यह जन्‍म हुआ किस ‘अर्थ’ अहो, गर जेब में कर्रे नोट न हों

राष्‍ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्‍त की एक मशहूर कविता है- ‘नर हो, न निराश करो मन को’… इस कविता का एक अंश कहता है-

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

पढ़ाई के दौरान यह कविता कई बार पढ़ी थी लेकिन हाल ही में जब ये पंक्तियां याद आईं तो इनके नए ही मायने दिखाई देने लगे। खासतौर से यह लाइन-यह जन्‍म हुआ किस अर्थ अहो। कवि ने भले ही यहां अर्थ शब्‍द को मनुष्‍य जन्‍म की सार्थकता के संदर्भ में कहा हो, लेकिन नोटबंदी के ताजा हालात में मुझे तो यह अर्थ हमारे धर्म, ‘अर्थ’, काम, मोक्ष वाले अर्थ के संदर्भ में इस्‍तेमाल होता दिखाई दे रहा है।

नोटबंदी के परिणाम सोच सोच कर बदन में झुरझुरी से दौड़ जाती है। मैं इन दिनों नोटबंदी के बारे में जितना अधिक सोच रहा हूं उतना ही नॉस्‍टेल्जिक होता जा रहा हूं। मन मानने को तैयार ही नहीं कि नोट के बिना भी जीवन हो सकता है। बार बार कहने को मन करता है- यह जन्‍म हुआ किस अर्थ अहो, गर जेब में कर्रे नोट न हों…

पता नहीं ईसा मसीह ने वे शब्‍द कहे थे या नहीं, लेकिन उनके हवाले से अक्‍सर ये वाक्‍य उद्धृत किया जाता है कि- हे ईश्‍वर इन्‍हें माफ करना, ये नहीं जानते कि ये क्‍या कर रहे हैं… उसी तरह मेरा भी कहने को मन करता है- हे भगवान इन्‍हें सद्बुद्धि दे, इन्‍हें शायद पता ही नहीं कि जेब में नोट होने का मतबल क्‍या होता है। ये कैशलेस वाले क्‍या जानें हाथों में करारे नोटों से होने वाली हरकत को। जेब में रखी नोटों की गड्डी एक अलग ही जोश और ताकत का अहसास कराती है। साहिर लुधियानवी ने लिखा था- ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्‍तानों का… और ये हैं कि नोटबंदी करके इस देश के लोगों का सारा जोश और उत्‍साह ही छीन लेना चाहते हैं।

हालांकि मुझे तो जीवन में वो अवसर नहीं मिल सका, लेकिन समाज में मैंने एक क्रांतिकारी घटना उस समय देखी थी, जब दूल्‍हों को फूलों की माला की जगह नोटों की माला पहनाने का चलन शुरू हुआ था। शुरुआती दौर में यह माला एक-एक रुपये के करारे नोटों की हुआ करती थी, फिर दूल्‍हों के इस नोट आधारित रसूख में उत्‍तरोत्‍तर वृद्धि होती चली गई। एक के बाद दो, फिर पांच, फिर दस, बीस, पचास और आखिर में सौ… सौ के नोटों की माला का चलन आया। सौ-सौ के नोटों की माला पहन कर निकले दूल्‍हे का बाना, समाज में अलग ही शान और पहचान का सबब हुआ करता था। उस खानदान को अपने रसूखदार होने का कोई और प्रमाण नहीं देना पड़ता था।

सौ के नोटों की यह माला वर्षो तक इसी तरह रसूख और रुतबे का प्रतीक बनी रही। आगे चलकर पांच सौ और हजार के नोटों की मालाओं ने उनकी जगह ली। लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जो शान उस जमाने में सौ के नोटों की माला पहनकर निकलने वाले दूल्‍हे की हुआ करती थी उसकी बात ही अलग थी। बाद में तो नोटों की माला का यह रुआब दूल्‍हे के गले से छिटककर राजनेताओं के गले जा लिपटा। और उन्‍होंने भी इसे खूब भुनाया। ‘नोटमाला धारी’ ऐसे कई नेताओं के फोटू आपके जेहन में आज भी उभरते होंगे।

याद कीजिए शादी ब्‍याह या किसी शुभ प्रसंग में नोटों की अहमियत को। सगाई या टीके की थाली में फल और सूखे मेवे के साथ नोटों की गड्डी नहीं रखी होती थी, तो कितना सूना सूना लगता था। किसी ने मांगा हो या न मांगा हो, पर ऐसी थालियों में नोटों की गड्डी उतनी ही अनिवार्य थी जितने माथे पर कुंकुम के टीके पर लगने वाले अक्षत के दाने।

मैं तो यह भी सोच रहा हूं कि धार्मिक भक्ति भाव और दान दक्षिणा की सनातन परंपरा में आस्‍था रखने वाली भारतीय जनता पार्टी के बुनियादी समर्थकों पर यह फैसला कितना बुरा असर डालेगा। क्‍या होगा उन पंडितों का जो हर शुभ अथवा शोक प्रसंग में जजमानों से कदम कदम पर दक्षिणा की मांग करते हैं और बेचारा यजमान लोकलाज के डर से मन मसोसकर पंडितों की ऐसी हर फरमाइश पर दस, बीस, पचास या सौ के नोट रखता चला जाता है। याद है ना आपको जब पंडित के श्‍लोक का स्‍वर भी नोटों के मूल्‍य के हिसाब से चढ़ता उतरता था।

जरा कल्‍पना कीजिए, क्‍या अब दूल्‍हा गले में डेबिट या क्रेडिट कार्ड की माला लटका कर घोड़ी चढ़ेगा, क्‍या सगाई या टीके की थाली में करारे नोटों की जगह स्‍वाइप मशीन रखी जाएगी, किसी धार्मिक अनुष्‍ठान में क्‍या दक्षिणा चढ़ाने की रस्‍म के लिए यजमान पंडित द्वारा लाई गई स्‍वाइप मशीन पर कार्ड स्‍वाइप करेगा…

ऐसे ही सोचते जाइए, आप पाएंगे कि नोटबंदी जीवन को कितना नीरस बना देगी… जिस दिन सरकार ने चवन्‍नी बंद की थी उस दिन से हमारे समाज से‘सवाया’ बिदा हो गया था, लेकिन अब तो सरकार रुपया ही विदा करने पर तुली है… नोट ही नहीं होगा तो ये जीना भी कोई जीना रह जाएगा लल्‍लू…

कल नोट से जुड़ी ऐसी ही कुछ और यादों पर बात करेंगे…

पाठकों से विशेष आग्रह- आपको भी यदि नोटों से जुड़े ऐसे प्रसंग याद आ रहे हों तो हमें जरूर लिखिएगा।

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