अरे भाई, वे ‘अपराधियों’ की निगरानी में ही तो लगे थे

भोपाल सेंट्रल जेल फरारी कम मुठभेड़ कांड में शुक्रवार को वो रहस्‍य सामने आया जो बरसों से उजागर है। यह उजागर रहस्‍य बताता है कि भोपाल सेंट्रल जेल में कैदियों की निगरानी के लिए रखे गए 160 जेल प्रहरियों में से 80 प्रहरियों की तैनाती मंत्रियों और अफसरों के बंगलों पर थी।

वैसे यह सूची गुरुवार रात से ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी, लेकिन शुक्रवार को मुख्‍य मीडिया में यह प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित हुई। यह सूची कहती है कि कुल प्रहरियों में से आधे तो जेल से बाहर तैनात थे। और यह तैनाती मुख्‍यमंत्री व जेल मंत्री से लेकर मुख्‍य सचिव, प्रमुख सचिव जेल और जेल के आला अफसरों के बंगलों तक में थी। ताज्‍जुब की बात तो यह है कि पूर्व जेल मंत्री को भी इस सेवा का लाभ अभी तक मिल रहा है।

बताया गया है कि यह जानकारी मानवाधिकार आयोग द्वारा मंगाए गए जेल के रिकार्ड से सामने आई है। हालांकि जेल महानिदेशक संजय चौधरी ने इससे इनकार किया है और उनका कहना है कि ‘’आधे प्रहरी किसी और ड्यूटी पर लगा दिए जाएं यह बात विश्‍वसनीय नहीं लगती।‘’

लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसा हमेशा से होता रहा है। जेल विभाग और होमगार्ड में काम करने वालों से उनका मूल काम छोड़कर हर तरह का काम लिया जाता रहा है। जिसका काम जेल में अपराधियों पर निगरानी रखने का है, वह साहब के लॉन में खेलते कुत्‍तों की निगरानी करता है। और जिसे कानून व्‍यवस्‍था संबंधी काम में पुलिस का सहयोग करने के लिए रखा गया है, वह साहब लोगों के घरों पर बच्‍चों के पोतड़े धोता या घर का पोछा लगाता हुआ मिलता है।

इस सेवा कार्य में सबसे बुरी हालत महिला कर्मचारियों की होती है। कई मामलों में वे अकल्‍पनीय शोषण का शिकार बनती हैं। नौकरी का डर दिखाकर, उन्‍हें किस किस बात के लिए मजबूर किया जाता है, इसके किस्‍से सत्‍ता और प्रशासन के गलियारों कीऑफ द रिकार्ड चर्चाओं में बहुत आम हैं। हालांकि शुक्रवार को जेल प्रहरियों की जो सूची सामने आई है, उसमें भी वो सच कभी सामने नहीं आएगा या आने नहीं दिया जाएगा कि जेल विभाग की महिला कर्मचारियों को कब-कब, कहां-कहां और कैसी-कैसी ड्यूटी पर लगाया गया और उनके शोषण की व्‍यथा कथा क्‍या है।

सरकार में यदि हिम्‍मत है और वह जेल की व्‍यवस्‍थाओं में सुधार करना ही चाहती है, तो एक जांच अलग से इस बारे में बिठाए कि जेल और होमगार्ड जैसे विभागों में काम करने वालों का मूल काम क्‍या है और उनसे वास्‍तव में काम लिया क्‍या जा रहा है। इनमें भी खासतौर से महिला कर्मचारियों की स्थिति क्‍या है और उनसे क्‍या करवाया जा रहा है।

मुझे यह लिखते हुए भी हिचक हो रही है, लेकिन यह सच है कि एक जमाने में आदिवासी जिले बस्‍तर के बारे में कहा जाता था कि वहां के गांवों में पलने वाले बच्‍चों के नाक नक्‍श आदिवासियों जैसे नहीं दिखते। भले ही यह बात किसी और अंदाज में कही जाती हो, लेकिन इसके पीछे बस्‍तर के लोगों के शोषण की दर्दनाक कहानी है। आज यदि बस्‍तर में गुस्‍सा और असंतोष है,तो उसका एक बड़ा कारण सदियों से होने वाला यह शोषण है।

यही हाल जेल जैसे विभागों का है। यहां इस तरह की भर्राशाही या तानाशाही इसलिए भी चल जाती है, क्‍योंकि इन महकमों से हर आदमी का रोज काम नहीं पड़ता। आप मानें या न मानें लेकिन असलियत यही है कि जेल में न तो भारत का संविधान चलता है और न ही देश का कानून। वहां या तो जेलर का कानून चलता है या दुर्दान्‍त अपराधियों का। और ज्‍यादातर मामलों में ये दोनों ही मिलकर काम करते हैं। यह ऐसा नेक्‍सस है, जिसे तोड़ना किसी के बूते की बात नहीं। अमिताभ बच्‍चन की एक फिल्‍म का मशहूर डायलॉग है- ‘’हम जहां खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है।‘’ उसी तरह जेल में जो कह दिया जाए,कानून वहीं से शुरू होता है और यदि उस कानून का पालन नहीं हुआ, तो पूरी किताब खत्‍म भी वहीं हो जाती है।

वैसे मुझे मंत्रियों और अफसरों के बंगलों पर जेल प्रहरियों की तैनाती की बात के खबर बन जाने पर थोड़ा आश्‍यर्च भी है। अरे,इन प्रहरियों का काम अपराधियों पर निगाह रखने का ही था ना… वे यही तो कर रहे थे…! जेल में न सही, कहीं और सही। हां, अब यदि आप में हिम्‍मत है, तो जो भी और जितने भी प्रहरी नेताओं व अफसरों के बंगलों पर तैनात थे, उनसे उगलवा लो कि वहां क्‍या क्‍या होता था…।

मैं शर्त लगा सकता हूं कि यदि उन्‍होंने हकीकत उगल दी, तो तूफान आ जाएगा…। चूंकि तूफान कोई लाना नहीं चाहता,इसलिए न तो ऐसी बातें कोई प्रहरी से पूछेगा और न ही कोई प्रहरी बोलेगा…।

इस बार बड़ा मामला हुआ है, इसलिए थोड़े दिन हल्‍ला मचेगा। निश्चिंत रहिए… चंद महीनों में हालात फिर पुराने ढर्रे पर लौट आएंगे, प्रहरियों के बूटों की खट-खट जेल के गलियारों के बजाय बंगलों पर ही गूंजेगी… अगला हल्‍ला भी तभी मचेगा, जब फिर से कोई जेल ब्रेक होगा। तब तक देखते रहिए यह तमाशा और इंतजार करते रहिए, जेल ब्रेक पार्ट- टू का…

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