वैसे तो सुप्रीम कोर्ट इन दिनों अलग-अलग मामलों को लेकर चर्चा में है। लेकिन पिछले सप्ताह को देश की सर्वोच्च अदालत ने दो मामलों में अपनी जो राय जाहिर की है, वह चुनाव के इस समय में बहुत गंभीरता से विचार करने योग्य है। विडंबना यह है कि तमाम तरह की फालतू बातों पर चुनाव सभाओं में बहस हो रही है लेकिन इस तरह के मुद्दों पर कोई बात नहीं करता।
पहला मुद्दा अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण (संशोधन) कानून 2018 से जुड़ा है। कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को इस कानून की कुछ धाराओं को नरम करने का आदेश दिया था और उसे लेकर पूरे देश में बवाल मच गया था। बाद में नरेंद्र मोदी सरकार कोर्ट के आदेश को एक तरह से अप्रभावी करने के इरादे से इस कानून में संशोधन का बिल लेकर आई थी जिसे संसद ने मंजूरी दे दी थी।
इसी बीच कोर्ट में दो याचिकाएं दायर हुई इनमें से एक सरकार की ओर से दाखिल की गई जिसमें मांग की गई थी कि कोर्ट अपने आदेश पर पुनर्विचार करे, जबकि दूसरी याचिका दो वकीलों की ओर से लगाई गई है, जिसमें मांग की गई है कि कोर्ट 20 मार्च 2018 के अपने पुराने वाले आदेश को ही लागू करवाए और सरकार ने जो नया बिल पास कराया है उसे असंवैधानिक घोषित किया जाए।
इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। लेकिन मीडिया में इस सुनवाई की रिपोर्टिंग के दौरान कोर्ट के जो ऑब्जर्वेशन उद्धृत किए गए हैं वे बहुत ही तार्किक और न्यायोचित होने के साथ साथ सामाजिक एवं राजनीतिक दोनों स्तरों पर गहन विमर्श की मांग करते हैं।
खबरों के मुताबिक कोर्ट ने सवाल उठाया है कि देश के कानून जाति निपरेक्ष और सभी के लिए समान होने चाहिए। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यू.यू. ललित की बेंच ने कहा कि कोई कानून सामान्य श्रेणी व एससी/एसटी जैसी श्रेणी में बंटा नहीं होना चाहिए। जाहिर है कोर्ट की यह राय किसी भी राजनीतिक दल को नहीं भाएगी क्योंकि इससे उनका वोट बैंक प्रभावित होता है, लेकिन देश के सामाजिक ढांचे की सेहत के लिहाज से कोर्ट की इस राय पर ध्यान देने की जरूरत है।
एससी/एसटी एक्ट के मामले में 20 मार्च 2018 को कोर्ट ने बहुत ही न्यायसंगत आदेश सुनाया था जिसमें इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किए गए थे कि एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद किसी के भी खिलाफ तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा। डीएसपी स्तर का अधिकारी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का रास्ता भी खोल दिया था। इसीके बाद सरकार पर एससी/एसटी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले दलों व राजनेताओं का दबाव आया और सरकार नया संशोधित कानून लेकर आई।
प्रश्न बहुत वाजिब है कि कश्मीर में तो हम समान नागरिक संहिता की बात करते हैं, लेकिन उसके पीछे देश और देश के नागरिकों को एक मानने की जो मूल भावना का तर्क देते हैं, देश के अन्य भागों में उसके ठीक विपरीत आचरण करते हैं। कोर्ट के इस ऑब्जर्वेशन का सम्मान और इस पर मनन होना चाहिए कि भारत का कोई भी कानून सामान्य वर्ग और एससी/एसटी जैसी श्रेणियों में कैसे बंटा हो सकता है?
दूसरा मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा है। अपने घर का सपना देखने वालों के साथ बिल्डरों द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विवशता जताते हुए कहा है कि- अफसोस, ‘’हम भ्रष्टाचार के लिए मृत्युदंड नहीं दे सकते।‘’ कोर्ट की यह टिप्पणी देश में आम जनता के साथ होने वाले अन्याय, उस अन्याय से निपटने में हमारे कानूनों की अक्षमता और लोगों को न्याय देने में अदालतों की विवशता तीनों को उजागर करती है।
जस्टिस अरुण मिश्र और यूयू ललित की खंडपीठ ने आम्रपाली समूह के विभिन्न प्रोजेक्टों में करीब 42,000 फ्लैटों के कब्जे का बरसों से इंतजार कर रहे खरीदारों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि पूरे भारत में बिल्डरों ने प्रशासन और बैंकों की शह पर मानकों का उल्लंघन करके गगनचुंबी इमारतें खड़ी कर ली हैं।
कोर्ट का कहना था- ‘हम जानते हैं कि रियल एस्टेट सेक्टर में किस तरह का भ्रष्टाचार चल रहा है और बिल्डरों की मिलीभगत से किस तरह से अफसरों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। नियमों का भयावह तरीके से उल्लंघन कर जनता और उसके विश्वास को बड़े पैमाने पर छला गया है।… इतने बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी केवल भारत में हो सकती है। लेकिन, (अफसोस) हम भ्रष्टाचार के लिए सजा-ए-मौत नहीं दे सकते हैं।’
अदालत ने आम्रपाली समूह समेत तमाम बिल्डरों की धांधलियों की अनदेखी करने के लिए नोएडा व ग्रेटर नोएडा अथारिटी और बैंकों को फटकार लगाई। उसने कहा कि समय रहते यदि उचित कार्रवाई कर ली गई होती तो कुछ प्रोजेक्ट को बचाया जा सकता था।‘’नोएडा और ग्रेटर नोएडा की पूरी पट्टी को देखिए। यही इंदौर, भोपाल और अन्य शहरों में भी हो रहा है।‘’ दरअसल आप सब बिल्डरों से मिले हुए हैं और बड़े पैमाने पर जनता से धोखाधड़ी कर रहे हैं।
जिस समय सुप्रीम कोर्ट इस तरह की गंभीर टिप्पणियां कर रहा है उस समय देश में नई सरकार चुनने का महोत्सव चल रहा है। नेता अपने भाषणों में चड्डी-बनियान गिरोह के सदस्यों की तरह बर्ताव कर रहे हैं, सांप बिच्छू तक चर्चा का विषय हैं, लेकिन मजाल कि कोई इन मुद्दों पर बोला हो। जाति कि बात इसलिए नहीं होगी क्योंकि वोट पकाने हैं और बिल्डरों की बात इसलिए नहीं होगी क्योंकि नोट पकाने है…