सरकार का लोक कल्याण है या लूट?

राकेश अचल

आपदा में अवसर की तलाश करने वाली सरकार के सदके। भारत की जनता को परम लोकतांत्रिक केंद्र सरकार की आरती उतारना चाहिए और अगर ऐसा करने की हिम्मत न हो तो अपनी पीठ नंगी कर सरकार की ओर पिटने के लिए खुद को पेश कर देना चाहिए,  क्योंकि हमारी सरकार हमें आपदा से उबारने के लिए जितना देती है उससे कहीं ज्यादा वसूल भी कर लेती है। राज्य सभा में ये तथ्य हाल ही में उजागर हुआ है।

बीते साल मार्च में कोरोना संकट से जूझ रही आबादी को जब दुनिया ने नंगे पैर गर्म सड़कों पर पैदल चलते देखा था तब केंद्र सरकार ने अभागी जनता पर महती कृपा करते हुए 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज जारी किया था। तब सरकार का दावा था कि इस आर्थिक पैकेज से भूखी, प्यासी, अचानक बेरोजगार और अकाल मौत का सामना कर रही जनता को बड़ी राहत मिलेगी। जनता को राहत मिली या नहीं मिली ये जनता को मालूम है, लेकिन जनता ये नहीं जानती कि उस पर कृपा बरसाने वाली ‘हम दो, हमारे दो’ वाली सरकार ने बीते बारह महीने में 21 लाख करोड़ जबरन निकाल लिए। यानि जितने डाले थे उससे भी कहीं ज्यादा रकम तेल उत्पादों की कीमत बढ़ाकर वसूल कर ली।

सरकार के लिए चारण-भाट बने मीडिया ने कभी ये रहस्योद्घाटन नहीं किया,  वो तो संसद का सत्र चल रहा है इसलिए भोथरे हो चुके विपक्ष को ये रहस्योद्घाटन करने का मौक़ा मिल गया। अन्यथा जनता को तो इस लूट खसोट का पता ही नहीं लगता। दरअसल विपक्ष की जबान भी इस समय सिली हुई है। इसलिए पूरे साल लूट-खसोट जारी रही और विपक्ष सड़कों पर उतरने के बजाय ट्ववीट वाली भूमिका अदा करता रहा। ट्वीट वाला लोकतंत्र ही अब वंदनीय है।

कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे यदि राज्य सभा में तेल उत्पादों की मूलयवृद्धि पर बहस की मांग न करते और तो ये पता ही नहीं चलता कि कोरोना पीड़ित देश को 20 लाख करोड़ रुपये की सहायता देने वाली सरकार ने कैसे जनता से 21 लाख करोड़ वसूल कर लिए। सरकार न सड़क पर बहस करती है और न संसद में। सरकार की ओर से बहस आभासी मीडिया पर या चुनावी सभाओं में की जा सकती है और शायद इसीलिए सोमवार को राज्य सभा हंगामे में तो डूबी लेकिन बहस के लिए राजी नहीं हुई।

विपक्ष नियम 267 के तहत सदन का सामान्य कामकाज स्थगित कर इस मुद्दे पर बहस की मांग कर रहा था, लेकिन सभापति श्री नायडू ने कहा कि उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया है, क्योंकि सदस्य मौजूदा सत्र में विनियोग विधेयक पर चर्चा के दौरान एवं अन्य मौकों पर इस संबंध में अपनी बात रख सकते हैं। हालांकि नायडू ने नेता प्रतिपक्ष को सदन में इस मुद्दे का उल्लेख करने की अनुमति दी। खड़गे ने कहा कि सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क और अन्य कर लगाकर 21 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं जबकि कीमतों में वृद्धि के कारण किसान और आम लोग परेशान हैं।

आपको याद होगा कि बीते साल 13 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान यह कहते हुए किया था कि यह पैकेज ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को नई गति देगा। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए इसमें सभी पर बल दिया गया था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थीं,  जो रिजर्व बैंक के फैसले थे और जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान किया गया है,  उसे जोड़ दें तो ये करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। ये पैकेज भारत की जीडीपी का करीब-करीब 10 प्रतिशत था।

यानी केंद्र ने एक हाथ से दिया और दूसरे हाथ से छीन भी लिया। इसे आप जो कहना चाहें,  कह सकते हैं लेकिन एक आम आदमी के नाते मुझे ये सरकार की ओर से की गयी लूट ही लगती है। सरकार चाहती तो कोरोना संकट से आज भी जूझ रहे देश में तेल उत्पादों की कीमत बढ़ाये बिना बहुत सी राहत दे सकती थी,  लेकिन एक लीटर पर 33 रुपये कमाने वाली सरकार इस मामले में हृदयहीन निकली। आपदा में कमाने का अवसर आम जनता को नहीं हमारी सरकार को मिला। सरकार ने इसी आपदा में मध्यप्रदेश में कंग्रेस की सरकार गिरायी,  बिहार के चुनाव लड़े और अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ रही है। उसके सामने पैसे का कोई संकट नहीं है। संकट में तो केवल राष्ट्र की जनता है।

सरकार की बेरहमी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि डीजल की सर्वाधिक खपत खेतीबाड़ी में करने वाले किसान को भी नहीं बख्शा गया, महिलाओं की रसोई पर भी मंहगाई की आग लगा दी गयी। देश का किसान पूरे सौ दिन से दिल्ली के बाहर सत्‍याग्रह कर रहा है लेकिन सरकार ने आँख-कान बंद कर लिए हैं। शुरू में तो उसने किसानों से बातचीत का नाटक भी किया, लेकिन अब तो बातचीत की बात ही बंद कर दी है। सरकार किसानों को थकाकर, पकाकर उनका सत्याग्रह समाप्त कराना चाहती है। सरकार में बैठे लोगों को सत्याग्रह करने का अनुभव ही नहीं है सो वे इसकी पाकीजगी से अनजान हैं।

देश की संसद में महंगाई और सरकार की लूट पर बहस हो या न हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तब पड़ेगा जब जनता त्राहि-त्राहि करते हुए बिलबिलाने लगेगी। देश में भगवान श्रीराम का मंदिर बनाने के लिए एक तरफ चंदा अभियान में लगी भक्तों की फ़ौज का इस लूट-खसोट से कोई विरोध है ही नहीं। वे तो बंगाल में ममता बनर्जी को जय श्रीराम कहकर चिढ़ाने में लगे हैं। पूरी रामसेना एक महिला मुख्यमंत्री को परास्त कर अपने पुरुषार्थ का झंडा फहराना चाहती है।

राजनीति में यही निर्ममता हमेशा से काम की मानी जाती है। राजनीति में अब ममता की नहीं निर्ममता की ही पूजा हो रही है। देश की निर्मम राजनीति देश को किस दिशा में ले जाएगी केवल राम जी जानते हैं। कम से कम हम जैसा खबरनबीस तो इसका अनुमान लगाने में असमर्थ है। देश का आम नागरिक समर्थ प्रधानमंत्री को,  उनकी सरकार को दोष कैसे दे सकता है। दोषी तो अवाम है जो इस समय आसहाय है, असमर्थ है।(मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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