जयराम शुक्ल
एक साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मैहर में यह बयान दिया था कि विन्ध्य में हम उन नेताओं की कमजोरी की वजह से हारे जिनपर ज्यादा भरोसा किया था। यदि विन्ध्य साथ देता तो कांग्रेस की सरकार हरगिज न गिरती। इस बयान को अजय सिंह राहुल के खिलाफ माना गया, राहुल ने तब इसका माकूल जवाब भी दिया था।
अभी गुरुवार को कमलनाथ सतना में थे और उनकी सरपरस्ती में आयोजित ‘भारत जोड़ो लोकतंत्र बचाओ’ में अजय सिंह राहुल के लिए कोई जगह नहीं थी। (मूलतः यह पिछड़ा वर्ग सम्मेलन था) सम्मेलन के आयोजक थे सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू। स्थानीय अखबारों के अनुसार एक लाख लोगों के जुटने के दावे के एवज में सतना के बीटीआई प्रांगण में महज 4 से 5 हजार लोग ही जुट पाए।
सवाल उठता है कि क्या अब कमलनाथ अजय सिंह राहुल को विन्ध्य की राजनीति में अपरिहार्य नहीं मानते? इस आयोजन के बाद जो ध्वनि निकली उससे यही लगता है..।
ये डब्बू कौन हैं..
दो महीने पहले सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू और कोतमा के सुनील सराफ का नाम देश भर की मीडिया की सुर्खियों में रहा। दोनों ही कांग्रेस के विधायक हैं। इन पर शराब के नशे में चलती रेलगाड़ी में एक युवती के साथ छेड़खानी करने की रपट पुलिस थाने में दर्ज है। हाल ही में सुनील सराफ ‘मैं हूँ डान’ के अंदाज में फायर करते हुए सोशल मीडिया पर वायरल हुए। उनके इस अंदाज को भाजपा ने चर्चाओं में इतना आगे बढ़ाया कि कांग्रेस को हनीट्रेप की सीडी से भाजपा को धमकाने की नौबत आ गई।
उनके जिगरी साथी डब्बू का ‘लोकतंत्र बचाओ सम्मेलन’ इन्हीं चर्चाओं और आरोप-प्रत्यारोपों की साया में नुमाया हुआ। डब्बू की कुलजमा पहचान काछियों के नेता रहे उन सुखलाल कुशवाहा के बेटे के तौर पर है जिन्हें 1996 के लोकसभा चुनाव में सतना से दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन सिंह और वीरेन्द्र कुमार सखलेचा को हराने के लिए जाना जाता है। यद्यपि इतनी ख्याति से नाखुश बसपा सुप्रीमो मायावती ने साल भर में ही उन्हें किनारे लगा दिया था।
सुखलाल समानता दल के नाम से काछियों को गोलबंद करके प्रदेश भर में दवाब की राजनीति करते रहे। चुनाव भी लड़े पर उन्हें भाव नहीं मिला। 2018 में कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल की ही पैरवी पर सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू को सतना से कांग्रेस की टिकट मिली और वे जीत भी गए। सतना के एक अखबार के स्थानीय संपादक राजेश द्विवेदी बताते हैं कि पिता की तरह अपनी अलग पहचान के लिए बेताब डब्बू को अजय सिंह राहुल का साया नहीं सुहाया।
2019 के लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेस में रहते हुए ही अजयसिंह राहुल समर्थित प्रत्याशी राजाराम त्रिपाठी के खिलाफ खड़े दिखे। उन पर साफ आरोप लगा कि उन्होंने भाजपा सांसद गणेश सिंह के लिए काम किया। द्विवेदी कहते हैं कि डब्बू को यकीन था कि वे गणेश सिंह की मदद से जीते हैं सो बदला चुका दिया। लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। डब्बू कांग्रेस के आयोजनों में ताल ठोककर अजय सिंह राहुल के खिलाफ खड़े हो गए और बयानबाजी भी की। जाहिर है बिना ऊपर की सरपरस्ती के यह संभव नहीं था। इसका इनाम कांग्रेस की महापौरी के टिकट के तौरपर मिला और इस बार उन्हें जमीन दिखाने की बारी अजय सिंह राहुल के समर्थकों की थी। यद्यपि यह काम वरिष्ठ नेता सईद अहमद ने बगावत करके और आसान कर दिया था। यह पिछड़ा वर्ग सम्मेलन डब्बू को विन्ध्य में पिछड़ों का नेता बनाने के लिए था..जिसपर उन्होंने खुद रायता फैला दिया और कुर्ते गंदे हुए कमलनाथ के।
राहुल से किनारा किसलिए..
अर्जुन सिंह और कमलनाथ के रिश्ते कभी खट्टे नहीं रहे। लेकिन राहुल के साथ यह खटास कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही शुरू हो गई। मुख्यमंत्री रहते हुए एक बार तय हुआ कि कमलनाथ चुरहट में अर्जुन सिंह की प्रतिमा अनावरण करने पहुंचेंगे। प्रचारित होने के बाद भी चुरहट जाने के बजाय कमलनाथ सिंगरौली उनके बहन-बहनोई (जिनसे राहुल के ठीक-ठाक रिश्ते नहीं हैं) से मिलने पहुंच गए। फिर जब मुख्यमंत्री पद से हटे तो मैहर में अजय सिंह राहुल पर कटाक्ष करके यह संदेश दिया के वे अब विन्ध्य में उनकी कोई अहमियत नहीं मानते।
दरअसल 2018 में अजय सिंह राहुल के साथ बड़ा गेम हुआ। सत्ताधारी दल के निशाने पर तो वे थे ही कांग्रेस के खुर्राट नेताओं ने भी उन्हें टॉप पर रखा। 2018 के चुनाव के समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सिपहसालार रहे एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट बताते हैं कि चुरहट में किस तरह समाज कल्याण की योजनाएं घर-घर पहुँचाई गईं। जनपरिषद के कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला जैसी योजनाओं को अजजा के घर-घर पहुंचा कर कांग्रेस का आधार छीन लिया।
उभरते हुए नेता कमलेश्वर पटेल के साथ अदावत अपनी जगह थी ही। प्रदेश के एक शीर्ष नेता ने चतुराई के साथ अजय सिंह राहुल को विन्ध्य का एकछत्र नेता बताते हुए, हैलीकॉप्टर दिलवाकर ज्यादा समय चुरहट के बाहर कर दिया। इस चक्रव्यूह में राहुल अभिमन्यु साबित हुए और व्यूह के अंतिम द्वार पर खेत कर दिए गए।
भाजपा को 30 में से 24 सीटें मिलीं। यद्यपि यह सब बसपा के वोट बैंक के भाजपा की ओर शिफ्ट होने की वजह से हुआ। कहते हैं कि विजेता के हजार माईबाप और हारने वाला अनाथ। राजनीति में यही होता है। उसके बाद से प्रदेश के नेतृत्व (जो कि कमलनाथ के पास ही रहा) ने उन्हें मौके बेमौके अपमानित और उपेक्षित किया। पिछड़ावर्ग सम्मेलन में उनसे परहेज भी उसी क्रम के आगे की कड़ी है।
पिछड़ों के बीच अगड़ों का क्या काम?
अब तक पिछड़ों और दलितों के सम्मेलन प्रतीकात्मक होते थे। उनके मंचों पर सामान्य वर्ग के क्षेत्रीय व स्थानीय नेताओं को जगह मिलती थी। डब्बू के पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में विन्ध्य के सबसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र कुमार सिंह को भी भाव नहीं दिया गया। वे मंत्री व विधानसभा उपाध्यक्ष रह चुके हैं। जिस दिन सतना में यह सम्मेलन चल रहा था उसी दिन रीवा में एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का नववर्ष मिलन समारोह आयोजित कर रखा था। इसमें शामिल एक वरिष्ठ नेता ने कहा- ऐसा पहली बार हुआ जब आयोजकों की ही ओर से यह संदेश या संकेत दिया गया किसको आना है और किसको हरगिज भी नहीं। हम सामान्य वर्ग के लोग हरगिज नहीं की श्रेणी में थे सो वहाँ नहीं यहाँ हैं।
विन्ध्य के बड़े नेताओं अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी दोनों की राजनीति का आधार पिछड़ा वर्ग ही रहा। पिछड़ों की तरक्की के लिए उन्होंने महाजन आयोग गठित किया था। अर्जुन सिंह ने कांग्रेस की मुख्यधारा की राजनीति में पिछड़ों को ही आगे रखा। जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने तब अर्जुन सिंह के उम्मीदवार सुभाष यादव थे। इन्द्रजीत कुमार और राजमणि पटेल को आगे बढ़ाने का काम अर्जुन सिंह का ही था। सतना अर्जुन सिंह का कर्मक्षेत्र रहा। 1991 में वे यहाँ से लोकसभा पहुंचे और मानव संसाधन विकास मंत्री बने। उसी सतना में महाजन आयोग के लाभार्थियों के बीच उनका कोई नामलेवा नहीं रहा।
अब ज्यादा आसार नहीं..
फिलहाल यह लग रहा था कि 2023 के चुनाव में बाजी पलटेगी। जो समर्थन भाजपा के पास था वह इस बार कांग्रेस के खाते में आएगा। यानी कि 30 में 24 सीटें कांग्रेस जीतेगी। नगरीय और जिला पंचायत के चुनाव के परिणाम यही संकेत दे रहे थे। लेकिन सतना का पिछड़ा वर्ग सम्मेलन उसकी ऐसे ही शुरुआत है जैसे कि पहली ईंनिंग की पहली गेंद पर ही हिटविकेट होकर पवेलियन की ओर लौट जाना।
(मध्यमत)
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