तो फिर 2जी घोटाले का दोषी कौन?

सुरेश हिन्‍दुस्‍तानी

देश में संप्रग सरकार के समय हुए 2जी घोटाले में न्यायालय के निर्णय के साथ ही भाजपा और कांग्रेस में राजनीतिक बयानबाजी प्रारंभ हो गई है। कांग्रेस जहां इस घोटाले को पूरी तरह से झूठा प्रमाणित करने की कवायद कर रही है, वहीं भाजपा की तरफ से अभी भी इसे घोटाले का रुप ही देने की राजनीति की जा रही है। इस प्रकार की बयानबाजी निश्चित ही देश में भ्रम पैदा करती हैं। इस मामले में निर्णय आने के बाद देश के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता और भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी का यह कथन बहुत ही पेच खड़ा करने वाला दिखाई दे रहा है कि इस प्रकरण में सरकार की ओर से जो वकील लाए गए थे, उन्होंने केस सही ढंग से लड़ा ही नहीं। स्वामी ने इसे अंतिम निर्णय भी नहीं माना। साथ ही सरकार को ऊपरी न्यायालय में प्रकरण ले जाने की सलाह भी दी।

स्वामी की बात को सही माना जाए तो यह निष्कर्ष तो निकलता ही है कि इसमें कहीं न कहीं गड़बड़ हुई है। वास्तव में भ्रष्टाचार हुआ है तो नरेन्द्र मोदी सरकार को इसका खुलासा करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए। पहले देश में भ्रष्टाचार के बारे में आम राय थी कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो ही नहीं सकता, लेकिन आज इस धारणा में बदलाव देखा जाने लगा है। जनमानस अब साफ तौर कहने लगा है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में सार्थक कदम बढ़ा रही है। देश से भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए कांग्रेस को भी पूरे मन से सरकार का साथ देना चाहिए। राजनीतिक श्रेय पाने के लिए बयानबाजी करना भ्रष्टाचार को समाप्त करने का माध्यम नहीं माना जा सकता।

कांग्रेस के बड़े राजनेता भी इस निर्णय को ऐसे प्रचारित कर रहे हैं जैसे भ्रष्टाचार कभी हुआ ही नहीं। कांग्रेस कभी भ्रष्टाचार करती ही नहीं थी। सभी जानते हैं कि मनमोहन सिंह की सरकार भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली सरकार साबित हो रही थी। मुझे लगता है कि इस सरकार के समय ही सबसे ज्यादा ऐसे भ्रष्टाचार के मामले सामने आए जो सत्ता में भूमिका निभाने वाले राजनेताओं द्वारा किए गए थे। जिसमें 2जी घोटाला और कोयला खदान आवंटन जैसे मामले हमारे सामने हैं। देश के बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर आए फैसले को कांग्रेस ने अपनी ईमानदारी के प्रमाणपत्र के रूप में प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया है। संप्रग सरकार में मंत्री रहे दो राजनेता ए. राजा और कनिमोझी के अलावा 15 आरोपियों और तीन कंपनियों को न्यायालय ने पर्याप्त प्रमाण नहीं होने के कारण बरी कर दिया।

न्यायालय ने साफ कहा कि सरकार की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके कि इस मामले में किसी भी प्रकार का लेनदेन हुआ है। हम जानते हैं कि इस घोटाले ने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार को बहुत परेशान किया था। उसे देश की सत्ता से भी हटना पड़ा था। सवाल यह भी है कि उस समय सरकार के किसी भी मंत्री के पास क्‍या इसको झुठलाने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं थे। कांग्रेस के पास तो संभवत: आज भी नहीं हैं। अगर इस मामले में न्यायालय का फैसला नहीं आता तो कांग्रेस आज भी यह नहीं कह पाती कि इसमें किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं हुआ। इसलिए आज कांग्रेस के नेताओं द्वारा यह कहा जाना कि कांग्रेस ईमानदार है, गले नहीं उतर रहा।

वैसे कोई भी आरोपी अपने को बचाने का भरपूर प्रयास करता है। इसमें ऐसे ही खेल की संभावना दिखाई देती है। हालांकि यह निर्णय न्यायिक संस्था का है, इसलिए उस पर किसी भी प्रकार का सवाल नहीं है। सवाल हमारी राजनीतिक व्यवस्था का है। आज भले ही इस मामले में आरोपियों को बरी कर दिया गया हो, लेकिन इसके कारण सरकार को जो राजस्व हानि हुई, उसके पीछे कौन है। वह राजस्व किसे मिला, नहीं मिला तो सरकारी खजाने में क्यों नहीं आया? यह ऐसे सवाल हैं, जिनके उत्तर तलाश करना बहुत जरूरी है। कांग्रेस के नेता इसे भले ही अपनी सरकार के लिए प्रमाणपत्र मानें, लेकिन यह ईमानदारी का प्रमाणपत्र है ही नहीं।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here