हेमंत पाल
चौथी बार मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराजसिंह चौहान पहली बार इंदौर आए, तो किसी को ये अहसास नहीं होगा कि वे अपने पीछे एक बड़ा विवाद छोड़ जाएंगे। सांवेर विधानसभा के भाजपाइयों की बैठक में उन्होंने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराने को लेकर जो खुलासे किए, उससे कांग्रेस को नया मुद्दा मिल गया। लेकिन, इससे ये राजनीतिक संदेश भी स्पष्ट हो गया कि सांवेर भाजपा में तुलसी सिलावट की स्वीकार्यता आसान नहीं है। भाजपा में असंतोष का ही कारण है कि मुख्यमंत्री की बातें ऑडियो क्लिप में रिकॉर्ड होकर बाहर आ गईं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जिन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का पल्ला पकड़ा है, उनमें तुलसी सिलावट को अहम् कड़ी माना जाता है। लेकिन, वे पार्टी बदलकर आसानी से चुनाव जीत लेंगे, इस बात में शंका है। भाजपा में एक बड़ा धड़ा इस फैसले से असंतुष्ट है। वे लोग तुलसी सिलावट के पक्ष में वोट मांगने में झिझक भी रहे हैं। कुछ असंतुष्ट मुखर हैं, कुछ खामोश हैं। मुख्यमंत्री ने इन्हीं लोगों को समझाने के लिए ये बैठक बुलाई थी, जहाँ वे अपनी धुन में बहुत कुछ ऐसा बोल गए, जो विवाद बन गया और वो सारी बातें बाहर आ गईं।
ये असंतुष्ट नेताओं को समझाने का प्रयोजन ही था, इस बात की पुष्टि इससे होती है कि ऑडियो में एक जगह मुख्यमंत्री सावन सोनकर का भी जिक्र करते हैं। लेकिन, सावन (आवाज उन्हीं की लगती है) कहते हैं ‘मुझे आगर से चुनाव लड़वा दो।’ लेकिन, मुख्यमंत्री ने उनके इस प्रस्ताव पर कोई टिप्पणी नहीं की। इसका सीधा सा आशय है, कि सांवेर विधानसभा के उपचुनाव में सबकुछ सामान्य नहीं है। कुछ ऐसी खिचड़ी जरूर पक रही है, जो भाजपा का सिरदर्द है।
मुख्यमंत्री ने कई जगह कार्यकर्ताओं को समझाने वाली भाषा का उपयोग किया। ‘हमें तुलसी भाई को जिताना है’ ये वाक्य बार-बार बोला गया। उन्होंने ये भी कहा ‘ईमानदारी से बताओ तुलसी भाई यदि विधायक नहीं रहे तो क्या हम मुख्यमंत्री रहेंगे? भाजपा की सरकार बचेगी क्या? इसलिए आपकी ड्यूटी है कि आप लोग तुलसी सिलावट को जिताओ। क्योंकि, सांवेर से तुलसी भाई नहीं मैं खुद चुनाव लड़ रहा हूँ। ये पार्टी की आन-बान और शान का सवाल है।’
तुलसी सिलावट का बचाव करते हुए शिवराजसिंह का कहना था ‘आप बताओ ज्योतिरादित्य सिंधिया और तुलसी भाई के बिना सरकार गिर सकती थी क्या? … और कोई तरीका नहीं था। धोखा न तुलसी सिलावट ने दिया और न ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिया। धोखा कांग्रेस ने दिया।’
शिवराजसिंह ने कमलनाथ सरकार गिराने के पीछे जिस तरह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश की बात कही, वो भी मौजूद असंतुष्टों की नाराजी को ठंडा करने या शायद धमकाने के अंदाज में कही। वे इन कार्यकर्ताओं के सामने ये बात साफ़ कर देना चाहते थे, कि सरकार गिराने के लिए जो कुछ किया गया, उसके पीछे मेरा कोई निजी स्वार्थ नहीं था। … जो भी किया गया, वो सब दिल्ली के आदेश पर हुआ। लेकिन, मुख्यमंत्री की बातों से ये नाराजी दूर हुई होगी, इसमें संदेह है। क्योंकि, बैठक का ऑडियो क्लिप वायरल होना ही असंतोष का इशारा है।
ऑडियो क्लिप से इस बात का भी खुलासा होता है, कि शिवराजसिंह ने कांग्रेस से नाराज होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने की सच्चाई को पूरी तरह नकार दिया। उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि ‘’ये फैसला माननीय नरेंद्र भाई का माननीय अमित शाहजी और माननीय जेपी नड्डाजी का है … ये कोई तुलसी भाई का फैसला थोड़ी था।‘’
ये वे बातें हैं, जो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के उस दावे को ख़ारिज करती हैं कि मध्यप्रदेश की सरकार हमने नहीं गिराई। ये कांग्रेस की आपसी लड़ाई नतीजा है।
नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि ये समस्या हर उस सीट पर है, जहाँ से सिंधिया समर्थक उपचुनाव लड़ेंगे। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री को तो उन्हें इसी तरह समझाना होगा। दरअसल, असंतुष्टों को ऐसे ही समझाया जाता है। उन्हें ये नहीं लगना चाहिए कि इसके पीछे किसी का व्यक्तिगत स्वार्थ था, बल्कि केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर कमलनाथ सरकार को गिराया गया है।
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टीम मध्यमत