गलती मंजूर करना भी इन दिनों बड़ी बात है

सोमवार को मीडिया में दो खबरें पढ़कर बरबस ही एक ऐसा शब्द याद आ गया जो इन दिनों समाज में और खासकर भारतीय समाज में दुर्लभ होता जा रहा है। यह शब्द है ‘पश्चाताप’ या ‘पछतावा।‘ ऐसा लगता है कि इस शब्द को समाज भूलता-सा जा रहा है। उसने गलतियां करना ही अपना स्वभाव बना लिया है और शायद अब तो अधिकार भी…।

ऐसा नहीं है कि ग‍लतियां इंसान से कभी नहीं हुईं। बल्कि इंसान को तो उलटे, ‘गलतियों का पुतला’ कहा जाता है। एक समय था जब कोई गलती हो जाने के बाद, खासतौर से उत्‍तेजना में कुछ कर बैठने के बाद इंसान अपने किये पर पछतावा करता था। थोड़ी देर के लिए ही सही पर मन में यह बात जरूर आती थी कि जो हुआ ठीक नहीं हुआ।

पर अब यह पछतावा हमारे सहज स्वभाव या प्रकृति का हिस्सा नहीं रहा। हम गलती या अपराध करते हैं और बजाय उस पर पछताने के, खेद जताने के… और ज्यादा ढीठ बनकर अपनी गलती का औचित्य साबित करने में लग जाते हैं। ‘मुझे खेद है’- ये तीन शब्द कह कर मामले को ठंडा करने का जतन नहीं करते।

अब अपनी गलती के कारण पीडि़त होने वाले व्यक्ति अथवा समूह को पहुंचे घाव पर मरहम लगाने के बजाय, हम अपने अपराध के समर्थन में लंबी लंबी तकरीरें, दलीलें पेश करने में जुट जाते हैं। ऐसा करके हम समाज में गलतियों या अपराधों को और उकसा रहे हैं, क्‍योंकि जब हम गलती करने के बाद ऐसा व्‍यवहार करते हैं तो एक तरह से अपने अपराध के कारण दूसरों को दिए गए जख्‍मों पर तेजाब छिड़क रहे होते हैं।

इसी संदर्भ में जिन दो खबरों की मैं बात कर रहा हूं उसमें से एक का संबंध खेल से है और दूसरी का राजनीति से। पहला किस्सा हाल ही में संपन्न हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप का है, जिसके फायनल मैच की रोमांचकता और परिणाम को लेकर चल रही बहस इतने दिनों बाद भी थमने का नाम ही नहीं ले रही है।

खबर आई है कि उसी मैच के अंपायर रहे श्रीलंका के कुमार धर्मसेना ने स्‍वीकार किया है कि वर्ल्ड कप फाइनल में इंग्लैंड को विवादास्‍पद चार रन देना उनकी गलती थी, कायदे से उन्‍हें उस समय एक ही रन देना चाहिए था। फाइनल में दिए गए वे चार रन ही न्‍यूजीलैंड पर इंग्लैंड की जीत में निर्णायक साबित हुए थे।

चार रन देने के अंपायर के इस फैसले को लेकर क्रिकेट जगत में अभी तक विवाद चल रहा है। मैच के अंपायर कुमार धर्मसेना ने अब श्रीलंका के अखबार ‘संडे टाइम्स’ से बातचीत में कहा है कि ‘’टीवी पर रीप्ले देखने के बाद मैं स्वीकार करता हूं कि फैसला करने में गलती हुई थी। लेकिन मैदान पर टीवी रीप्ले देखने की सहूलियत नहीं थी और मुझे अपने फैसले पर कभी मलाल नहीं होगा।’’

धर्मसेना ने गलती स्‍वीकार करते हुए यह भी कहा है कि वे इसके लिए माफी नहीं मांगेंगे। उन्‍होंने कहा- ‘’मैंने वॉकीटॉकी के जरिये लेग अंपायर से सलाह ली, जिसे सभी अन्य अंपायरों और मैच रेफरी ने सुना। हम टीवी रीप्ले नहीं देख सकते थे, लेकिन बाकी सभी ने पुष्टि की कि बल्लेबाजों ने दूसरा रन पूरा कर लिया है। इसके बाद मैंने अपना फैसला किया।‘’

मुझे पता नहीं कि, धर्मसेना के इस बयान के बाद, वर्ल्‍ड कप को लेकर चल रहा विवाद ठंडा होगा या और बढ़ेगा, लेकिन इस बात का तो नोटिस लिया ही जाना चाहिए कि धर्मसेना ने कम से कम अपनी गलती को स्‍वीकार तो किया। फैसले पर माफी मांगने की बात से उन्‍होंने भले ही इनकार कर दिया हो, पर अपनी गलती मान लेने का उनका बयान भी कम महत्‍वपूर्ण नहीं है।

दूसरा मामला भारत में जम्‍मू कश्‍मीर के राज्‍यपाल सतपाल मलिक से जुड़ा है। 21 जुलाई को करगिल में आयोजित एक कार्यक्रम में मलिक ने आतंकवादियों से कहा कि वे सुरक्षाकर्मियों समेत बेगुनाहों की हत्या करना बंद करें और इसके बजाय उन लोगों को निशाना बनाएं जिन्होंने वर्षों तक कश्मीर की संपदा को लूटा है।

मलिक ने कहा- ‘‘लड़के जो बंदूक उठाये हुए हैं, फ़िज़ूल निहत्थे लोगों को मार रहे हैं, पीएसओ (निजी सुरक्षा अधिकारियों) को मारते हैं, एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारियों) को मारते हैं। भाई, क्यों मार रहे हो इनको? उन्हें मारो जिन्होंने तुम्हारा मुल्क लूटा है, जिन्होंने तुम्हारे कश्मीर की सारी दौलत लूटी है, इनमें से भी कोई मारा आपने कभी?’’

राज्‍यपाल के मुंह से ऐसी बातें सुनने के बाद बवाल मचना स्‍वाभाविक था और वही हुआ भी। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया कि ‘‘यह शख्स जो एक जिम्मेदार संवैधानिक पद पर है, वह आतंकवादियों को भ्रष्ट समझे जाने वाले नेताओं की हत्या के लिये कह रहा है। …आज के बाद जम्मू कश्मीर में मुख्यधारा के किसी भी नेता या सेवारत/सेवानिवृत्त नौकरशाह की अगर हत्या होती है तो समझा जायेगा कि यह राज्यपाल सत्यपाल मलिक के आदेशों पर की गई है।’’

विवाद बढ़ने पर राज्यपाल ने कहा कि हथियार उठाना कभी भी किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। इस संबंध में उन्‍होंने श्रीलंका में लिट्टे का उदाहरण दिया। साथ ही यह भी कहा कि- ‘‘मैंने जो कुछ भी कहा, वह गुस्से में कहा। राज्यपाल होने के नाते मुझे इससे बचना चाहिए था।‘’ यानी मलिक को इस बात का अहसास हुआ कि उन्‍होंने जो कुछ कहा वह उनकी गलती थी और उन्‍हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था।

अब कहने को इन दोनों प्रसंगों में, अपनी गलती मान लिए जाने के बाद भी कुमार धर्मसेना और सतपाल मलिक पर सवाल उठाए जा सकते हैं। यह भी कहा ही जाएगा कि पहले गलती करना और बाद में सॉरी बोल देना, यह क्‍या बात हुई। आखिर गलती हुई ही क्‍यों?

बिलकुल ठीक है, कोशिश यह जरूर होनी चाहिए कि आपसे गलती न हो, लेकिन जैसाकि मैंने कहा, इंसान गलतियों का पुतला है, उससे कभी न कभी गलती हो ही जाती है, पर उसके इंसान होने की पहचान ही यही है कि गलती होने पर वह उसका पश्‍चाताप करे, उसके लिए पीडि़त या समाज से माफी मांगे और वैसी गलती न दोहराने का संकल्‍प ले।

ऐसे समय में जब सरेआम लोगों को पीट पीटकर मार डालने के बाद भी लोग छाती चौड़ी करके घूमने में अपनी शान समझ रहे हों, यदि कोई अपनी गलती मानने का साहस दिखा रहा है तो इतना तो मानना ही होगा कि उसके भीतर का इंसान अभी मरा नहीं है।

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