मनोज खांडेकर

अब सवाल यह कि कौन आरफा हुसैन? तो आरफा को जानने के पहले फ़तेह सिंह को जान लेते हैं। जो सुल्तान को कहता है-

“सब यही सोचते हैं सुल्तान कि हीरो वो होता है जो जीतता है। मेरा ये मानना है कि हीरो वो होता है जो हारता है, क्योंकि वही जानता है जीतने की असली वैल्यू।”

फ़तेह सिंह यानी सुल्तान का कोच जो उसे “जीतने की असली वैल्यू” का मूल मंत्र देता है। फ़तेह सिंह के इस छोटे से किरदार को जिसने परदे पर दमदारी से निभाया वह थे रणदीप हुड्डा। सुल्तान मूवी में उनके और सलमान खान के बीच कई छोटे-छोटे संवाद हैं, जिनमें सबसे असरदार- ‘हीरो वो होता है… हारता है’ -यह वाला है।

बेहद डिम लाइट में फिल्माए गए इस सीन में कोच की आवाज में एक अजीब किस्म का ठहराव था, लेकिन वह ठहराव भी सुल्तान की आंखों में आंसू के सैलाब को रोक नहीं पाता। आंसू नहीं, मानो सारी पुरानी नाकामियां और गलतियां भी आंसुओं के साथ बह जाती हैं। यह सुल्तान की दूसरी इनिंग का टर्निंग प्वाइंट था, जो जिंदगी की तरफ देखने का उसका नजरिया बदल देता है।

मैं इसे दूसरी इनिंग तो नहीं कहूंगा, लेकिन गुलज़ार के शब्दों में

“ये जो चांद है ना, इसे रात में देखना ये दिन में नहीं निकलता।”

“ये तो रोज़ निकलता होगा।”

“हां, लेकिन बीच में अमावस आ जाती है, वैसे तो अमावस 15 दिनों की होती है, लेकिन इस बार….. बहुत लंबी थी”

विराट कोहली के लिए भी इस बार अमावस बहुत लंबी थी। आंधी के संजीव कुमार और सुचित्रा सेन के नौ महीनों से भी ज्यादा लंबी। लेकिन क्रिकेट का यह सुल्तान कार्तिक अमावस के एक दिन पहले मेलबर्न के मैदान पर “Super Moon” जैसे विराट रूप में नजर आ रहा था। उसके कॅरियर पर छाया अमावस्या जैसा अंधकार दूर हो गया। सुपर मून यानी वह दिन जब चांद, धरती के सबसे नजदीक होता और ज्यादा बड़ा और चमकीला दिखाई देता है। वह भी पूरे शबाब पर था और Super Moon वाले चांद की तरह लाल रोशनी में अपनी अलग ही छटा बिखेर रहा था।

फ़तेह सिंह की सुल्तान के लिए कही गई बातें विराट की असली जिंदगी में भी सही साबित हुईं। विराट इतने दिनों से हार रहे थे। सुल्तान की तरह उनकी यह हार विरोधियों के हाथों कम अपनी खुद की वजहों से ज्यादा थीं। वह एक ही गलती बार बार कर रहे थे। बाहर के बजाए आंतरिक संघर्ष ज्यादा बड़ा और तीव्र था। वह खुद से लड़ रहे थे। आपने सुल्तान मूवी देखी हो या उसका ट्रेलर देखा हो तो उसमें एक और सीन है, जिसमें सलमान खान, कटी पतंग को लूटने के लिए दौड़ते हैं।

जिस खेल के वह मंझे हुए खिलाड़ी थे, उसका मांजा उनके हाथों से फिसल रहा था। खुद को झोंकने और साबित करने की लड़ाई में आखिरकार आरफा (वही, जिसका जिक्र शुरुआत में किया था और जिसे रियल लाइफ में विराट की हमसफर अनुष्का ने परदे पर साकार किया था) का सुल्तान तमाम चुनौतियों को पार करते हुए कटी पंतग को थाम ही लेता है। विराट के लिए भी शायद कल कुछ इसी तरह का मोमेंट था। आरफा का सुल्तान कई दिनों से भाग रहा था, लेकिन पतंग के करीब पहुंचकर भी वह उसे हासिल नहीं कर पा रहा था।

इसी फिल्म के दो संवाद है, जो पोस्ट मैच बातचीत में विराट की बातों में भी झलक रहे थे। पहला ‘कई बार दर्द का इलाज दर्द होता है’ और ‘तब तक तुम्हें कोई हरा नहीं सकता है, जब तक तुम खुद से हार ना जाओ।’ सलमान के इन दोनों संवादों को विराट ने असल जिंदगी में जिया है। नाकामी, उम्मीदों पर खरा नहीं उतरना और अपने रुतबे के हिसाब से परफॉर्म नहीं करना, ऐसे कई दर्द विराट पिछले कई महीनों से झेल रहे थे। इस टाइगर को बताने की जरुरत नहीं थी कि वह जिंदा है। वह चुपचाप खुद को दर्द देते हुए अपने आप को झोंके हुए था। और सुल्तान की तरह ही उसकी जिंदगी का फलसफा भी ‘जब तक तुम खुद से हार ना जाओ’ जैसा था। उसने कभी खुद को हारा हुआ महसूस नहीं किया। वह खुद को दर्द देते हुए लड़ता रहा और आखिर वह दिन आ गया, जब पूरी दुनिया उसे सलाम कर रही थी। अमावस की एक रात पहले उनके बल्ले ने रात ऐसी गुलजार की कि नाकामियों का सारा अंधियारा छंट गया।

फिल्म की तरह विराट की लड़ाई भी खुद से थी। शायद वह भी सुल्तान की तरह महसूस कर रहे थे कि “ये लड़ाई खुद के लिए है, अपनी औकात बदलने के लिए।” और उन्होंने साबित कर दिया कि ये जो गुरूर है, क्या कहते हैं अंग्रेजी में… एरोगेन्स यह एरोगेन्स नहीं कॉन्फिडेंस है। सलमान की तरह वह मानो वह खुद से इतने दिनों से कह रहे हो “असली पहलवान की पहचान अखाड़े में नहीं, जिंदगी में होवे है, ताकि जब जिंदगी तुम्हे पटके तो तुम फिर खड़े होवो और ऐसा दाव मारो कि जिंदगी चित हो जाए।”

मैच के बाद आरफा यानी अनुष्का ने विराट के लिए इमोशनल पोस्ट लिखा, “मैं ये कह सकती हूं कि मैंने अपनी जिंदगी का बेस्ट मैच अभी देखा है। हमारी बेटी अभी ये समझने के लिए बहुत छोटी है कि उसकी मां क्यों कमरे में चिल्लाते हुए कूद रही थी।” कोई शायद कभी समझ नहीं पाएगा कि उस वक्त अनुष्का के मन में क्या चल रहा होगा और विनिंग मोमेंट के बाद उनके इमोशन कैसे होंगे, लेकिन यदि हम सुल्तान का आखिरी सीन देखें तो कुछ इस तरह का अहसास होगा कि- ‘’अगर तूने आज गिवअप किया तो शायद बाहर से जिंदा रह जाए, मगर अंदर से मर जाएगा हमेशा के लिए।‘’

आरफा का सुल्तान भी उस मौके पर अपने सबसे विराट स्वरूप में नजर आया, जब उसकी टीम और उससे ज्यादा इस खेल को इसकी जरुरत थी। उसने बता दिया कि क्यों कुछ खिलाड़ी इतिहास रचने के लिए बने होते हैं। और फ़तेह सिंह के शब्दों की तरह “हीरो वो है जो हारता है, क्योंकि वही जानता है जीतने की असली वैल्यू”। कई बार से हारने वाला यह जादूगर, बाजीगर के शाहरुख की तरह नहीं था, जो हार कर भी जीत जाता है। यह तो ‘जो जीता वो ही सिकंदर’ का आमिर खान है, जो गुनगुना रहा होगा कि ‘यहां के हम सिकंदर…’

अंत में विराट कोहली के जुनून, जज्बे और कभी न हार मानने वाली स्पिरिट के लिए इसी फिल्म के लिए इरशाद कामिल के लिखे बोल- ‘’जिनकी आंखों में कॅरियर में पहली बार आंसू थे और हर की तरह जर्सी पसीने में भीगी थी।‘’
(लेखक की फेसबुक पोस्‍ट से साभार)

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