यह जवाब सरकारी तंत्र के ‘रोग’ को उजागर करता है…!

अजय बोकिल

यूं सरकार के हजारों हाथ, आंख और कान होते हैं, बावजूद इसके सरकार को कई बार खुद अपने बारे में ठीक से पता नहीं होता। एक दिलचस्प खबर है कि भारत सरकार के जिस ‘आरोग्य सेतु’ को करीब 14 करोड़ लोग अपने स्मार्ट फोन्स में डाउनलोड कर चुके हों, जिसकी लांचिंग खुद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की हो तथा जिसे तमाम सरकारी कर्मचारियों और यात्रियों के लिए डाउनलोड करना अनिवार्य हो, वो एप आखिर बनाया किसने, यह सरकार को ही पता नहीं है। सरकार की इस मासूम अज्ञानता का खुलासा तब हुआ, जब एक आरटीआई के जवाब में केन्द्र सरकार ने कहा कि उसे नहीं पता कि आरोग्य सेतु एप बनाया किसने है।

इस जवाब के बाद केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने केन्द्र सरकार के इलेक्‍ट्रॉनिक्स मंत्रालय, नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर, नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन और पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर्स को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। अब देखना यह है कि इनमें से कौन इस एप को बनाने की जिम्मेदारी लेता है, लेता भी है या नहीं? लेता है तो उसे यह भी बताना पड़ेगा कि किसके निर्देश पर यह एप विकसित किया गया है? ध्यान रहे कि देश में कोरोना प्रकोप के बाद लागू लॉकडाउन के शुरुआती दौर में ही एक एप का बड़ा हल्ला रहा, वो है ‘आरोग्य सेतु’ एप। यह एप दरअसल एक कांटेक्ट ट्रैसिंग एप है, जिससे पता चलता है कि आप के संपर्क में आने वाला व्यक्ति कोविड 19 संक्रमित तो नहीं है।

एक तरह से यह ‘कोविड अलर्ट’ एप है। इसका मकसद किसी भी व्यक्ति को आगाह करना है कि वह स्वयं को कोरोना संक्रमण से कैसे बचाए। लॉकडाउन फेज वन के दौरान 2 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस एप को लांच किया। बताया गया कि कोरोना बचाव की दृष्टि से यह अत्यंत उपयोगी है। केन्द्र व राज्य सरकार के सभी कर्मचारियों को यह एप डाउनलोड करना अनिवार्य किया गया। इसका खूब प्रचार-प्रसार भी हुआ। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार आरोग्य एप मूलत: एक मोबाइल एप है, जो संपर्क में आए व्यक्ति के बारे में पता लगाता है कि वह कोविड संक्रमित है या नहीं। इस का शाब्दिक अर्थ है ‘रोग मुक्ति का पुल।‘

बताया गया कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर यह एप नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर ने केन्द्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की निगरानी में विकसित किया है। इस एप ने शुरू में ही अपनी उपयोगिता सिद्‍ध कर दी । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस एप की प्रशंसा की है। इसका अपडेटेड वर्जन भी अब आ गया है। ये एप यूजर स्टेटस, यूजर का सेल्फ कोरोना असेसमेंट, ई-पास की उपलब्धता और रिस्क लेवल की जानकारी देता है। यह एप 5 सौ मीटर से लेकर 10 किमी के दायरे में कोविड 19 पॉजिटिव व्यक्तियों की जानकारी दे सकता है। इस एप को देश की 12 भाषाओं में तैयार किया गया है। नीति आयोग ने पिछले दिनों दावा किया कि इस एप के जरिए पहले पखवाड़े में ही 3 हजार हॉट स्‍पॉट दर्ज किए गए।

हालांकि इस एप को लेकर कई सवाल भी उठे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि इस एप का दुरुपयोग व्यक्तियों की निगरानी के लिए किया जा सकता है। क्योंकि इस एप के जरिए कोई व्यक्ति कब,कहां जाता है, किससे मिलता है, इसकी जानकारी भी रखी जा सकती है। यह सवाल भी उठा कि ‘आरोग्य सेतु एप’ आप से कई निजी जानकारियां मांगता है, जिसका दुरुपयोग संभव है। हालांकि सरकार ने इन आशंकाओं का खंडन किया। लेकिन निजता की रक्षा का यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोग्य सेतु डाउनलोड अनिवार्य करना अवैधानिक है। यही नहीं, दो माह पूर्व आरोग्य सेतु में सुरक्षा खामी को लेकर भी सवाल उठे। इसके मुताबिक साइबर सिक्योरिटी फर्म ने आरोग्य सेतु के कोड में कुछ ऐसे हिस्सों और बैकएंड कंपोनेंट का पता लगाया, जो इसके डेढ़ करोड़ यूजर्स का डाटा खतरे में डाल सकता है। लेकिन बाद में कहा गया कि निर्माताओं ने इस खामी को ठीक कर दिया है। उधर सरकार ने इस एप से डाटा लीक होने की आशंका को पूरी तरह खारिज कर दिया।

कहने का तात्पर्य सिर्फ यह है कि इतनी रामायण घट चुकने के बाद भी यह बात पर्दे में है कि यह आरोग्य सेतु आखिर बनाया किसने और किसके कहने पर? क्योंकि सरकार इस बारे में कोई अधिकृत जानकारी होने से इंकार कर रही है। तो क्या आरोग्य सेतु अपने आप बन गया और बन कर डाउनलोड भी हो गया? यह तो संभव ही नहीं है। यह अजब किस्‍म का रहस्यवाद है। सीआईसी ने नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) को नोटिस जारी कर यह भी पूछा कि जब आरोग्य सेतु एप में साफ-साफ लिखा है कि इसे एनआईसी ने डेवलप और डिजाइन किया है, तो ऐसा कैसे संभव है कि उन्हें यह भी नहीं पता कि इस एप को किसने बनाया है। इसका एक अर्थ यह हुआ कि सम्बन्धित विभाग यह पढ़ना तक गवारा नहीं करते कि एप पर नाम किसका लिखा है।

केन्द्रीय सूचना आयुक्त एन. सरण ने पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर्स और एनआईसी से कहा कि वो लिखित में जवाब दें कि उन्हें नहीं पता है कि आरोग्य सेतु ऐप को किसने बनाया है और इसकी वेब साइट पर gov.in कैसे लगाया गया है। यह जानकारी अधिकारियों को देनी ही होगी। दरअसल सूचना आयोग तक यह मामला तब पहुंचा एक जब आरटीआई कार्यकर्ता ने आरोग्य सेतु निर्माण की जानकारी देने को लेकर सरकारी विभागों के हाथ ऊंचे करने की शिकायत सूचना आयोग को कर दी। अब सूचना आयोग सम्बन्धित विभागों की क्लास ले रहा है।

यहां असल मुद्दा एक जिम्मेदारी भरे काम को लेकर भी गैर जिम्मेदारी के सरकारी स्थायी भाव का है। वरना यह कैसे संभव है कि संतान को जन्म देने के बाद मां-बाप कहें कि उन्हें नहीं पता कि औलाद किसकी है? भले ही सं‍तान का गुरू प्रबल हो और उसके भाग्य में गजकेसरी योग हो। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार में ज्यादातर काम तदर्थवाद पर ही चलता है। एप बना दिया, पीएम से लांच करवा दिया लोगों से कह दिया कि डाउन लोड कर लो रे और अपना काम खत्म। बाकी जनता की या यूजर की किस्मत।

प्रधानमंत्री, विभागीय मंत्री और आला अफसर खुश तो पूरी दुनिया खुश। बाकी से क्या लेना-देना है। वैसे भी कोरोना खत्म (भगवान करे ऐसा हो) तो एप को भी कौन पूछेगा? इसलिए यह कारनामा किसने किया, इससे याद रखकर भी क्या हासिल होना है। अपना एप चल जाए और कोई इस बात का रिकॉर्ड न रखे कि इसे बनाया किसने या कोई इसका श्रेय भी न लेना चाहे कि हां, हमने बनाया, इसे आप क्या कहेंगे? घोर उदासीनता या फिर निष्काम भाव की पराकाष्ठा? अथवा नेकी कर दरिया में भी इस तरह डाल कि कोई जाल बिछाकर भी यह पकड़ न पाए कि इस नेकी को नाले में बहाने दिल दरिया आखिर किस महकमे का था?

हो सकता है सीईसी की सख्‍ती के बाद कोई विभाग ‘जुर्म कबूली’ की तर्ज पर कह दे ‍कि हां, भाई बनाया तो हमीने है, आपको क्या परेशानी है? तो शायद उस आरटीआई कार्यकर्ता की आत्मा भी ठंडी हो। लेकिन इससे यह खुलासा तो होता ही है कि आरोग्य एप बनाने वाले सरकारी तंत्र की सतर्कता कितनी है, उसकी अपनी सेहत में भी कितने झोल हैं।

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