डॉ. चन्दर सोनाने
12 अक्टूबर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करते हुए सोशल मीडिया पर किए जाने वाले किसी भी कमेंट को मनमाने ढंग से आपत्तिजनक या भड़काऊ बताकर गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित, न्यायाधीश एस. रवीन्द्र भट्ट और न्यायाधीश अजय रस्तोगी की पीठ ने सभी राज्यों के गृह सचिव और डीजीपी को आईटी एक्ट की धारा 66 ए में किसी पर भी मुकदमा नहीं चलाने, एफआईआर दर्ज नहीं करने और संबंधित की गिरफ्तारी नहीं करने के आदेश दिए। उन्होंने एक्ट 66 ए में दर्ज सभी लंबित मामलों से भी धारा 66 ए हटाने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर उक्त निर्देश देते हुए यह भी कहा कि 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल मामले में 66 ए को अवैध घोषित कर दिया गया है और इसे अभिव्यक्ति की आजादी में मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया गया था फिर भी इस असंवैधानिक धारा में प्रकरण दर्ज होना चिंताजनक है।
उल्लेखनीय है कि धारा 66 ए को वर्ष 2015 में ही असंवैधानिक घोषित कर दिए जाने के बावजूद देश के 11 राज्यों में 1307 मामले दर्ज किए जा चुके है। जब ये धारा रद्द हुई थी उस समय 11 राज्यों में मात्र 229 प्रकरण ही दर्ज थे। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट के निर्देशां की अवहेलना करते हुए 11 राज्यों ने असंवैधानिक घोषित हो चुकने के बाद भी मनमाने तरीके से संबंधितों के विरुद्ध उक्त धारा में प्रकरण दर्ज कर लिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अत्यन्त नाराजगी व्यक्त करते हुए देश के सभी राज्यों के गृहसचिव और डीजीपी को यह निर्देश दिए कि वह देखें कि जो भी प्रकरण दर्ज कर लिए गए हैं उसमें से धारा 66 ए को तत्काल हटाया जाए। सभी राज्य यह सुनिश्चित करें कि अब कहीं पर भी आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत किसी के भी विरूद्ध प्रकरण दर्ज नहीं किए जाएं। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी आदेश दिए कि देश में किसी भी नागरिक के विरूद्ध आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत प्रकरण नहीं चलाया जाए। वर्तमान में इस एक्ट के तहत जो भी लंबित प्रकरण है, उसे भी समाप्त कर दिया जाए।
आई टी एक्ट की धारा 66 ए के निरस्त करने की भी एक कहानी है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के स्वर्गवास हो जाने के बाद मुम्बई का जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया था। इस संबंध में फेसबुक पर टिप्पणियाँ की गई थी और टिप्पणी करने वालों की उक्त धारा के अर्न्तगत गिरफ्तारी भी हुई। इसी मामले में एक छात्रा श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर आईटी एक्ट की धारा 66 ए को खत्म करने का अनुरोध किया। उसने बताया कि यह एक्ट और उसकी धारा अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात करती है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस रोहिंटन नरीमन की पीठ ने 24 मार्च 2015 को अपना ऐतिहासिक फैसला देते हुए आईटी एक्ट की धारा 66 ए को खत्म कर दिया था। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह कानून अभिव्यक्ति के अधिकारो का हनन करता है। एक कंटेंट जो किसी एक के लिए आपत्तिजनक होगा, दूसरे के लिए नहीं। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखते हुए कहा था कि इस धारा से लोगों के अधिकार सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। आईटी एक्ट की धारा 66 ए का दायरा काफी व्यापक है। ऐसे में कोई भी व्यक्ति इंटरनेट पर कुछ भी पोस्ट करने से डरेगा। इसलिए यह एक्ट अभिव्यक्ति की आजादी के लिए बाधक है।
अब यहाँ खास बात यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ही आईटी एक्ट की इस धारा 66 ए को निरस्त कर दिया था, तब पिछले सात साल से बिना डरे, बिना हिचके राज्य सरकारें बेघड़क इस एक्ट का दुरुपयोग कैसे कर रही थी? किसी भी राज्य की पुलिस को गैर संवैधानिक घोषित हो चुकी धारा के अर्न्तगत प्रकरण दर्ज करने और संबंधित को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है। इसके बावजूद अनेक राज्य सरकारें तानाशाह हो गईं और मनमाने तरीके से, जिसे वे अपने अनूकुल नहीं पाते थे, उनके विरूद्ध उक्त धारा के अन्तर्गत बेधड़क प्रकरण दर्ज कर लेती थीं।
ऐसा क्यों हुआ? किसने किया? सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि देश के उन राज्यों के मुख्य सचिव, डीजीपी और संबंधित पुलिस थाने के प्रभारी के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कराए कि उन्होंने असवैंधानिक घोषित हो चुकी धारा का दुरुपयोग करने की हिम्मत कैसे की? सीधा-सीधा यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। और इसीलिए राज्यों के उक्त अधिकारियों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का प्रकरण भी दर्ज किया जाना चाहिए, तभी निरंकुश हो चुके इन अधिकारियों पर लगाम कस सकेगी! अन्यथा ये अधिकारी राजनीतिक प्रश्रय पाकर, इसी प्रकार आगे भी सुप्रीम कोर्ट तक की अवहेलना करते रहेंगे।
(मध्यमत)
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