आज के बाद

जब लोग पूछेंगे

तब मैं कहूंगा

यह पिछले साल की बात है

उसके बाद शायद

यह कहूं

यह दो साल पहले की बात है

फिर तीन… चार.. पांच…

और ऐसे ही साल दर साल

वह बात पिछली… और पिछली

होती चली जाए

लेकिन यादों का सूरज

कभी अस्‍त नहीं होता

उसकी धूप

आंगन से कभी नहीं जाती

यादों का कैलेण्‍डर नहीं बदलता

कुछ पल, कुछ पहर, कुछ दिन, कुछ रातें

कुछ सप्‍ताह, कुछ माह और कुछ साल

कभी नहीं बदलते

इसी तरह रहना तुम मेरे साथ

बिना कैलेण्‍डर का हिस्‍सा बने

रहोगे ना…?
– गिरीश उपाध्‍याय

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