद जवाबी कार्रवाई के रूप में म्यांमार की सेना ने ऑपरेशन चलाया जिसकी वजह से करीब 7 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों को यह बौद्ध देश छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ा।
इसकी पूरी दुनिया में आलोचना हुई। संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार सेना के ऑपरेशन को रोहिंग्याओं का ‘नस्ली सफाया’ बताया। सैनिकों पर रोहिंग्या नागरिकों की हत्या और गांव के गांव जलाने के आरोप लगे। जबकि रोहिंग्या उग्रवादियों पर भी दुर्व्यवहार के आरोप लगे। हालांकि उग्रवादी संगठन अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (आरसा) ने उस समय नरसंहार की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन ऐमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि नई जांच से यह स्पष्ट है इस संगठन ने 53 हिंदुओं को फांसी देकर मार दिया था।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की तिराना हसन के अनुसार ‘हमारी ताजा जांच से आरसा द्वारा उत्तरी रखाइन में बड़े पैमाने पर किए गए मानवाधिकारों के दुरुपयोग पर प्रकाश पड़ता है, जो मामले अब तक रिपोर्ट नहीं किए गए थे। यह अत्याचार भी उतना ही गंभीर मामला है जितना कि म्यांमार सेना द्वारा रोहिंग्याओं पर किए गए अपराधों का मामला।’
इस हिंसा से जान बचाकर भागे 8 लोगों से बातचीत के बाद मानवाधिकार समूह ने कहा कि दर्जनों लोगों को बांध कर, आंख पर पट्टी लगाकर शहर में घुमाया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उसी दिन बॉक क्यार नाम के एक दूसरे गांव में 46 हिंदू पुरुष, महिलाएं और बच्चे गायब हो गए।
यह रिपोर्ट इसलिए भी चौंकाने वाली है, क्योंकि रोहिंग्या संकट मूलत: म्यांमार के बौद्धों और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच का विवाद ही माना जाता है। ऐसे में रोहिंग्या आतंकी हिंदुओं को मारकर क्या संदेश देना चाहते थे, समझना मुश्किल है। वैसे भी म्यांमार में हिंदू आबादी 1 फीसदी से भी कम है। और फिर ये हिंदू तो सांस्कृतिक दृष्टि से भी रोहिंग्या मुसलमानों के ज्यादा करीब हैं, बजाए म्यांमार के बौद्धों के। इसके बाद भी वे अगर क्रूर हिंसा का शिकार हो रहे हैं तो यह वाकई चिंता का विषय है।
यह रिपोर्ट तब सामने आई है, जब भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपनी ताजा बंगला देश यात्रा के दौरान रोहिंग्या समस्या के निदान के लिए बहुत साफ स्टैंड लिया। उन्होंने बंगलादेश से रोहिंग्या शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए कोई ‘सुरक्षित, संरक्षित और स्थायी समाधान’ ढूंढने पर बल दिया। इसका बंगलादेश की शेख हसीना सरकार ने भी स्वागत किया। भारत सरकार इस मामले में म्यांमार सरकार से भी लगातार बातचीत कर रही है।
अब सवाल यह है कि एमनेस्टी की इस रिपोर्ट का रोहिंग्या समस्या पर क्या असर होगा? मोदी सरकार रोहिंग्याओं को वापस उनके देश भेजने के पक्ष में है। यह बात अलग है कि व्यावहारिक दिक्कतों और मानवीय तकाजों के चलते इसको ठीक से अंजाम नहीं दिया जा सका है। वैसे भी कितने रोहिंग्याओं को बंगला देश और म्यांमार वापस लेंगे, कहना मुश्किल है।
लेकिन एमनेस्टी की रिपोर्ट के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति भारत में धार्मिक विद्वेष की भावना फिर जोर पकड़ सकती है। क्योंकि उदार भारत ही शरणार्थी रोहिंग्याओं की परवरिश करता रहा है। बेशक सारे रोहिंग्याओं को इस निर्लज्ज हिंसा के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन फिर भी इस खुलासे से भारत में रोहिंग्या विरोधी भावना और भड़क सकती हैं।
इससे यही संदेश जाएगा कि रोहिंग्या मुसलमान कहीं भी शांति से नहीं रहना चाहते। इससे म्यांमार में पूरी ताकत से उनका दमन कर रही सेना के स्टैंड को बल ही मिलेगा। यह भी संदेश जाएगा कि भारत विभाजन से पहले धर्म के आधार पर राखाइन को म्यांमार से अलग कराने में नाकाम रहे रोहिंग्या मुसलमान अब हिंदुओं से इस तरह हिसाब चुकता करना चाहते हैं।
जाहिर है कि इस रिपोर्ट से रोहिंग्या समस्या और उलझेगी। इसके अलावा उपमहाद्वीप में भारत की क्षेत्रीय सूबेदार की भूमिका पर भी सवाल उठ सकते हैं। दूसरे, भारत सरकार के इस आरोप को बल मिलेगा कि रोहिंग्या मुसलमानों के सम्बन्ध आंतकियों से रहे हैं। हिंदुओं में यह मैसेज भी जा सकता है कि मुसलमान किसी के साथ भी शांति से नहीं रह सकते। निश्चय ही ऐसा हुआ तो वह दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा।
हो सकता है कि रोहिंग्या आतंकियों द्वारा यह कृत्य अंजाम देने के पीछे अन्य देशों के मुस्लिम आतंकी संगठनों का हाथ भी हो। इतना तय है कि यह रिपोर्ट रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों की समस्या के निदान के प्रयासों को और उलझाएगी। भारत को चाहिए कि वह अपना विवेक कायम रखे और निर्मम कृत्य के लिए सभी रोहिंग्याओं को दोषी न माने। इस समस्या का कोई भी समाधान मानवीय दृष्टिकोण से ही हो सकता है।
(सुबह सवेरे से साभार)