रतन ने क्‍यों हटाया टाटा का मिस्त्री

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रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुनने में तीन साल का वक्त लगा था। उन्होंने ग्रुप को 1991 में 10 हजार करोड़ के कारोबार से 2012 में 4.75 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया था। लेकिन चेयरमैन बने 48 साल के साइरस को हटाकर अब 78 साल के रतन को इंटरिम चेयरमैन बना दिया गया है। आज आठ लाख करोड़ रुपए के मार्केट कैप वाले इस ग्रुप के 148 साल के इतिहास में सोमवार को ऐसा पहली बार हुआ जब किसी चेयरमैन को हटाया गया है। साइरस को हटाने के पीछे तीन बड़ी वजह मानी जा रही हैं।

* सिर्फ मुनाफा कमा रही कंपनियों पर कर रहे थे फोकस

– कंपनी के बोर्ड ने कोई ठोस कारण नहीं बताया है लेकिन माना जा रहा है कि टाटा सन्स अपने ग्रुप की नॉन-प्रॉफिट बिजनेस वाली कंपनियों से ध्यान हटाने की मिस्त्री की सोच से नाखुश थी। इसका एक उदाहरण यूरोप में टाटा स्टील का बिजनेस है।

– मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रतन टाटा को लगता था कि साइरस का पूरा फोकस टाटा कंसल्टेंसी सर्विस यानी टीसीएस पर है। जबकि ये कंपनी पहले ही प्रॉफिट में और सबसे ज्यादा स्थापित है। लेकिन साइरस उन कंपनियां के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे जो दिक्कतों का सामना कर रही हैं।

– मिस्त्री परंपरागत कारोबार से ध्यान हटाकर ‘कैश काउज’ पर ही फोकस कर रहे थे। ये बोर्ड को नागवार गुजरा।

– हालांकि, मिस्त्री के लिए भी ये चैलेंज से भरा रहा। क्योंकि उन्हें घाटे के चलते यूके में टाटा स्टील को बेचने का फैसला करना पड़ा। सितंबर 2015 में पहली बार ऐसा हुअा जब यूरोप में टाटा स्टील को घाटा झेलना पड़ा।

– 2016 के फर्स्ट क्वॉर्टर में टाटा स्टील को 3 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ। ब्रिटेन जैसे ही यूरोपियन यूनियन से बाहर हुआ, टाटा स्टील पर संकट मंडराने लगा।

* घट रहा था ग्रुप का परफॉर्मेंस

– टाटा ग्रुप के ऑटोमोबाइल से लेकर रिटेल तक और पावर प्लांट से सॉफ्टवेयर तक करीब 100 बिजनेस हैं। इनमें से कई कंपनियों मुश्किल दौर से गुजर रही हैं।

– फाइनेंशियल ईयर 2016 में ग्रुप की 27 लिस्टेड कंपनियों में से नौ कंपनियों नुकसान में चल रही हैं। सात कंपनियों की कमाई में भी कमी आई है।

– 2014-15 में टाटा ग्रुप का टर्नओवर 108 अरब डॉलर था जो 2015-16 में घटकर 103 अरब डॉलर रह गया।

– साइरस मिस्त्री के कार्यकाल में टाटा समूह का कारोबार आगे नहीं बढ़ा। रतन टाटा से मिस्त्री को 108 बिलियन डालर का सालाना करोबार (2014-15) मिला था जो 2015-16 में घटकर 103 बिलियन डालर रह गया।

– ग्रुप का कुल कर्ज/देनदारी मार्च 2015 में जहां 23.4 अरब डॉलर थी, वह मार्च 2016 में बढ़कर 24.5 अरब डॉलर हो गई।

– ग्रुप पर कर्ज करीब 1 बिलियन डॉलर बढ़ा है।

* कानूनी मुकदमे, बड़ा फाइन

– पिछले एक साल में इंटरनेशनल कोर्ट खासकर यूएस में टाटा समूह की खूब फजीहत हुई। इनमें सबसे ज्यादा काबिल-ए-गौर है यूएस ग्रैंड ज्यूरी की तरफ से समूह की सबसे कमाऊ कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस और टाटा अमेरिका इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन पर लगा फाइन।

– दोनों कंपनियों पर ज्यूरी ने एक ट्रेड सीक्रेट मुकदमे के तहत 94 करोड़ डॉलर (करीब 6000 करोड़ रुपए) का फाइन लगाया था।

– टाटा ग्रुप जापान की डोकोमो से भी टेलिकॉम ज्वाइंटर वेंचर के बंटवारे को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। डोकोमो टाटा टेलिसर्विसेस से अलग हो चुकी है।

– डोकोमो ने टाटा से 1.2 बिलियन डॉलर का हर्जाना मांगा। ऐसा ना होने पर टाटा की ब्रिटिश प्रॉपर्टीज पर मालिकाना हक दिए जाने की मांग की।

* कैसे हटाए गए साइरस?

– साइरस पालोनजी मिस्त्री के बेटे हैं। उनके ग्रुप की टाटा सन्स में 18.4 फीसदी की हिस्सेदारी है जो उनके दादाजी शापूरजी मिस्त्री ने 1936 में खरीदी थी। किसी एक शेयरहोल्डर की टाटा समूह में यह सबसे ज्यादा होल्डिंग है।

– चेयरमैन बनने से पहले साइरस शापूर पालोनजी कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर और टाटा एलक्सी और टाटा पावर के डायरेक्टर थे।

– शापूरजी और पालोनजी ग्रुप का कहना है कि साइरस को जिस तरीके से हटाया गया है, वह गलत है। फैसला आम सहमति से नहीं लिया गया था।

– टाटा सन्स बोर्ड के 8 में से 6 मेंबर्स ने मिस्त्री को हटाने का फैसला किया। हालांकि, दो मेंबर्स ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

* ये केस इन्फोसिस जैसा क्यों है?

– यह घटनाक्रम इन्फोसिस से मेल खाता है। इन्फोसिस के फाउंडर एन. आर नारायण मूर्ति ने बीस साल (1981-2011) तक कम्पनी की बागडोर संभाली।

– उनके कार्यकाल में इन्फोसिस ने इंटरनेशनल लेवल पर गुडविल कमाई और भारत में आईटी क्रांति की जनक बन गई।

– रतन टाटा की तरह अपनी उम्र के मद्देनजर नारायण मूर्ति ने जब यह जवाबदारी छोड़ी तब उनका कद बड़ा हो गया था।

– उनके उत्तराधिकारी से उम्मीद की जाती थी कि वह इन्फोसिस की गुडविल और कारोबार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाएगा।

– उनके बाद इन्फोसिस के बाकी फाउंडर्स जैसे नंदन निलेकणी, गोपाल कृष्णन और एस. डी. शिबूलाल ने कंपनी की जवाबदारी संभाली लेकिन वही कहावत साबित हुई कि बरगद के नीचे दूसरा पौधा नहीं पनपता है जिसे अंग्रेजी में कहते हैं- It is hard to find someone to fill his shoes.

– मूर्ति की तरह उनके उत्तराधिकारी इन्फोसिस को संभाल नहीं पाए और प्रोफेशनल एक्जीक्यूटिव विशाल सिक्का को कंपनी का नेतृत्व सौंपना पड़ा।

* ग्रुप के लिए कितना बड़ा झटका है?

– रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुनने में तीन साल लगे थे। साइरस टाटा ग्रुप के 6th चेयरमैन थे।

– 148 साल पहले 1868 में जमशेदजी टाटा ने यह ग्रुप बनाया था। तब से अब तक पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी चेयरमैन को ही हटा दिया गया हो।

– मिस्त्री टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, जगुआर लैंड रोवर ऑटोमोटिव, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस, टाटा पावर कंपनी, द इंडियन होटल्स कंपनी, टाटा ग्लोबल बेवरेजेस, टाटा केमिकल्स, टाटा इंडस्ट्रीज और टाटा टेलिसर्विसेस जैसी कंपनियों के चेयरमैन भी रहे।

* टाटा सन्स ने ही क्यों लिया फैसला?

– टाटा सन्स ही टाटा ग्रुप की मेन होल्डिंग कंपनी है। हर ऑपरेटिंग लेवल पर इसके CEOs हैं। CEOs को अभी नहीं बदला गया है।

– मिस्त्री टाटा समूह के ग्लोबल बिजनेस को उस चतुराई से नहीं संभाल पाए, जिसकी उनसे टाटा एंड संस और रतन टाटा उम्मीद करते थे।

– रतन टाटा ने टाटा समूह का चेयरमैन पद छोड़ा था पर आज तक वे ही टाटा एंड सन्स के सर्वेसर्वा थे। साइरस मिस्त्री उन्हें ही रिपोर्ट करते थे।

* 148 साल में क्या रही टाटा समूह की खासियत?

– टाटा समूह ने कभी उस कारोबार में इंट्री नही ली जो समाज में विवादास्पद हैं जैसे लिकर या टोबैको बिजनेस।

– जमशेदजी टाटा से लेकर रतन टाटा तक टाटा समूह का जिसने भी नेतृत्व सम्भाला, उन्होंने समूह की साख को सबसे ऊपर रखकर टाटा समूह को लोकल से ग्लोबल बनाया।

(यह जानकारी हमें एक पाठक ने वाट्सएप पर भेजी है)

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