राकेश दुबे
भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर का शिवमोगा कर्नाटक में दिया गया भाषण इतना वायरल हो गया है कि उसके बारे में चर्चा करना उचित नहीं है। देश में ऐसे बयानों का सिलसिला राजनीति में फैशन बन गया है। देश के सबसे पुराने दल के गौरव पाधी भी ऐसा ही कुछ कह कर वापिस मुकर चुके हैं। भोपाल की सांसद के एक पूर्व बयान से प्रधानमंत्री तक पहले पल्ला झाड चुके हैं।
ऐसे बयानों की तह में जाने पर पता लगता है, राजनीतिक दलों में कहीं भी सामान्य शिष्टाचार का प्रशिक्षण नहीं है, नेताओं का देश की मूल समस्या पर किसी का ध्यान नहीं है, उन्हें सिर्फ थुक्का फजीहत में मजा आता है। इस विषय पर और ज्यादा लिखना उस जमात में शामिल होना है, जिसे सभ्य और समझदार नहीं कहा जा सकता।
देश प्रथम है, आप किसी भी राजनीतिक विचार के समर्थक हो सकते हैं, पर देश, उसकी समस्याएं और समाधान हमेशा केंद्र में होना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि किसी देश की तरक्की का एक पैमाना है कि उसका कोई नागरिक भूखा न सोये। यह सत्ताधीशों और प्रतिपक्ष की जवाबदेही है। आदर्श स्थिति तो यह है कि हर हाथ को काम मिले और व्यक्ति को किसी राहत योजना का मोहताज न होना पड़े।
भारत जैसे देश में जहां आर्थिक असमानता चरम पर है और जातिवादी दुराग्रहों से सामाजिक न्याय की अवधारणा सिरे नहीं चढ़ सकी, वहां परिस्थितियां कमजोर वर्ग को राहत की मांग करती हैं। दुर्भाग्य से ये विषय इन दलों की प्राथमिकता में नहीं हैं।
इतिहास गवाह है- विभाजन, विस्थापन, प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं व महामारियों के चलते लाखों आबाद लोग सड़कों पर आ गये थे और आ रहे हैं। साल-दर-साल आने वाली प्राकृतिक आपदाएं बाढ़, सूखा व अन्य प्रकोप गरीबों की संख्या में इजाफा करते हैं। यही वजह है कि अपने भरण-पोषण के दायित्व का निर्वहन न कर सकने वालों को सरकारी मदद की दरकार होती है, सरकार दोनों पक्षों का सम्मिलित नाम है।
यह विषय सरकारों की संवैधानिक बाध्यता भी है। कमोबेश इसी दायित्व के निर्वहन हेतु देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का क्रियान्वयन हुआ। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत प्रत्येक निर्धन व्यक्ति को हर माह पांच किलो अनाज मुफ्त मुहैया कराने की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर अत्यधिक निर्धन परिवारों के भरण-पोषण के लिये बनी अंत्योदय योजना के अंतर्गत प्रत्येक परिवार को पैंतीस किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई।
लेकिन जहां खाद्य सुरक्षा के तहत दिये जाने वाले अनाज के लिये प्रतीकात्मक कीमत देनी पड़ती थी, वहीं अंत्योदय योजना में दिये जाने वाला अनाज मुफ्त ही दिया जाता है। लेकिन देशव्यापी कोरोना संकट के बाद जब विषम परिस्थितियों के चलते व्यापक रोजगार संकट पैदा हुआ तो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के जरिये भूख के संकट का समाधान निकालने का प्रयास किया गया। जिसका समय कालांतर बढ़ाया भी गया।
अब सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को विराम दे दिया है, दुर्भाग्य इन विषयों पर देश का प्रतिपक्ष चुप है। लेकिन वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना और अंत्योदय योजना के तहत दिये जाने वाले अनाज के वितरण की समय सीमा में एक वर्ष की वृद्धि की गई है। जो मुफ्त मिलेगा। जरा सोचिये, इसका लक्ष्य क्या है?
कहने को कहीं न कहीं सरकार की मंशा है कि कोरोना संकट काल में प्रारंभ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के बंद होने से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य प्रभावित न हों। भूख और गरीबी देश में बड़ा राजनीतिक मुद्दा हमेशा से रहा है। यही वजह है कि सरकार कह रही है कि इस योजना का लाभ देश के इक्यासी करोड़ से अधिक लोगों को मिलेगा। इस पर जो भारी-भरकम खर्च आएगा, उसे सरकार वहन करेगी। क्या पक्ष-प्रतिपक्ष की प्राथमिकता यह विषय नहीं होना चाहिए।
एक और हकीकत। कोरोना दुष्काल के चलते लगाये गये प्रतिबंधों व अन्य कारणों से देश में जो रोजगार संकट पैदा हुआ, अभी फिर कोरोना की चेतावनी मिल रही है। देश में बेरोजगारी की दर बढ़ी हुई है। ऐसे में गरीबी की रेखा के नीचे पहुंचे लोगों को संबल देना जरूरी है, गैर जरूरी, भ्रामक और विध्वंसक बयान रोके जाना चाहिए।
आज जब विश्व भुखमरी सूचकांक में भारत की स्थिति में गिरावट देखी जाती रही है। ऐसे में आधी से अधिक आबादी को मुफ्त अनाज लंबे समय तक उपलब्ध करा पाना मुश्किल ही रहेगा। वह भी तब जब ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते खाद्यान्न उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है। वहीं दूसरी ओर कच्चे तेल के दामों में वृद्धि से आयात बढ़ा है और निर्यात में गिरावट आई है।
ऐसे में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत देश की पचास प्रतिशत शहरी व 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को अनाज उपलब्ध कराना यह भी संकेत है कि एकांगी विकास समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने में विफल रहा है। हर हाथ को काम उपलब्ध कराने और सरकारी राशन पर लोगों की निर्भरता कम करने के लिये व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए सबको सोचन होगा तभी सही मायनों में देश तरक्की कर पायेगा। थुक्का फजीहत में कुछ नहीं रखा है, देश के सामने मौजूदा समस्या पर सोचिये, संकट और मत बढ़ाइये।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।-संपादक