राकेश अचल
डर अब दुनिया का स्थायी भाव बनता जा रहा है। वर्ष 2020 में कोरोना से जूझती दुनिया अभी कोरोना से उबर भी नहीं पायी है कि कोरोना का नया ‘स्ट्रेन’ दुनिया को डराने के लिए अवतरित हो चुका है। जिन फिरंगियों की सत्ता का सूरज दुनिया में कभी डूबता नहीं था, उन्हीं फिरंगियों के मुल्क में इस नए ‘स्ट्रेन’ ने दस्तक दी है। इसके साथ ही यूरोप समेत तमाम विश्व ने इंग्लैण्ड से अपने सम्पर्क अस्थाई तौर पर स्थगित कर दिए हैं।
इंसानों की दुनिया में विषाणुओं का हमला चौंकाने वाला है। विषाणु अब सुरसा मुख की तरह बढ़ता जा रहा है। इंसान एक विषाणु से निबटने के लिए बंदोबस्त कर नहीं पाते कि नया विषाणु मानवता को निगलने के लिए प्रकट हो जाता है। अब दुनिया के हर देश में घर की दीवारों पर समय बताने वाली घड़ियों के साथ-साथ वायरस से मरने और संक्रमित होने वालों की सूचना देने वाली घड़ियाँ लगाए जाने की संभावना बढ़ती जा रही है। कोरोना से अब तक दुनिया में 77, 716, 439 संक्रमित हो चुके हैं और 1, 708, 936 लोगों की जान जा चुकी है। विषाणुओं से दुनिया का इंसानी विज्ञान हारा नहीं है, लेकिन ये जंग लगातार जटिल होती जा रही है। इंसानों ने विषाणुओं के मुंह से अब तक 54, 592, 902 लोगों को छीना भी है।
जैसे एक समय ‘स्काईलैब’ गिरने की खबरों के बाद पूरी दुनिया आसमान की ओर टकटकी लगाए देखा करती थी वैसे ही अब विषाणुओं के हमले की खबरों से दुनिया में आतंक लगातार बढ़ रहा है। ताजा खबरों के मुताबिक़ कोरोना वायरस का नया प्रकार मिलने के बाद ब्रिटेन का नया नाम ‘यूरोप का बीमार’ देते हुए सोमवार को महाद्वीप के कई देशों ने उससे संपर्क काट लिया। ब्रिटेन में जहां इससे हाहाकार मचा हुआ है वहीं पूरी दुनिया फिर से तनाव में आ गई है। ब्रिटेन के सुपरमार्केट में आपूर्ति रुकती जा रही है। परिजनों के पास जाने को आतुर लोगों में भय का माहौल है। पीएम बोरिस जॉनसन द्वारा यहां मिलने वाले वायरस के नए रूप को देश के लिए बेहद खतरनाक बताने के बाद बाकी देश खुद को बचाने में जुट गए हैं। इससे ब्रिटेन के हालात विकट होते जा रहे हैं।
विषाणुओं की दुनिया ने इन्सानों की दुनिया के जीवन में ऐसा खलल पैदा किया है कि सारी चौकड़ी भूल गया है आदमी। अब उसे न तीज-त्योहार दिखाई दे रहे हैं और न पढ़ाई-लिखाई या कारोबार। सबको अपनी जान के लाले हैं। ब्रिटेन सरकार ने लंदन व आसपास के क्षेत्रों में करीब 1.60 करोड़ लोगों पर पाबंदियां सख्त कर दी हैं। वहीं क्रिसमस को लेकर दी जा रही छूट भी वापस ली जा रही है। कई यूरोपीय देशों ने यहां के लिए सामान परिवहन पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दी हैं।
इसका सबसे ज्यादा नुकसान सुपरमार्केट को हो रहा है, जिनके पास सप्लाई रुक गई है। ब्रिटेन की दूसरी सबसे बड़ी सुपरमार्केट चेन सेन्सबरी ने बयान दिया कि अगर यूरोप से फिर से संपर्क कायम कर जल्द सप्लाई शुरू नहीं होती है तो कुछ ही दिनों में स्टोर खाली नजर आने लगेंगे। ब्रिटेन साल के इस समय में सब्जियां व फलों से लेकर कई अन्य खाद्य पदार्थो की सप्लाई के लिए यूरोप व विश्व के अन्य देशों पर निर्भर रहता है।
आज कोरोना के नए स्ट्रेन से जो हालात इंग्लैंड में बने हैं वे कल दुनिया के दूसरे देशों में भी बन सकते हैं। अर्थात सारी दुनिया को विषाणुओं के नए हमले से निबटने के लिए अभी से कमर कसकर रहना होगा। केवल और केवल एहतियात से ही इस जंग को जीता जा सकता है, लेकिन शर्त ये है कि दुनिया इस संकट को भी बाजार में न बदल डाले। अब हर काम मनुष्यता के संरक्षण को मद्देनजर रखते हुए करना होगा। कोरोनाकाल में जहाँ एक ओर मनुष्यता की अनूठी मिसालें सामने आयी थीं उसी तरह लालच के भी असंख्य उदाहरण देखने को मिले थे। लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले तमाम सामानों के उत्पादन के जरिये जमकर अपनी जेबें भरी थीं, यहां तक कि नकली प्लाज्मा तक बेच दिया गया।
हमें मालूम है कि विषाणुओं की अपनी दुनिया है और इंसानों की अपनी दुनिया। इंसान विषाणुओं का शिकार तो बन सकता है किन्तु उन्हें अपना शिकार नहीं बना पाता, ज्यादा से ज्यादा उसका प्रभाव काम कर सकता है, उसका प्रसार रोक सकता है। विषाणुओं से निरापद होना अभी तक सम्भव नहीं है। दुनिया में इस समय एक दर्जन से अधिक वायरस सक्रिय हैं। इनमें से अनेक का इलाज खोज लिया गया है, अनेक ऐसे हैं जो दवाओं के बावजूद ज़िंदा हैं और अपने तरीके से इंसानों का शिकार कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर चीन से आये कोरोना वायरस के अलावा इबोला, रेबीज, एचआईव्ही, हेनेटा वायरस, इन्फ्लूएन्जा, रोटा, सार्स, मार्स वायरस, डेंगू अब तक पूरी तरीके से समाप्त नहीं हुए हैं।
विषाणुओं की इस दुनिया में रहने के लिए अब हमें जीवन में जहर के बढ़ते प्रयोग से भी बचना होगा, अब हमें ‘स्वच्छता परमो धर्म’ का नारा बुलंद करना होगा। मुझे याद आता है कि आज से चालीस-पचास साल पहले तक हमारे घरों में रसायनों का सीमित इस्तेमाल होता था। सोडा-साबुन भी बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाता था। अब तो मच्छर मारना हो या कॉकरोच, मकड़ी मारना हो या चूहा, बंद नाली साफ़ करना हो या मुखशुद्धि सबके लिए रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। पहले हम सुगनध के लिए प्राकृतिक रसों पर निर्भर थे, ‘इत्र’ की अपनी दुनिया थी, लेकिन अब वहां भी ‘फोग’ यानि रसायन का कब्जा है। इन सबसे बचकर ही हम अपनी जीवनी शक्ति बढ़ाने के साथ प्रकृति से अपना तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं।
जाते हुए साल में आतंकित दुनिया को नए साल में भी आतंकित न रहना पड़े इसके लिए जरूरी है कि अब हम सब मिलकर प्रकृति की आराधना करें, स्वच्छता को सबसे बड़ा वैश्विक धर्म बनाएं, तो मुमकिन है कि हम विषाणुओं के आक्रमण का सामना करने में कामयाब हो सकें, क्योंकि आवा-जाही रोककर, एक-दूसरे से काटकर तो दुनिया नहीं चल सकती। यानि डर के आगे ही जीत है। आज हमारे पास विषाणुओं के आक्रमण के समय आपदा से निपटने का अनुभव और व्यवस्थाएं हैं इसलिए अब समझदारी से काम लिया जाना ही एकमात्र विकल्प है। ऐसे आक्रमणों से न घबरायें और न आपाधापी की स्थितियां बनने दें। क्योंकि ऐसे में विषाणुओं से कम आपाधापी से अधिक मौतें हो जाती हैं।