बेरसिया (भोपाल)/ अंधविश्वास के चलते राजधानी भोपाल की बेरसिया तहसील में पिछले माह दस साल के एक बच्चे की खसरे से मौत हो जाने के बाद उस इलाके में विशेष जागरूकता अभियान के साथ ही आसपास के जिलों में भी खसरे से प्रभावित बच्चों की पहचान का विशेष अभियान चलाया जा रहा है।
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार मामले की शुरुआत रावतपुरा गांव से हुई थी। यहां थानसिंह के दस वर्ष के बेटे राहुल सिंह को यह बीमारी हुई। 14 फरवरी 2016 को उसे बुखार आया और 18 फरवरी तक उसके शरीर पर दाने निकल आए। बाद में उस बच्चे की मौत हो गई।
लोगों से बातचीत के दौरान मालूम हुआ कि राहुल के दो भाई नीलेश और राकेश व बहन रीना भी इस बीमारी की चपेट में आए थे। माता पिता ने बताया कि अंधविश्वास के चलते उन्होंने बच्चों को हुई इस बीमारी की जानकारी किसी भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को नहीं दी। समझाइश के बाद उन्होंने माना कि यह उनकी बहुत बड़ी भूल थी जिसके चलते एक बच्चे को जान गंवानी पड़ी।
घटना के बाद स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम ने आसपास के गांवों में सघन जांच अभियान चलाया तो पता चला कि रावतपुरा में खसरे के 9, मजीदगढ़ में 11, देवपुरा और कोलूखेड़ी में चार-चार और खाताखेड़ी में एक केस रिपोर्ट हुआ है। इसके बाद सामुदायिक भागीदारी के जरिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से क्षेत्र के दो निजी स्कूलों पटेल विद्या निकेतन और विनायक विद्या निकेतन के अधिकारियों से बात की गई और उन्हें इस बात के लिए तैयार किया गया कि यदि भविष्य में ऐसी कोई घटना हो तो वे उसकी रिपोर्ट करें।
घटना के बाद खाताखेड़ी के सेकण्डरी हेल्थ सेंटर के अंतर्गत आने वाले गांवों में स्वास्थ्य विभाग की 6 टीमें भेजी गईं जिनमें से प्रत्येक टीम में एक डॉक्टर और दो एएनएम शामिल थीं। इन टीमों को सबसे पहले घर घर जाकर सर्वे में यह पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई कि पांच वर्ष तक के बच्चों में टीकाकरण की क्या स्थिति है। उन्हें टीका लगने से वंचित रह गए बच्चों की सूची तैयार करने और उन्हें सारे टीके लगाने का दायित्व दिया गया।
प्रारंभिक पड़ताल में स्वास्थ्य अमले की कुछ कमियां भी सामने आईं। जैसे- एएनएम घर घर जाकर सर्वे करने के दौरान जानकारी की निर्धारित सूची का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं, इलाकों में भेजे जाने वाले आइस-पैक का संधारण ठीक से नहीं किया जा रहा, टीके को रखने के लिए दिए गए विशेष कंटेनर भी इस्तेमाल नहीं किए जा रहे हैं, बॉयो मेडिकल कचरे के लिए निर्धारित अलग-अलग रंग के बैग भी संबंधित स्थानों पर नहीं दिखाई दिए, वेक्सीन वितरण का रिकार्ड भी ठीक तरह से नहीं रखा जा रहा है, जिसके कारण बड़ी मात्रा में वेक्सीन के बेकार होने की आशंका बनी रहती है, टीकाकरण के बाद किसी अनहोनी की स्थिति में एएनएम के पास हालात से निपटने का पर्याप्त ज्ञान नहीं है।
स्थिति से निपटने के लिए क्षेत्र के अमले को सलाह दी गई है कि खसरा फैलने वाले इलाकों में वायरस के फिर से पनपने के कम से कम दो चक्रों तक अतिरिक्त सावधानी बरतें, ये चक्र बच्चों के शरीर पर दाने उभरने के 28 दिन तक होते हैं। चूंकि प्रभावित गांव विदिशा और गुना जिलों की सीमा से लगे हैं, इसलिए स्वास्थ्य अमले से कहा गया है कि उन जिलों के सीमावर्ती विकासखंडों में भी खसरे के संभावित मामलों का पता लगाने का अभियान चलाया जाए। नजीराबाद सेक्टर में 6 सेकेण्डरी हेल्थ सेंटर हैं जिनमें से अधिकांश में आवश्यक स्वास्थ्य अमला मौजूद नहीं है। इसके लिए विभाग को आवश्यक कदम उठाने को कहा गया है।
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