राकेश दुबे
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पदस्थ एक बड़े अधिकरी मित्र ने अपने परिवार को भोपाल रहने भेज दिया है। उनके परिजनों को दिल्ली का मौसम रास नहीं आता है। सच बात है, इस वातावरण में दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र समेत कई राज्यों में प्रदूषण से फिर लोगों का दम घुटने लगा है। बीते मंगलवार को दिल्ली की आबोहवा में वायु की गुणवत्ता गंभीर स्थिति में जा पहुंची थी। सांस व अन्य गंभीर रोगों से जूझ रहे लोगों के लिये तो यह स्थिति जहरीली है ही, आम लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका घातक असर पड़ रहा है।
धुंध व धुएं की छायी परत से दृश्यता कम होने के चलते सड़क दुर्घटनाओं की भी आशंका तो बनी ही रहती है। इस प्रदूषण की मूल वजह पराली जलाना बताया जाता है। यूं तो पराली जलाने की घटनाएं अन्य राज्यों में भी हैं लेकिन दिल्ली के आसपास के कुछ राज्यों की स्थिति चिंता बढ़ाने वाली है। विडंबना यह है कि पराली प्रबंधन के विकल्पों पर तमाम बहसों व उपायों के बावजूद कोई कारगर समाधान नहीं निकला है। छोटे-छोटे मुद्दों पर आंदोलन छेड़ने वाले किसान इस बात पर संवेदनशील नहीं हैं कि वे कैसे दूसरों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि जो किसान पराली जला रहे हैं, वे अपने व परिवार के लोगों का भला कर रहे हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि वे लोगों के जीवन से किस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं। देश के किसान जिद व तल्खी के साथ पराली जला रहे हैं।
विडंबना देखिये कि अमेरिका में बैठे नासा के वैज्ञानिक बता रहे हैं कि किस बड़े पैमाने पर खेतों में आग जल रही है। मगर देश के राजनेताओं को यह नजर नहीं आता। वे अपने क्षुद्र राजनीतिक हितों के लिये पराली जलाने वालों को संरक्षण दे रहे हैं। विडंबना ये है कि किसान जानते हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। वे बड़ा वोट बैंक हैं। राजनेता उन्हें छुड़ाने आ जायेंगे। वहीं पराली की आग रोकने में लगे कृषि अधिकारियों की जान सांसत में फंसी है। उन्हें पराली जलाने वालों द्वारा बंधक बनाने की खबरें आ रही हैं। वहीं दूसरी ओर पराली जलाना न रोक पाने का ठीकरा उनके सिर फोड़ा जा रहा है, कई अधिकारी निलंबित किये गये हैं।
दिल्ली के पडोस में बसे पंजाब में इस साल पराली जलाने के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। बीते माह तक इस राज्य में पराली जलाने के 18 हजार मामले सामने आये, जबकि सिर्फ 2700 किसानों पर ही जुर्माना हुआ है। साथ ही जमीन की रेड एंट्री भी सिर्फ 537 की हुई है। इसके बावजूद पंजाब सरकार का इस वर्ष कम संख्या में पराली जलाने की घटनाओं का दावा है। वहीं दूसरी ओर बसे हरियाणा में इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में खासी कमी आई है। सरकार का दावा है कि अक्तूबर माह के अंत तक पराली जलाने के 1925 मामले सामने आए।
हरियाणा सरकार ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिये प्रति क्विंटल धान पर सौ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी है। यह राशि प्रति एकड़ तक एक हजार रुपये निर्धारित की गई है। वहीं पराली की गांठें बनाने पर प्रति क्विंटल पचास रुपये की राशि देय है। निस्संदेह, यदि सरकारें इस दिशा में गंभीर प्रयास करें और किसानों को सरल विकल्प व प्रोत्साहन राशि दें तो लाखों लोगों की जीवन डोर बचायी जा सकती है।
विडंबना है कि राज्य सरकारों की प्राथमिकता पर्यावरण संरक्षण की नहीं होती है। वे वोटों के लोभ में किसानों के गलत कामों पर आंख मूंद लेती हैं। दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक का 429 के गंभीर स्तर तक पहुंचना समस्या की भयावहता को दर्शाता है। जिसको लेकर राज्य सरकारों की जवाबदेही तय करने की जरूरत है कि क्यों वे किसानों को पराली जलाने से नहीं रोक पाते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ पराली जलाने से ही यह स्थिति खराब होती है। समाज में नागरिकों के गैरजिम्मेदार व्यवहार की भी इसमें भूमिका होती है। हमारा भोग-विलास की संस्कृति के प्रति आंख मूंद कर मोह जताना भी इसका एक अन्य कारण है।
वहीं सरकार द्वारा सार्वजनिक परिवहन को सुविधाजनक न बनाना भी सड़कों में अधिक पेट्रोल-डीजल वाहनों को बढ़ावा देता है। ऐसे में औद्योगिक इकाइयों के नियमन, निर्माण को नियंत्रित करने, ऑड-ईवन प्रणाली लागू करने तथा निजी वाहनों को हतोत्साहित करने जैसे विकल्पों पर विचार जरूरी है।
(मध्यमत)
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