राकेश अचल
कोरोना के इलाज में कथित रूप से संजीवनी माने जाने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन असली के बजाय नकली ज्यादा कारगर साबित होने की खबर आयी तो मैं बिलकुल नहीं चौंका। मेरे चौंकने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि मुझे अपने देश के नक्कालों की काबिलियत पर पूरा-पूरा भरोसा है। हमारा देश नक्कालों के भरोसे ही चल रहा है। यहां रहने वाले जिस इनसान ने भी नकली माल नहीं खाया होगा वो असली भारतीय हो ही नहीं सकता।
मध्यप्रदेश में जिन मरीजों को गुजरात में बना नकली इंजेक्शन लगाया गया था उनमें से केवल 10 की मौत हुयी बाक़ी के 100 ठीक हो गए। यानी सफलता की दर संतोषजनक निकली। नकली इंजेक्शन में साधारण पानी, ग्लूकोज और नमक था। हमारे नक्कालों ने एक बार फिर प्रमाणित किया है कि वे देश के वैज्ञानिकों के मुकाबले कहीं से भी कम नहीं हैं। इसलिए देश को इन नक्कालों का सम्मान करना चाहिए। मैं तो कहता हूँ कि हमारी सरकार को नकली इंजेक्शन का फार्मूला पेटेंट करने के साथ ही इसका युद्धस्तर पर निर्माण शुरू कर देना चाहिए। कोरोना के मरीज डीआरडीओ की असली गोली और नकली इंजेक्शन से रातों-रात ठीक न हो जाएँ तो कहियेगा।
दरअसल पिछले बीस-तीस साल में हम भारतवासी नकली माल खाने के आदी हो चुके हैं। हालात ये हैं कि अब यदि हम लोग असली माल खा-पी लें तो हमारी तबियत बिगड़ सकती है। नकली माल बनाने में हम दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले सबसे आगे हैं। मसाले, आटा, दवा, घी से लेकर आप जिस चीज की कल्पना करें हमारे यहां नकली मिल सकती है। हम जितना चाहें उतना माल नकली बना सकते हैं। आप यकीन कीजिये कि हमारे नक्कालों की वजह से ही मांग और आपूर्ति का अन्तर कभी गड़बड़ नहीं हुआ। दुनिया की किसी भी नयी खोज की नकल हमारे यहां 24 घंटे में तैयार की जा सकती है।
नक़्क़ाली के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियों को देखते हुए सरकार को कोरोना के तमाम टीकों को भी नक्कालों के हवाले कर देना चाहिए था। सरकार यदि ऐसा करती तो देश में न टीकों का संकट पैदा होता और न हमारा टीकाकरण अभियान प्रभावित होता। हमारे नक्काल इतना माल तैयार कर देते की आप 18 वर्ष तो क्या नवजात आबादी तक का टीकाकरण लक्ष्य के अनुसार पूरा कर सकते थे। यदि हमारे पास नकली टीके होते तो हमें रूस के स्पुतनिक की जरूरत ही न पड़ती। हम तो फाइजर और माडर्ना के टीके रातों-रात बना सकते हैं, लेकिन करें क्या, हमारे हाथ बंधे हुए हैं।
हकीकत ये है कि हमारा शरीर रंग-रोगन और कीमत देखता है। असली-नकली नहीं। हमारे लोगों को पता है कि असली माल पचाना आसान नहीं। उसके लिए इम्युनिटी मजबूत होना चाहिए। नकली माल कम इम्युनिटी वाले भी आसानी से हजम कर सकते हैं। नकली माल में ऐसी कोई चीज डाली ही नहीं जाती जो फौरन आपकी जान ले ले। हमारा नकली सामान कोरोना की तरह निर्मम नहीं हैं कि हफ्ते, दस दिन में ही खेल कर दे। हमारा नकली माल धीरे-धीरे असर करता है। और इस तरह समय बीतने के साथ ही हमारा उपभोक्ता नकली माल के प्रयोग का अभ्यस्त हो चुका होता है।
बात नकली-असली की चली तो आप समझ लीजिये कि हमारे यहां सब कुछ नकली ही सफल है, फिर चाहे वो नेता हो या कोई और। हमारी अपनी पत्रकार बिरादरी में हम जैसे असली के मुकाबले नकली मजे में हैं और कामयाब हैं। आजकल ‘यूज एंड थ्रो’ का जमाना है। असली माल को आप ‘यूज’ कर ‘थ्रो’ नहीं कर सकते, नकली के साथ ये सुविधा है। नकली माल असली के मुकाबले सस्ता होता है। आपके बजट में आता है इसलिए लोकप्रिय है। मैं तो कहता हूँ कि हमारी सरकारों को अलग से एक नकली मंत्रालय भी बना लेना चाहिए जो देश में नकल को प्रोत्साहन देने के लिए योजनाएं बनाये, बजट की जुगाड़ करे।
मुमकिन है कि आपको मेरी बात ठीक न लगती हो लेकिन आप मान लीजिये की जब तक हमारे पास अवतारी नेता हैं तब तक सब कुछ मुमकिन है। हमारा तो ध्येय वाक्य ही है कि ‘साहब हैं तो मुमकिन है।’ हम हर नामुमकिन को मुमकिन बना सकते हैं। हम नकली आईएएस, आईपीएस पैदा कार सकते हैं, हमारे पास पुलिस भी नकली मिल जाती है। नकल में हम सिद्धस्त हैं। ये सिद्धि हमने वर्षों की तपस्या के बाद हासिल की है। हमारी इस काबिलियत से दुनिया के तमाम देश भले ही हमसे जलते हों किन्तु तमाम देश हमें विश्वगुरु भी मानते हैं। हमने तो नोबल पुरस्कार प्राप्त गुरुदेव तक की नकल करके आपके सामने पेश कर दी है।
अब आगे जो भी हो, लेकिन अभी तो नकली इंजेक्शन वालों पर हत्या का मामला नहीं चलाया जाना चाहिए, बेचारों ने कितने मरीजों की जान बचाई है। मरीज नकली या असली इंजेक्शन से नहीं बचे, वे बचे इंजेक्शन लगने से। उन्हें असली इंजेक्शन दिया जाता तो शायद वे उसके दामों के बारे में सोचकर ही निबट जाते किन्तु नकली इंजेक्शन ने उन्हें बचा लिया।
मन का संतोष सबसे बड़ी बात है। बड़ी बातें बड़े लोग ही कर सकते हैं और बड़े लोग संयोग से गुजरात में ही पाए जाते हैं। गुजरात ने हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिए, लौह पुरुष सरदार वल्ल्भ भाई पटेल दिए, दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति और दुनिया के सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री दिए। संयोग से नकली इंजेक्शन बनाने वाले भी गुजरात से आते हैं। इसलिए हमें अपने गुजरात पर गर्व है। हम सौभाग्यशाली हैं कि गुजरात भारत में है चीन या पकिस्तान में नहीं। देश गुजरात का हर मामले में ऋणी है, इससे कोई भी भारतीय उऋण नहीं हो सकता।
आप कल्पना कीजिये की यदि गुजरात न होता तो क्या हम नकली इंजेक्शन बना पाते! कदापि नहीं। कम से कम हमारे मध्यप्रदेश में तो ये योग्यता नहीं है। हमारे सूबे के लोग नकली घी और नकली मावा बनाने से आगे कुछ सीख ही नहीं पाए। हमें भी आखिर नकली इंजेक्शन लेने गुजरात ही जाना पड़ा। हम अपने सूबे के मुख्यमंत्री जी से आग्रह करते हैं कि कोरोना कर्फ्यू में आप जो चाहे सो बंद कर दें लेकिन गुजरात का बना कोई भी माल न रोकें। गुजरात के नेता, वहां का खमण, ढोकला सब कुछ बिना बाधा के आने दें।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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बहुत अच्छा आपने विश्लेषण लिखा है पढ़कर हंसी भी आ रही है और दुख भी हो रहा है कि हमारे देश में बेहतरीन अदाकार और कलाकार हैं