विदेशी षडयंत्रकारियों की कब तक सहायता करेंगे देशी लोग

रमेश शर्मा

भारत में इन दिनों दुष्प्रचार की बाढ़ आई हुई है। सनसनीखेज खबरों का रोज नया धमाका हो रहा है। इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी और पेरिस की संस्था फारबिडेन स्टोरीज ने एक खबर फैलाकर हंगामा कर दिया है। इन संस्थाओं का कहना है कि इस्राइल की कंपनी पेगासस ने भारत के तीन सौ से अधिक लोगों की जासूसी की। इनमें सत्ता पक्ष, विपक्ष सहित अनेक प्रमुख लोगों के नाम हैं। यह खबर भारत के संसद के मानसून सत्र के ठीक पहले आई। और इसके साथ ही ऐसा हंगामा शुरू हुआ जिससे संसद सत्र की कार्यवाही जाम हो गयी।

हालाँकि एमनेस्टी ने बाद में कहा कि वह दावा नहीं कर सकती कि क्या वाकई इन नम्बरों की जासूसी की ही गयी है। यह कह कह इमेस्टी ने उस संभावना से स्वयं को बचा लिया जिसमें माना जा रहा है कि भारत सरकार इस खबर को फैलाने वालों के खिलाफ मानहानि का दावा करने जा रही है। हालाँकि सरकार ने इस खबर का पूरी ताकत से खंडन किया है पर हंगामा न रुक रहा।

भारत में हंगामेदार खबरें फैलाकर सरकार को उलझाने या विकास की गति को बाधित करने की यह पहली घटना नहीं है। ऐसी अफवाहों, खबरों और घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। इसकी शुरुआत तो 2014 के आसपास ही हो गई थी पर पिछले दो वर्षों से इसमें बहुत तेजी आई है। खबरों के धमाके ऐसे कि लोग चौंक कर उन्ही में उलझ जायें। एक ओर ऐसी खबरों या अफवाहों का धमाका होता है और तुरंत केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले शुरू हो जाते हैं। भ्रम फैलाने और उस भ्रम को मुद्दा बनाकर हंगामा करने वालों में गजब का तालमेल है।

पता नहीं यह केवल संयोग है या अंतर्निहित जुगलबंदी कि ये दोनों एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं। लगता है इन सबका एक निश्चित और निहित उद्देश्य है- भारत की विकास यात्रा को बाधित करना, गति को अवरुद्ध करना। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हाल के वर्षों में भारत ने देश के भीतर और बाहर दोनों तरफ एक दृढ़ता का परिचय दिया है। यह दृढ़ता आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान के भीतर सर्जिकल स्ट्राइक में भी दिखी और चीन के सीमा अतिक्रमण के प्रति-उत्तर में भी दिखी। देश के भीतर धारा 370 हटाने में भी दिखी और नागरिकता कानून में भी। इससे जहाँ देश के भीतर राष्ट्रभाव रखने वाले नागरिकों का मनोबल बढ़ा है तो वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की साख भी बढ़ी है।

यह दृढ़ता देश के भीतर और बाहर कुछ लोगों को रास नहीं आ रही। इसीलिये भारत की दृढ़ता को शिथिल करने के ये अभियान चल रहे हैं। पर चिंतनीय यह है कि देश ही के कुछ राजनैतिक दल भी इन षडयंत्रों का माध्यम बन रहे हैं। वे इन खबरों और अफवाहों को हाथों हाथ लपक रहे हैं, मुद्दा बना रहे हैं। सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं, धरने प्रदर्शन कर रहे हैं। या ऐसे धरने प्रदर्शन आंदोलन करने वालों के समर्थन में संसद की कार्यवाही जाम कर रहे हैं। वे यह विचार ही नहीं करते कि इन खबरों में या इन अफवाहों में सच्चाई कितनी है? और इन्हें उछालने से देश का कितना अहित हो सकता है।

यदि हम पिछले कुछ वर्षों में उछाले गये समाचारों और मुद्दों पर विचार करें तो तस्वीर स्पष्ट हो जाती है कि ये सब योजनापूर्वक रची गई किसी षडयंत्र श्रृंखला का अंग ही कहे जाएंगे। जो इस विचार से की जा रही है कि भारतीय समाज के हर वर्ग, जाति और धर्म का व्यक्ति उद्वेलित हो, उनमें तनाव में आये और उनके बीच दूरियाँ बढ़े,  नफरत फैले। मुद्दा कोई हो, कहीं से भी उछाला गया हो पर प्रत्येक को सरकार पर हमला करने का एक हथियार बनाया गया। हथियार बनाने वाले चेहरे भी समान रहे हैं। इनकी मौजूदगी परदे के बाहर स्पष्ट दिखाई दे या परदे के पीछे छद्मवेष, इनकी उपस्थिति हर घटना में  महसूस की गई।

ऐसे कुछ चेहरे यदि जेएनयू कांड, जिसमें भारत के टुकड़े होने के नारे लगे, कुख्यात आतंकवादी के समर्थन में नारा लगाते देखे गये, उनका समर्थन करने वाले शाहीन बाग धरने में भी दिखे और किसानों के नाम पर दिये जा रहे धरने के समर्थन में भी। इनमें कुछ चेहरे सीधे राजनीति से जुड़े हैं तो कुछ ऐसे विचार से संबंधित जो भारतीय संस्कृति और अस्मिता पर आक्षेप करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। ये समूह किन्ही भी अफवाहों या कूटरचित दृश्यों से उछाले गये मुद्दों को अपने राजनैतिक हितों के लिये भुनाना चाहते हैं।

ये समूह समाज में तनाव और अविश्वास का एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश करते हैं जिससे समाज और सरकार दोनों अपना सब काम छोड़कर इन्ही में उलझे रहें। उनकी विकास गति अवरुद्ध हो, प्रगति अवरुद्ध हो। इसीलिये इन सबके निशाने पर सदैव केन्द्रीय सत्ता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही होते हैं या फिर समाज में वैमनस्य फैलाने की जुगत के तर्क। इसका प्रमाण गाजियाबाद जिले का वह वीडियो है जिसमें कुछ लोग एक व्यक्ति की पिटाई करते दिखाई दे रहे थे। यह भ्रम फैलाया कि इस व्यक्ति को मार मार कर जयश्रीराम का नारा लगवाया गया। बाद की जाँच में यह पूरा वीडियो कूटरचित निकला। लोग गिरफ्तार हुये।

जो मुद्दे उछाले गये उनमें अधिकांश या तो आधारहीन थे या इसी प्रकार कूटरचित। यदि छोटे बड़े सभी बिन्दुओं को जोड़ लिया जाय तो यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि औसतन प्रति सप्ताह एक नया मुद्दा सामने आया। जिनसे समाज अपना सब काम धाम छोड़कर उनकी चर्चा, जुगाली में लगा रहा और सरकार उनकी सच्चाई जानने में जुटी रही। एक मुद्दा ठंडा हो रहा है तो दूसरा उतनी ही गर्मी से सामने आ रहा है। कुछ विषयों पर तो भ्रम का धुंआँ इतनी तेज फैलाया गया कि समाज सच्ची तस्वीर देखने का साहस न जुटा पा रहा।

इस श्रेणी के भ्रम में सीएए और एनआरसी कानून को लिया जा सकता है। इन दोनों कानूनों का भारत में रहने वाले किसी भी भारतीय से कोई संबंध नहीं। सीएए कानून यदि केवल शरणार्थियों तक सीमित है तो एनआरसी कानून केवल घुसपैठ तक सीमित है। लेकिन योजनापूर्वक ऐसा प्रचार किया गया मानो ये कानून मुस्लिम समाज के विरुद्ध हैं। धरना प्रदर्शन ही नहीं साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश भी हुई।

कृषि कानून के प्रावधानों पर इतना भ्रम फैलाया गया कि आज तक सत्य पर संशय होता है। इस कानून में मंडी बंद करने या समर्थन मूल्य का प्रावधान समाप्त करने की बात कहीं नहीं है। फिर भी फैलाया गया कि मंडियां बंद हो रही हैं। समर्थन मूल्य का प्रावधान समाप्त हो रहा है। और इस बात पर आज तक धरना चल रहा है। टूलकिट का कितना शोर उठा। लेकिन अधिकांश बातें तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत की गई थीं। हरिद्वार कुंभ की भीड़ के फोटो फर्जी निकले, गंगा में लाशों के वीडियो भी अतिरंजित निकले। इन फोटो और विडियो में न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट जैसे अख़बारों तक का उपयोग हुआ और भारत के कई समाचारपत्रों ने इन अखबारों की ऐसी खबरों को कॉपी पेस्ट किया।

एक छोटी सी बात है सोचने की कि दिल्ली के किसी अखबार के लिये या दिल्ली से संचालित किसी राष्ट्रीय न्यूज चैनल के लिये हरिद्वार कितनी दूर है। क्या इन समाचार पत्रों और न्यूज चैनल के संवाददाता हरिद्वार में न थे? पर विदेशी समाचार पत्रों को आधार बना कर समाचार छपे और देशी पत्रकारों ने उनका फॉलोअप किया। एक ओर समाज और सरकार को इन भ्रामक प्रसंगों में उलझाने की कोशिश की गयी और दूसरी तरफ देश को कमजोर करने की साजिश की गयी। ये साजिशे कश्मीर में ड्रोन हमले में भी झलकती हैं और लखनऊ से मेरठ तक धर्मान्तरण रैकेट में भी।

वैक्सीनेशन और कोरोना पर किसने कितना भ्रम फैलाया, कितने सवाल उठाये यह भी सबके सामने है। देश की सीमा पर चीन कैसी कैसी साजिश कर रहा है यह किसी से छिपा नहीं। धर्मान्तरण रैकेट, लव जिहाद आदि बातें जहाँ देश में अशांति फैलाना चाहतीं हैं तो चीन की साजिश भारत की धरती पर कब्जा करना चाहती हैं। इन षडयंत्रों का मुकाबला पूरे देश को मिलकर करना चाहिए। लेकिन यदि देश के भीतर विभेद पैदा किये जायेंगे, सामाजिक और साम्प्रदायिक दूरियां बढ़ाई जायेंगी तब कैसे मुकाबला होगा?

राजनीति में प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है। लेकिन यह प्रतिद्वंद्विता किस सीमा तक होनी चाहिए? किस कीमत पर होनी चाहिए? क्या राष्ट्र की एकता और अखंडता की कीमत पर होनी चाहिए? राष्ट्र के हितों को बलिदान करके होनी चाहिए? दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों से यही हो रहा है। इन दिनों राष्ट्र ने एक अंगड़ाई ली है। भारतत्व की प्रतिष्ठा और स्वाभिमान की अंगडाई। जो इस अंगड़ाई के निमित्त हैं उनका सम्मान होना चाहिए, समर्थन होना चाहिए लेकिन इसके बजाय उनपर हमले हो रहे हैं। कूटरचित सामग्री उछाली जा रही है, उनकी छवि भंग करने के रोज नये षडयंत्र रचे जा रहे हैं।

इन सब बातों पर अब समाज को विचार करना चाहिए। देश को कमजोर और अस्थिर करने की साज़िशों का सामना केवल राजनैतिक स्तर पर नहीं हो सकता है। इसके लिये सामाजिक स्तर पर जाग्रति और संघर्ष आवश्यक है। उम्मीद की जानी चाहिए कि समाज अब जाग्रत होगा और देश को कमजोर करने की साजिश करने वालों का सामना करेगा।(मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
—————-
नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here