बी.बी. आर गाँधी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से देश के करोड़ों लोगों को आव्हान किया है कि भारत देश बड़े लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ना चाहता है, इसके लिए उन्होंने देश के सामने पांच संकल्पों को सामने रखते हुए सहयोग देने की अपील की है। जिन पांच बातों को उन्होंने शामिल किया है उन्हें पंच-प्रण का नाम दिया है। जिनमें पहला देश का विकास, दूसरा गुलामी के हर अंश से मुक्ति, तीसरा विरासत पर गर्व, चौथा एकता व एकजुटता और अंतिम पांचवा नागरिकों का कर्तव्य है।
अंतिम प्रण से बात शुरू करते है जिसमें नागरिकों का कर्तव्य है। ये बहुत महत्वपूर्ण है जिसे सिस्टम में बैठे हमारे देश के नागरिकों को भी प्रशासक के साथ-साथ नागरिक कर्तव्य का पालन करना होगा। जो फिलहाल तो बहुत मुश्किल लग रहा है। क्योंकि जिम्मेदारों में ही जिम्मेदारी निभाने का जज्बा नहीं है।
छोटे-छोटे विषयों से इसे समझने कि कोशिश करते हैं, सबसे पहले अतिक्रमण विषय को लेते हैं। अतिक्रमण जितना साधारण शब्द है उतना ही उसके दमन पर काम करना मुश्किल है। बात केवल हमारे शहर की ही नहीं है ये तो हर कहीं, हर जगह जिम्मेदारों की अनदेखी और तथाकथित या कतिपय कारणों से देखी जा सकती है।
ये अतिक्रमण पंच-प्रणों में शामिल तीसरे प्रण का हिस्सा नहीं है जिसे हम विरासत कह दें। आज़ादी के बाद ऐसे कई सम्प्रदायों के तथाकथित लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए पूजा, इबादत या अर्चना स्थल बना लिए। किसी दानदाता की जमीन पर जो बने हैं उनको छोड़कर जो भी बने हैं वो सभी अतिक्रमण ही हैं। दिल्ली में आप की सरकार के राज में अनेक मजार और इबादत के स्थान बन जाने पर मीडिया की सुर्खियाँ बनीं लेकिन दूसरे अनेक सरकारी जमीनों पर, सडकों पर, बाज़ार में और कुछ अन्य स्थानों पर भी बनकर खड़े हैं और तनकर प्रशासन की खिल्ली उड़ा रहे हैं।
इसी अतिक्रमण का लाभ लेने में सब एकता और एकजुटता के साथ खड़े हो जायेंगे लेकिन अतिक्रमण न हो इसके लिए कभी आवाज़ नहीं उठाएंगे। नागरिक करें भी तो क्या करें, कहीं कोई दबंग का जलवा है तो कहीं रसूखदार लोगों का और उनके तथाकथित अपनों का। हमारे देश का नागरिक सीधा साधा है, उसने अब ऐसे मोहल्लों को छोड़कर प्राइवेट कॉलोनियों में अपना ठिकाना चुनना शुरू कर दिया जहाँ कॉलोनीवासी वहां सारी व्यवस्थाओं से ख़ुशी ख़ुशी रहना पसंद कर रहे हैं।
अतिक्रमण के बारे में मीडिया के पास इतना मसाला है कि बाकी खबरों को छपने या टीवी चैनल पर दिखने के लिए जगह या टाइम नहीं बचेगा। लेकिन होगा ये कि मीडिया को विज्ञापन मिलना बंद हो जायेंगे। ऐसे में भला मीडिया वाले क्यों किसी से पंगा लें। लोग खुद ही अतिक्रमण करते हैं तो करते रहें। देश जाए भाड़ में, अनदेखी करने की मलाई मिल रही है, मिलती रहे बस।
सोशल मीडिया जो जनता के खुद हाथ में है अगर उनमें कुछ लोग अपनी उंगलियाँ चलने लग जाएँ तो उन पर ही उंगलियाँ उठाने या बकवाद परोसने वाले कई गुना एक्टिव हो जाते हैं। अगर कोई कुछ कर सकता है तो वो है देश का कानून और प्रशासन तंत्र जिसपर ज्यादा कुछ कहने को बचा नहीं है। इसलिए अत्र सर्वत्र कुशलं तत्रास्तु।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
मध्यमत
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