भाजपा लांचिंग से पहले अपने ‘चंद्रयान’ का लीकेज सुधारे

मध्‍यप्रदेश विधानसभा में 24 जुलाई को हुए घटनाक्रम को लेकर मुझे मित्रों और अन्‍य लोगों के सबसे ज्‍यादा फोन इस सवाल के साथ आए कि आखिर मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने राजनीतिक छेड़खानी की पहल क्‍यों की? हर कोई, यह सवाल इस तर्क के साथ पूछ रहा था कि, इससे तो भाजपा के लिए तोड़फोड़ की सुविधा हो जाएगी और वह अपने ऊपर लगने वाले आरोपों का यह जवाब देकर आसानी से बच निकलेगी कि पहल किसने की?

विपक्ष के दो विधायकों द्वारा एक सरकारी विधेयक के पक्ष में मतदान करने की घटना के भविष्‍य में क्‍या परिणाम होंगे, इस पर बात करने से पहले जो हुआ है उसे और बारीकी से देखने और समझने की जरूरत है। इसमें सबसे पहला तो यही है कि इसे फ्लोर टेस्‍ट न समझा जाए। भले ही उसकी व्‍याख्‍या और निहितार्थ फ्लोर टेस्‍ट की तरह निकाले जा रहे हों पर वास्‍तविक अर्थों में यह वैसा कोई शक्ति परीक्षण नहीं था।

विधेयक पर मतदान विपक्ष नहीं चाहता था। उलटे उसने तो विधेयक को समर्थन देते हुए इसे सर्वसम्‍मति से पारित कराने की मांग की थी। यह सत्‍ता पक्ष की सोची समझी रणनीति थी जो सरकार का समर्थन करने वाले बसपा विधायक ने, सर्वसम्‍मति से पारित हो सकने वाले विधेयक पर भी, डिविजन यानी मतदान कराने की मांग की। परंपरानुसार ऐसे मौकों पर मतदान नहीं कराया जाता लेकिन यह भी सच है कि डिविजन मांगना सदस्‍य का अधिकार है। उसे रोका भी नहीं जा सकता।

मतदान के दौरान एक और बात हुई जिसका संज्ञान लिया जाना चाहिए। बसपा विधायक संजीव सिंह संजू ने डिविजन की मांग, विधेयक में कुछ संशोधनों को लेकर की, यानी उन्‍हें वह विधेयक उस रूप में स्‍वीकार्य नहीं था जिस रूप में सदन उसे सर्वसम्‍मति से पारित करवाना चाहता था। लेकिन आश्‍चर्य है कि मतदान के दौरान संजीव सिंह ने भी यथावत उस विधेयक के पक्ष में मतदान किया। अब सवाल उठता है कि यदि वे विधेयक के पक्ष में ही थे तो फिर डिविजन मांगा क्‍यों गया था?

लेकिन अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं क्‍योंकि जो होना था हो चुका और जो हुआ वह विधानसभा के इतिहास में दर्ज हो गया। हां, इस घटना ने यह जरूर साबित कर दिया कि भाजपा के अपने ही घर की हालत इन दिनों ठीक नहीं चल रही है। और जो लोग हैरानी के साथ यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर राजनीतिक छेड़खानी की पहल कमलनाथ ने क्‍यों की तो उनके सवाल का जवाब यही है कि कमलनाथ के पास यह पुख्‍ता सूचना थी कि भाजपा का अपना घर बंटा हुआ है और वह सरकार गिराने की गीदड़ भभकी भले ही दे रही हो पर उसके पास सदन में इसे मुमकिन बनाने लायक समर्थन नहीं है।

भाजपा के दो विधायकों ने सरकारी पक्ष के साथ जाकर इस बात को उजागर कर दिया है कि जरूरत तो पहले भाजपा को अपनी ताकत तौलने की है। यह घटना भाजपा के तमाम दिग्‍गज नेताओं की राजनीतिक हालात पर पकड़ न होने या पकड़ ढीली पड़ जाने का नमूना है। वे गाल बजाते रहे और सत्‍ता पक्ष ने उन्‍हें तमाचा जड़ दिया। 24 जुलाई के घटनाक्रम को दुबारा देखें तो आप पाएंगे कि कमलनाथ ने गोपाल भार्गव से यूं ही नहीं कह दिया था कि आप तो आज ही अविश्‍वास प्रस्‍ताव ले आइए। सरकार की पूरी तैयारी थी, ऐसी कोई भी स्थिति निर्मित होने पर उससे निपटने की।

कमलनाथ ने सदन में यह राजनीतिक नट कौशल दिखाकर अपने लिए कुछ दिनों की मोहलत तो ले ही ली है। भले ही अंदरूनी रूप से भाजपा में सरकार गिराने का विचार और तैयारी दोनों ही चल रहे हों, लेकिन सत्‍ता का चांद पाने के लिए उसे अपने इस सियासी चंद्रयानकी लांचिंग से पहले उसमें आए लीकेज को ठीक करना होगा। जब तक यह लीकेजठीक नहीं हो जाता, लांचिंग संभव नहीं है। अब सत्‍ता परिवर्तन का कोई भी प्रयास करने से पहले भाजपा को हर कदम बहुत सोच समझकर उठाना होगा।

भाजपा के लिए सबसे बड़ा टॉस्‍क अपने तमाम बड़े नेताओं की महत्‍वाकांक्षाओं की टकराहट पर काबू पाना है। वह बात तो कांग्रेस में फूट की करती रही है, लेकिन विधानसभा के ताजा घटनाक्रम के बाद मीडिया में जिस तरह की खबरें आ रही हैं और सोशल मीडिया पर अपने अपने समर्थकों और पट्ठों से जिस तरह की खबरें चलवाई जा रही हैं, उनसे साफ लग रहा है कि कांग्रेसी विधायकों को काबू में करने से पहले भाजपा आलाकमान को अपने नेताओं को काबू में करना होगा।

पार्टी के दो विधायक कैसे कांग्रेस के साथ चले गए, इस पर प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि कांग्रेस अंदर ही अंदर तैयारी करती रही और भाजपा के दिग्‍गजों को इसकी भनक तक नहीं लगी। और यदि ऐसा होने की बात नेताओं को पता थी तो फिर पार्टी आलाकमान को यह पता लगाना होगा कि कौन किसको निपटाने के चक्‍कर में पार्टी को ही निपटवा रहा है। वैसे भी मध्‍यप्रदेश में भाजपा के साथ एक बड़ी दिक्‍कत यह हो गई है कि नेता पार्टी से बड़े हो गए हैं, या वे तो कम से कम ऐसा मानने लगे हैं।

और यही कारण रहा होगा कि कमलनाथ और उनके सहयोगियों ने बजट सत्र को परोक्ष शक्ति परीक्षण का माध्‍यम बनाया। जो घटित हुआ है उसकी एक दिशा भाजपा में भीतरी घमासान और तेज होने की तरफ भी जाती है। अब महत्‍वाकांक्षाओं की टकराहट के साथ आरोप प्रत्‍यारोप का सिलसिला भी बढ़ेगा। पद और सत्‍ता की महत्‍वाकांक्षा के अलग-अलग दबाव समूह काम करेंगे। उधर दिल्‍ली में बैठे बड़े नेता भी कोई कदम उठाने से पहले अपने ही विधायकों को लेकर विश्‍वास और अविश्‍वास के बीच झूलेंगे।

रहेगी या जाएगी की आशंकाओं के बीच झूलने वाली किसी भी सरकार को और क्‍या चाहिए, यही ना कि विपक्ष अपने ही घर में उलझा रहे। कमलनाथ ने यही किया है। उन्‍होंने सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाने की तैयारी कर रही भाजपा के बीच ही अविश्‍वास का सांड छोड़ दिया है। फिलहाल तो कांग्रेस इस सांड के घुसने से भाजपा में मची अफरा-तफरी का आनंद ले रही है। शायद उसका मानना है, आगे की आगे देखेंगे…  

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