चार दिन पहले मैंने इस बात पर लिखा था कि राजीव गांधी की इस चुनाव में एंट्री क्यों हुई? मैंने इसके जो कारण गिनाए थे वे अपनी समझ और विश्लेषण के आधार पर थे। लेकिन मैं देख रहा हूं कि परिस्थितियां जिस तरह से मोड़ ले रही हैं वे बता रही हैं कि तीर निशाने पर बैठा है। लोग भले ही राजीव का नाम घसीटने को भाजपा या मोदी की भूल अथवा सेल्फ गोल मान रहे हों, पर भाजपा अपनी रणनीति में सफल होती नजर आ रही है।
पहले जरा इस मामले की शुरुआत को फिर से याद कर लें। राजीव गांधी का नाम मोदी ने पहली बार 4 मई को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ की चुनावी रैली में लिया था। कांग्रेस अध्यक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था- ”आपके (राहुल गांधी) पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे–बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था। लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया।‘’
मोदी का यह बयान छह मई को होने वाले मतदान के पांचवें चरण से दो दिन पहले आया था। उसके बाद जब बयान पर बवाल मचा तो बजाय डिफेंसिव होने के मोदी ने छह मई को झारखंड के चाईबासा में राजीव गांधी पर ही कांग्रेस को चुनौती दे डाली और कहा- आज का चरण तो पूरा हो गया, लेकिन आगे दो चरण बाकी है… अगर आपको पूर्व प्रधानमंत्री जिन पर बोफोर्स के भ्रष्टाचार के आरोप है, उनके मान सम्मान(की इतनी चिंता है तो) आइये मैदान में, उस मुद्दे पर चुनाव लडि़ये… देखिये खेल कैसा खेला जाता है…’’
ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के शब्दों पर गौर ही नहीं किया। वे खुद कह रहे थे कि आइये मैदान में और फिर देखिये कि ‘खेल कैसा खेला जाता है।‘ यानी मोदी कांग्रेस के साथ एक खेल खेल रहे थे, जिसे कांग्रेस समझ ही नहीं पाई और जाने-अनजाने उसी खेल या जाल में उलझ गई जिसमें मोदी उसे उलझाना चाहते थे।
पिछले पांच सालों में जिन लोगों ने भी मोदी को बारीकी से ऑब्जर्व किया है वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि मोदी न सिर्फ खतरों के खिलाड़ी हैं बल्कि उन्हें चूहे बिल्ली जैसे खेल खेलने में बड़ा मजा आता है। वे जानबूझकर अपने प्रतिद्वंद्वी को खेलने के लिए लंबी रस्सी देते हैं और जब प्रतिद्वंद्वी खेलते खेलते थक जाता है तो उसी रस्सी को फंदा बनाकर उसे लटका देते हैं।
मजा देखिये, कि अभी दो चरणों में लोकसभा की 118 सीटों पर मतदान होना बाकी है और इस समय देश में बहस किस बात पर हो रही है? बहस के केंद्र में 28 साल पहले दिवंगत हुए एक प्रधानमंत्री की कथित पिकनिक है। भारत जैसे विराट लोकतंत्र के निर्णायक दौर को मोदी ने ‘विराट’ नाम के जहाज पर मनाई गई कथित पिकनिक पर केंद्रित कर दिया है।
दरअसल मुद्दा राजीव गांधी कभी थे ही नहीं, उनके नाम को तो दो बातों के लिए मोहरा भर बनाया गया। पहली बात यह कि पूरी बहस को भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से हटाकर किसी निरर्थक मुद्दे पर केंद्रित कर दिया जाए। राजीव का नाम इसलिए चुना गया क्योंकि राजीव इस देश के सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री ही नहीं थे वे कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रभावी महासचिव प्रियंका गांधी के पिता भी थे। कांग्रेस के ये दोनों स्टार प्रचारक मोदी पर सबसे अधिक हमलावर हैं। स्वाभाविक है कि जब किसी के पिता पर कोई आरोप लगेगा तो उसकी संतानें इसका प्रतिकार करेंगी ही।
हालांकि नरेंद्र मोदी के बयान पर राहुल गांधी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आप हमसे, हमारे खानदान से भले ही कितनी भी नफरत करें, मेरे दिल से आपके लिए प्यार ही निकलेगा। उधर प्रियंका ने मोदी के जाल से बचते हुए दिल्ली की रैली में प्रधानमंत्री को प्रतिचुनौती देते हुए कहा कि चुनौती की ही बात है तो मैं आपको चुनौती देती हूं, आइए नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी के मुद्दे पर चुनाव लड़ लें।
लेकिन ऐसी बातें आज के मीडिया को भला कहां भाती हैं। उसने इन चुनौतियों और प्यार की बातों को नजरअंदाज करते हुए बहस को राजीव गांधी पर ही केंद्रित रखा। और इसी बीच जब विराट जलपोत की कथित पिकनिक वाला प्रसंग उछला तो मीडिया भी उसी दिशा में दौड़ पड़ा। नौसेना कमांडरों के बयान आने लगे कि वो पिकनिक नहीं आधिकारिक यात्रा थी तो दूसरी ओर कई मीडिया प्लेटफार्म अपने आर्काइव्ज में से वे खबरें निकाल लाए जो बता रही थीं कि वो पिकनिक ही थी।
भाजपा को यही तो चाहिए था। मूल मुद्दों से ध्यान हटाकर कांग्रेस को फालतू के मुद्दे में उलझा देना ही तो उसका लक्ष्य था और वह बहुत हद तक कामयाब भी हुई। राजीव प्रसंग को उठाने के पीछे दूसरा बड़ा कारण मतदान के छठे और सातवें चरण में शामिल पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ जैसे राज्यों के चुनाव भी हैं। यहां सिख मतदाता बड़ी और निर्णायक संख्या में हैं। भाजपा की कोशिश रही होगी कि राजीव गांधी के बहाने यहां सिख विरोधी दंगों के घाव हरे किए जाएं।
बहेलिया जब जाल बिछाता है तो उसे खुद भी पता नहीं होता कि उसमें कौन कौनसा पक्षी आकर फंस जाएगा। और देखिए, वही हुआ, इस जाल में सैम पित्रोदा नाम का पक्षी आकर फंस गया। इससे पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक मामले में बयान देकर कांग्रेस की फजीहत करा चुके, पित्रोदा महाशय ने राजीव प्रसंग को लेकर चल रही (या चलाई जा रही) बहस के बीच सिख विरोधी दंगों को लेकर बोल डाला कि-‘’आप (बीजेपी) तो लगातार झूठ बोलते ही रहते हैं, …1984 का मुद्दा क्या है, आप तो अपनी बात करिए। आपने पांच साल में क्या किया, 84 में हुआ तो हुआ… आपने क्या किया।’
और इस बयान से जो बवाल मचा है वह कांग्रेस से अब संभाले नहीं संभल रहा। पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदरसिंह ने इस पर नाराजी जताते हुए कहा कि यह जख्मों पर नमक छिड़कने वाला बयान है। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे पार्टी का बयान होने से इनकार करते हुए सलाह दी कि पार्टी नेता बयान देते समय संयम बरतें। खुद पित्रोदा को अपने हिंदी के कमजोर ज्ञान की आड़ लेकर बयान पर माफी मांगनी पड़ी।
लेकिन इसने भाजपा का काम तो पूरा कर दिया। जो लोग राजीव का जिक्र करने को लेकर मोदी की समझ पर सवाल खड़े कर रहे थे, शायद उन्हें भी महसूस हो रहा होगा कि यह खेल यूं ही नहीं शुरू किया गया था और ना यूं ही खेला जा रहा है…