ढोंगी बाबाओं का फैलता मकड़जाल

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देवेंद्रराज सुथार

आस्था के नाम पर पाखंड, ढोंग और आडंबर का खेल भारत में जारी हैं। ऐसा ही ढोंग रचने वाला एक तथाकथित बाबा फिर सुर्खियों में है। दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय चलाने वाले बाबा वीरेंद्रदेव दीक्षित पर उसी की शिष्या ने दुष्कर्म का आरोप लगाया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बाबा सोलह हजार एक सौ आठ लड़कियों के साथ कुकर्म करना चाहता था। आश्रम के अंदर सुरंग में बने कमरे में लड़कियों को गुप्त प्रसाद देने के बहाने बाबा दुष्कर्म व अश्लील हरकतों पर उतर आता था। आश्रम में मिली कई ऐसी चीजें इस बात की ओर इशारा करती है कि दाल में कुछ तो काला हैं! इससे पहले भी बाबा पर अलग-अलग थानों में 10 एफआईआर हो चुकी हैं। इनमें ज्यादातर बलात्कार के मुकदमे हैं। ये शिकायतें 1998 से लेकर अब तक की गई हैं। पुलिस की डायरी में एक महिला की आत्महत्या का मामला भी दर्ज है।

बहरहाल, बाबा भूमिगत है और देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रमों को पुलिस सील करके इनमें फंसी लड़कियों को बाहर निकल रही हैं। थोड़े दिनों पहले ही कथित बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह के आश्रम में चल रही करतूतों का काला चिट्ठा सार्वजनिक हुआ था। अब आरोपित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित की आधी सच्चाई बाहर आ चुकी है और आधी जल्दी ही बाहर आ जाएगी।

श्रद्धा और विश्वास के नाम पर चल रहे इन आश्रमों में ऐसा भी कुछ हो सकता हैं, इसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। ये दोनों घटनाएं तो उदाहरण मात्र हैं, भारत में ऐसे ढोंगी बाबाओं का लंबा इतिहास रहा है। इन फर्जी, ढोंगी एवं स्वयंभू बाबाओं की सूची में आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, आसाराम का बेटा नारायण साईं, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, नित्यानंद, रामपाल, स्वामी असीमानंद, ऊं नमः शिवाय बाबा, कुश मुनि, बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि समेत कई लोगों के नाम शमिल हैं।

ये सब वे बाबा हैं जो खुद को भगवान मानने से परहेज नहीं करते। धर्म के नाम पर अधर्म का पाठ पढाकर लूट की दुकान चलाने वाले ये बाबा जितने दोषी हैं, उतने ही इनके भक्त भी दोषी हैं। स्मरण रहे कि गुरमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के वक्त उसके अंधभक्तों ने किस तरह फसाद खड़ा करके सरकारी कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया था। उसी तरह आशाराम के गिरफ्तार होने के बाद भी उसके अंधभक्तों की श्रद्धा उस पर से कम नहीं हुई है। सच है कि अंधभक्त सिर्फ नेताओं के ही नहीं बल्कि इन बाबाओं के भी है, जो इनके संरक्षण में अपनी जान तक न्‍योछावर करने से पीछे नहीं हटते है।

इसी अंधश्रद्धा का फायदा उठाकर ये ढोंगी बाबा और स्वयंभू साधु-संत व मौलाना गेरुए, काले व हरे वस्त्रों को धारण कर हर गलत काम को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहे। यही कारण है कि भारत में सड़क से लेकर बड़े-बड़े आलीशान आश्रमों में आस्था को अपने-अपने ढंग से बेचा और खरीदा जा रहा है। इन बाबाओं की शरण में जाने वाले अधिकतर लोग पढे-लिखे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि हमारी शिक्षा प्रणाली क्या इतनी सक्षम नहीं है कि गलत और सही का फर्क बता सके?

बाबाओं की संख्या भारत में तेज गति से बढ रही हैं। यहां के लोग तरह-तरह के बाबा बनकर लोगों को बाबा बना रहे हैं। एक ओर हमारा ज्ञान लज्जित हो रहा है, तो दूसरी ओर विज्ञान की धज्जियां उड़ रही हैं। चांद पर जाने वाला और बडे-बड़े उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला भारत अब तक इन ढोंगी और पाखंडी बाबाओं की दलदल से बाहर नहीं निकल पाया हैं? क्या इस तरह हम विकासशील से विकसित हो पाएंगे? क्या अब ये अज्ञान का अंधेरा नहीं हटना चाहिए?

यह भी सच है कि हर संत ऐसा नहीं हैं। लेकिन, आजकल सामने आ रहे कुछ ढोंगी बाबाओं और संतों के कारण इन सच्चे समाज सुधारक संतों को भी कलंकित होना पड़ रहा हैं। सोचनीय है कि हम किस समाज में जी रहे है? जहां अभी तक ईश्वर और अल्लाह की सही समझ लोगों नहीं है। जहां आज भी लोग ताबीज, रुद्राक्ष और मालाओं पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं। जहां आज भी औरतों को मासिक धर्म के दिनों में रसोई घर से बाहर रखा जाता हैं। कई मंदिरों और मस्जिदों में इनके प्रवेश पर रोक लगायी जाती हैं।

हाल के वर्षो में ऐसे कितने संत और बाबा हुए है, जिन्होंने राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर कोई सुधार व जन-जागृति का काम किया हो? केवल धर्म का हवाला देकर ये बाबा कभी हिन्दू को मुस्लिम से तो कभी मुस्लिम को ईसाई से लड़वाकर अशांति पैदा करते हुए पाये गए हैं। इनके आगे धर्म और मजहब की बलिहारी जनता सबकुछ तमाशबीन की तरह देखती आ रही है। चमत्कारी बाबाओं और भगवानों द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से प्रकाश में आती रही हैं और धन तो इनके पास दान का इतना आता है कि जिसे यह खुद भी नहीं गिन सकते।

इसके दोषी केवल यह बाबा, मुल्ला या भगवान नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान को पहचानने की गलती किया करता है। आज जरूरत है कि भारत में फैलते आडंबर और अंधविश्वास के लिए धार्मिक सुधार आंदोलन चलाने की। लोगों को आस्था और अंधश्रद्धा के बीच का अंतर बताने की। भाग्यवाद और नसीब के जगह कर्मवाद पर भरोसा करने की नसीहत दी जाएं। धर्म और ईश्वर के नाम पर लूटने व नारी अस्मिता के साथ खेलने वाले इन तथाकथित बाबाओं के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान किया जाए।

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