कांग्रेस से पहले भाजपा को अपने आप से ही निपटना होगा

मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के अखबारों ने 26 जुलाई को पहले पन्‍ने पर ये खबरें प्रमुखता से छापी हैं कि 24 जुलाई को राज्‍य विधानसभा में जो हुआ उससे भाजपा का आलाकमान बहुत नाराज है। उसने राज्‍य के नेताओं से पूछा है कि ऐसा आखिर हो कैसे गया? विधानसभा में एक विधेयक पर मतदान के दौरान खुलेआम कांग्रेस सरकार के साथ खड़े नजर आए पार्टी के दो विधायकों की गतिविधियों पर किसी की भी नजर नहीं थी क्‍या? और यदि पार्टी के बड़े नेताओं को ऐसा होने की खबर थी तो उन्‍होंने एहतियाती कदम क्‍यों नहीं उठाए?

दरअसल भाजपा आलाकमान का गुस्‍सा इसलिए भी है कि मध्‍यप्रदेश की घटना ने समूची पार्टी की रणनीतिक काबिलियत की थू-थू करवा दी है। जो पार्टी अपनी राजनीतिक रणनीतियों से, तमाम विपरीत कयासों को ध्‍वस्‍त कर, प्रचंड बहुमत से केंद्र में दुबारा सत्‍तारूढ़ हुई और सरकार बनने के बाद जिसके अश्‍वमेध का घोड़ा रोकने की हिम्‍मत किसी में नहीं हुई, वही पार्टी अपना गढ़ कहे जाने वाले राज्‍य में ‘पॉलिटिकल पटखनी’ खा गई।

भाजपा आलाकमान सिर्फ इसलिए नाराज नहीं है कि पार्टी के दो विधायकों ने सरकार के साथ जाकर मतदान कर दिया, बल्कि उसकी नाराजगी का ज्‍यादा बड़ा कारण यह है कि आने वाले दिनों में उसने गैर भाजपा प्रदेश सरकारों का भविष्‍य तय करने से लेकर, राज्‍यसभा में बहुमत जुटाने तक की जो व्‍यूह रचना कर रखी है, मध्‍यप्रदेश की घटना का उस पर विपरीत असर होगा।

लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा देश की राजनीति में सबसे बड़ा और शक्तिशाली चुंबक बनकर उभरी थी। कई गैर भाजपा दलों के नेताओं, विधायकों, सांसदों का उसकी ओर खिंचे चले आने का सिलसिला जारी था। ताजा-ताजा उसने कर्नाटक में ‘ऑपरेशन चेंज’ को सफलतापूर्वक संपन्‍न किया था। कर्नाटक के बाद उसके इरादे आसमान पर थे। माहौल बन रहा था कि अन्‍य कई राज्‍यों में गैर भाजपा दलों के जनप्रतिनिधि सहज ही भाजपा की ओर खिंचे चले आएंगे। लेकिन मध्‍यप्रदेश प्रसंग ने इन सारी संभावनाओं को तगड़ा झटका दिया है।

गुस्‍सा इस बात का भी है कि प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं को यह पता था कि कांग्रेस अंदर ही अंदर भाजपा विधायकों के साथ खिचड़ी पका रही है। अपनी सरकार बचाने के लिए वह हर तरह की जोड़तोड़ में लगी है। उन विधायकों से संपर्क किया जा रहा है जो कभी कांग्रेस में रहे हैं या चुनाव के दौरान जिन्‍होंने कांग्रेस का टिकट न मिलने पर, भाजपा जॉइन की और भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर आए हैं। निजी बातचीत के दौरान मुझसे भाजपा के कई नेताओं ने कहा कि ‘बड़े लोगों’ को तो ऐसे विधायकों की संख्‍या भी पता थी और ये लोग चिह्नित भी थे।

लेकिन इतना इनपुट होने के बावजूद यदि मामले को नहीं संभाला जा सका तो यह सिर्फ और सिर्फ घरेलू मोर्चे पर सबकुछ ठीकठाक न होने या स्थितियां नियंत्रण से बाहर होने के कारण ही संभव हुआ। विडंबना देखिये कि जो पार्टी बढ़चढ़कर प्रदेश की कांग्रेस सरकार गिराने के दावे कर रही थी, उसकी हालत आज यह है कि वह उन दो विधायकों के खिलाफ कार्रवाई के सवालों से भी बच रही है, जो सरकार के पक्ष में मतदान करने के बाद खुलेआम मुख्‍यमंत्री कमलनाथ के साथ प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में नजर आए थे।

भाजपा अब अपनी साख बचाने के लिए यह बयान दे रही है कि ये दोनों विधायक अब भी उसके ही साथ हैं और पार्टी उनसे बात करेगी। चूंकि विधानसभा में विधेयक पारित किए जाने के दौरान कोई व्हिप जारी नहीं किया गया था, इसलिए इन दो विधायकों पर कार्रवाई का आधार भी नहीं बनता। हां, ज्‍यादा से ज्‍यादा पार्टी मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी और ब्‍योहारी विधायक शरद कोल को उनके पार्टी विरोधी बयान पर कारण बताओ नोटिस जारी कर सकती है। लेकिन आज की नाजुक परिस्थितियों में उसके लिए ऐसा करना भी कठिन होगा।

पिछले कुछ दिनों से पूरे देश में भाजपा अलग अलग दलों के लोगों को धड़ल्‍ले से पार्टी में शामिल कर रही है। लोग भी भाजपा में अपना भविष्‍य देखते हुए इसकी तरफ रुख कर रहे हैं। लेकिन मध्‍यप्रदेश प्रसंग में एक और बात भाजपा को उलझन में डालने वाली है और वो ये कि पार्टी से दूरी बनाने वाले विधायकों ने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया है कि भाजपा में उनका दम घुट रहा है। नारायण त्रिपाठी का कहना है कि- ‘’भाजपा तिलक लगाकर बुलाती है, फिर हलाल कर देती है। दूसरे दल से जाने वाले वहां राजनीति करने लायक नहीं बचते।‘’ इस तरह के बयान भाजपा की ओर आकर्षित होने वाले नेताओं को, दल बदलने के बाद, अपने राजनीतिक भविष्‍य के प्रति आशंकित कर सकते हैं।

उधर दो विधायकों का समर्थन पाने के बाद ऐसा नहीं है कि कमलनाथ सरकार चुप बैठ गई है। ऐसा लगता है कि उसने भाजपा के घर में पड़ी दरारों और खाइयों को बखूबी भांपते हुए उसका राजनीतिक फायदा उठाने की ठान ली है। 26 जुलाई को ही खबर आई कि आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्‍ल्‍यू) ने ई-टेंडर घोटाले में पूर्व जल संसाधन मंत्री व भाजपा के बड़े नेता नरोत्‍तम मिश्रा के दो पूर्व सहयोगियों निर्मल अवस्‍थी और वीरेंद्र पांडे को गिरफ्तार कर लिया है। आने वाले दिनों में पूर्व मंत्री मिश्रा पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। शायद कांग्रेस इसी तर्ज पर प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं को अलग अलग मामलों व मोर्चों पर अलग-थलग (सिंगल आउट) करके उनकी आपसी फूट का फायदा उठाने की फिराक में है।

24 जुलाई के घटनाक्रम के बाद भाजपा की भीतरी खींचतान सतह पर आने भी लगी है। एक समय पार्टी के कार्यालय मंत्री और राज्‍यसभा सदस्‍य रहे वरिष्‍ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने बगैर किसी का नाम लिए, बड़े नेताओं को कठघरे में खड़ा करते हुए, बयान दिया है कि- ‘’कुछ लोगों ने पार्टी पर अपना प्रभुत्‍व कायम करने के लिए निष्‍ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की। ऐसे लोगों को भाजपा में शामिल किया, जिनका पार्टी की रीति-नीति और सिद्धांत से कोई लेना-देना नहीं था। आज जो हालात बने हैं, ये उसी वजह से हैं।‘’

रघुनंदन शर्मा का यह बयान चीख-चीख कर कह रहा है कि कांग्रेस से निपटने से पहले भाजपा को मध्‍यप्रदेश में पहले खुद अपने आप से निपटना होगा…

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