बहुत पुरानी लोकोक्ति है- लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहि चले कपूत, लीक छोड़ तीनों चलें, शायर-सिंह-सपूत।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इन दिनों नोटबंदी की समस्या से जूझ रहे हैं। कालेधन से लेकर कैशलेस इकानॉमी पर देश भर में बहस जारी है। प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के सांसदों से कह रहे हैं कि वे फील्ड में जाकर लोगों को नोटबंदी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के फायदे समझाएं। ऐसे में भाजपा का कोई नेता किसी अलग एजेंडा को अभियान के तौर पर शुरू करना तो दूर उसके बारे में सोचने से भी परहेज करेगा।
लेकिन अपनी अलग ही फितरत और जमीनी पकड़ के लिए पहचाने जाने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने नोटबंदी की इस सुनामी के बीच नर्मदा की लहरों पर सवार होकर अपनी राजनीतिक यात्रा को अलग ही आयाम देने का रास्ता चुना है। मुख्यमंत्री ने नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से 11 दिसंबर को नर्मदा सेवा यात्रा का अभियान शुरू किया। 11 मई, 2017 तक चलने वाले इस अभियान में नर्मदा को प्रदूषण मुक्त एवं सदानीरा बनाए रखने के सारे प्रयास किए जाएंगे। 3350 किमी की यह यात्रा इस अवधि में करीब 1100 गांवों से होकर गुजरेगी।
मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के 11 साल पूरे होने के दिन 29 नवंबर को इस यात्रा का ऐलान करते हुए कहा था कि नर्मदा मप्र की जीवन रेखा है। मैं नर्मदा मैया की गोद में ही पला हूं। नर्मदा का पानी घटना चिंता का विषय है। नर्मदा की जलधारा समृद्ध हो इसके लिए जंगलों को बचाना होगा। नर्मदा का संरक्षण कर उसे प्रदूषणमुक्त बनाना होगा। मुख्यमंत्री ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विशेष वक्तव्य देते हुए विपक्ष को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया था। उन्होंने कहा था कि यह राजनीति का विषय नहीं है। नर्मदा को बचाने की यह सेवा यात्रा पवित्र मन से होना चाहिए। नर्मदा अविरल बहती रहे, इसके लिये पूरे समाज को मिलकर उपाय करने होंगे।
देश और भाजपा के भीतर वर्तमान राजनीतिक माहौल में शिवराज का यह कदम न सिर्फ लीक से हटकर है,बल्कि उनके मिट्टी से जुड़े होने का भी संकेत देता है। हो सकता है लोग इस अभियान के दौरान नर्मदा की लहरों को राजनीतिक चौंसर पर भी बहता हुआ देखें लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा को बचाना समय की मांग है। नर्मदा सिर्फ नदी नहीं है। वह हमारे जल, जंगल और जमीन की पालनहार भी है।
पिछले कई सालों से नर्मदा को दोहन या शोषण का शिकार बनाया जा रहा है। दोहन चाहे पानी का हो या किनारे बिखरी रेत का। उसे नोचने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। कहीं बड़े बांधों के रूप में उसकी मुश्कें कसने के उपक्रम हुए तो कहीं उसकी धारा को मोड़कर उसे कमजोर किया गया। नदियां जीवनदायिनी होती हैं, लेकिन जब जीवनदात्री का जीवन ही संकट में पड़ जाए तो उस पर गंभीरता से विचार जरूरी है। इसलिए नर्मदा सेवा यात्रा सिर्फ मुख्यमंत्री या सरकार का नहीं बल्कि प्रदेश की जनता का अभियान बनना ही चाहिए।
आज नर्मदा की दुर्दशा का मुख्य कारण उसकी प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन और उसमें फैलाया जाने वाला प्रदूषण है। कहीं यह प्रदूषण शहरों के अपशिष्ट के रूप में मिल रहा है तो कहीं उद्योगों के घातक रसायनिक कचरे के रूप में। रेत के अंधाधुंध दोहन ने नदी के किनारों को ही नहीं बल्कि उसकी छाती को भी छील डाला है। धार्मिक कर्मकांड भी नर्मदा की कोई कम दुर्दशा नहीं कर रहे। किनारे के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने इस सदानीरा, पुण्यसलिला के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है। नर्मदा सेवा यात्रा जैसे अभियान और कुछ न कर सकें तो कम से कम इस नदी की दुर्दशा के बारे में लोगों को जागरूक ही कर दें।
वैसे नर्मदा के साथ जो हो रहा है वह न तो आज का संकट है और न ही किसी से छिपा है। नर्मदा से यह खिलवाड़ कई दशकों से जारी है। चाहे किसी भी दल का शासन रहा हो, प्रदेश का राजनीतिक व प्रशासनिक नेतृत्व नर्मदा की दुर्दशा और उस पर मंडरा रहे अस्तित्व के खतरे से वाकिफ रहा है। यदि हम आज यह कहते हैं कि नर्मदा किनारे के पेड़ कट रहे हैं, अवैध उत्खनन हो रहा है, तो यह काम कौन लोग कर रहे हैं और इस काम से किनके घर भर रहे हैं, वह सबको पता है। जरूरत इस बात की है कि केवल भाषणों,सेमिनारों, व्याख्यानों और चूनर से लेकर परिक्रमा तक की तमाम यात्राओं के बजाय उन दोषियों पर प्रभावी कार्रवाई करने का अभियान चले।
मुख्यमंत्री ने बिलकुल सही कहा है कि नर्मदा किसी एक राजनीतिक दल की नहीं है वह पूरे समाज की है। इस अभियान की सार्थकता इसी में है कि यह वास्तविक रूप में अराजनीतिक व जन अभियान बने।
यात्रा के दौरान दिखावटी आयोजनों के बजाय जनता से उन लोगों के नाम भी सार्वजनिक रूप से बताने को कहा जाए जो नर्मदा को खत्म करने पर तुले हैं। यात्रा के बहाने यदि नर्मदा को नष्ट करने वाले लोगों,संस्थाओं, उद्योगों का एक पब्लिक डोजियर तैयार हो जाए तो वह सचमुच सार्थक काम होगा। वह डोजियर हर बार, हर सरकार को आईना दिखाता रहेगा कि केवल नर्मदा को बचाने का जबानी संकल्प लेने से ही काम नहीं चलेगा, हमें उन हाथों को तोड़ना होगा जो इस मां की छाती को सुखा देना चाहते हैं। फिर चाहे वे हाथ इंसानी हों या मशीनी।