राकेश दुबे
सर्वविदित है ‘आतंकवाद’ शब्द ‘आतंक’ और ‘वाद’ दो शब्दों से मिलकर बना हैं। ‘आतंक’ से तात्पर्य भय से हैं एवं वाद का तात्पर्य विचार से हैं। आतंकवाद का शाब्दिक अर्थ उस विचार से होता हैं जिससे भय या दहशत का वातावरण उत्पन्न हो, उसे ही आतंकवाद कहते हैं।
आतंक का दर्शन ही आतंकवाद हैं। यह एक बीमार तथा विश्रृंखलित समाज की देन हैं। आतंकवाद अपने सभी रूपों में शस्त्ररहित नागरिक समुदाय के विरुद्ध अत्याचार का पर्याय है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, कूटनीति एवं युद्धनीति की शब्दावली में आतंकवाद नवीन नहीं हैं, इसका अस्तित्व थोड़े बहुत रूप में मानव समुदाय के अस्तित्व के साथ-साथ रहा है।
आतंकवाद का जन्म दो परिस्थितियों में संभव हैं, प्रथम उस स्थिति में जिसमें कोई व्यक्ति या व्यक्ति समुदाय अपनी नाजायज माँगों को मनवाने के लिए आतंक को उपाय के रूप में प्रयोग करता हैं। द्वितीय, स्थिति में आततायी उत्पीड़न का सामना करने के लिए व्यक्ति या व्यक्ति समुदाय आतंक का रास्ता चुनता हैं। यह स्थिति प्रायः राजनीतिक आंदोलनों के समय उत्पन्न होती है।
भारत ने बीते दिनों इस संबंध में एक अहम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी भी की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आयोजन में कहा कि आतंक अच्छा या बुरा में नहीं बांटा जाना चाहिए। यह मानवता, स्वतंत्रता और सभ्यता पर हमला है। इसे साझा कठोर रवैये से ही रोका जा सकता है। उन्होंने आतंक को प्रश्रय और सहयोग देने वाले देशों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत पर जोर देते हुए आतंकियों को मिलने वाले धन के स्रोतों को रोकने की मांग की है। भारत में फैले और समाप्त होते दिख रहे आतंकवाद के मूल में यह भी एक कारण है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अभिलेख और देश के सामने गुजरे उस भयावह काल के बाद उचित ही रेखांकित किया है कि आतंक से भी कहीं अधिक खतरनाक उसे धन उपलब्ध कराना है। भारत उन कुछ देशों में है, जो दशकों से आतंकी हिंसा का सामना कर रहे हैं। यह जगजाहिर तथ्य है कि हमारे देश को अस्थिर करने तथा आतंकियों द्वारा भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने की साजिशें पाकिस्तान में रची जाती रही हैं। यह भी स्थापित तथ्य है कि पड़ोसी देशों में आतंकवाद को बढ़ावा देना पाकिस्तानी विदेश नीति और रक्षा नीति का अभिन्न हिस्सा है।
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की नापाक हरकतों को चीन का समर्थन भी मिल रहा है। आतंकियों को धन देने के मामले को लेकर इस संबंध में बनी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने पाकिस्तान पर कार्रवाई भी की है, लेकिन कुछ ताकतवर देश, जिनमें अमेरिका और पश्चिमी देश भी शामिल हैं, अपने भू-राजनीतिक स्वार्थों को साधने के लिए पाकिस्तान के साथ नरमी से पेश आते रहे हैं। हाल में आतंकियों को धन देने के मामले में लगे आरोपों पर पाकिस्तान की फर्जी सफाई को स्वीकार करते हुए उसे निगरानी सूची से निकाल दिया गया है।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान को अमेरिका से सैन्य सहायता के नाम पर खरबों रुपये की वित्तीय सहायता भी दी गयी है। जिसका इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई अपनी हरकतों के लिए करेंगे। इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। चीन और अमेरिका के बीच चल रही रस्साकशी भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिणी एशिया की शांति को प्रभावित कर सकती है। उम्मीद है कि हालिया सम्मेलन की चर्चाओं तथा भारत के प्रस्तावों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय गंभीरता से विचार करेगा।
(मध्यमत)
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