शिवराज सिंह चौहान

कोई भी बच्चा अपनी प्रतिभा, क्षमता और मेधा का बेहतर प्रकटीकरण मातृभाषा में शिक्षा से ही कर सकता है। वह जन्म लेते ही मातृभाषा को सहज ही सीखता है, उसी में सोचता है और समझता है। अधिकांश प्रतिभावान बच्चे अंग्रेजी न समझ पाने के कारण पीछे रह जाते हैं और उनकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है। बच्चों के स्वाभाविक विकास के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने मातृभाषा में प्राथमिक और उच्च शिक्षा देने का हमें संकल्प दिया है। उनके संकल्प की सिद्धि के लिए हम देश में पहली बार मध्यप्रदेश में हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं।

हिंदी में पढ़ने के लिए पाठ्यक्रम अनुसार पुस्तकें तैयार की गई हैं। आज केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी मेडिकल की हिंदी में लिखी पुस्तकों का लोकार्पण करेंगे। यह चिकित्सा शिक्षा, मध्यप्रदेश, देश और हिंदी के लिये सुखद संयोग और गौरव का अवसर है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव आयोजन के समय में हम स्वत्व और स्वाभिमान की प्रतीक अपनी मातृभाषा हिंदी में शिक्षा को नया आयाम दे रहे हैं।

सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा है कि आधुनिक शिक्षा शास्त्र भी बताता है कि प्रारम्भिक शिक्षा यदि मातृभाषा में हो तो आगे की शिक्षा में आसानी होती है। ऐसा प्रमाण है कि जिनकी शिक्षा मातृभाषा में हुई है वे उच्च पदों पर कार्य कर रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में तैयार हुई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, मातृभाषा में अध्ययन और अध्यापन पर विशेष ज़ोर दिया गया है। यह सच्चे अर्थों में ज्ञान, कौशल और संस्कार का त्रिवेणी संगम है। इसमें भारतीय ज्ञान, दर्शन, परंपरा को पढ़ाई के माध्यम से नई पीढ़ियों को सौंपना है। इस शिक्षा नीति ने हिंदी माध्यम में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का आत्मविश्वास बढ़ाया है और उनमें नई ऊर्जा का संचार किया है। मुझे संतोष है कि मध्यप्रदेश में हो रही यह शैक्षणिक, सामाजिक क्रांति अंग्रेजी भाषा की जटिलता को दूर करने में सफल होगी।

   हमारे मार्गदर्शक, चिंतक, ऋषि-राजनेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था, “भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं है बल्कि वह स्वयं ही एक अभिव्यक्ति है, इसलिए शिक्षा का माध्यम स्व-भाषा ही हो सकता है।” उनका मानना था कि अपनी भाषा में ही अपना और राष्ट्र का संपूर्ण विकास संभव है। इतिहास साक्षी है कि विश्व में चीन, जापान, फ्रांस, रूस, जर्मनी जैसे विकसित देशों ने अपनी भाषा में ही शिक्षा से विकास की ऊंचाइयों को प्राप्त किया है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था कि मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बन सका, क्योंकि मैंने शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की थी।

   सुप्रसिद्ध लेखक श्री धर्मपाल जी ने अपनी पुस्तक रमणीय वृक्ष में लिखा है कि, “पहले हर गांव में पाठशाला, चार सौ लोगों पर एक विद्यालय और लाखों की संख्या में प्राथमिक विद्यालय थे। तब राजस्व के ख़र्च में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दी जाती थी।” भारतीय शिक्षा पद्धति के स्थान पर लादी गई विदेशी शिक्षा का भारत में ऐसा प्रभाव पड़ा कि साक्षरता समाप्त होने के साथ सामाजिक संतुलन भी बिगड़ गया। इस विसंगति की शुरुआत मैकाले ने अपनी शिक्षा पद्धति को लागू करके की थी। मैकाले की शिक्षा पद्धति के उद्देश्य को ट्रेवेलियन ने 1853 की पार्लियामेंट कमेटी में प्रस्तुत किया, जिसे पंडित सुंदरलाल जी ने भारत में अंगरेज़ी राज पुस्तक में लिखा है, “भारतवासियों को अंग्रेजी शिक्षा देना इस देश में अंग्रेजी साम्राज्य को चिर-स्थाई बनाने के लिये ज़रूरी है।”

   इस बात को स्पष्ट करते हुए गांधी जी ने ‘भारत का भविष्य’ विषय पर अपने वक्तव्य में कहा था कि, “अंग्रेजों ने योजनाबद्ध तरीक़े से परंपरागत भारतीय शिक्षा पद्धति को नष्ट करके भारत की साक्षरता का भी विनाश किया।” पहले शिक्षा से समाज निर्माण की जो कड़ी थी वह टूट गई, इसे जोड़ने के लिये शिक्षा के क्षेत्र में एक पुनर्निर्माण की आवश्यकता थी। हमारे प्रधानमंत्री जी ने इसी कड़ी को जोड़ने का प्रयत्न किया है, जिसे पहली बार चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में धरातल पर मध्यप्रदेश में उतारा जा रहा है।  

   मातृभाषा में पढ़ने का सबसे बड़ा लाभ प्रदेश के ग़रीब वर्ग को, गांव-कस्बों में रहने वाले छात्रों, जनजातीय बेटे-बेटियों को मिलेगा। मातृभाषा में पढ़ने से उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा, उनके सामर्थ्य और प्रतिभा के साथ न्याय होगा। प्रदेश की यही प्रतिभाएं नये और आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाएंगी। मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में जब मातृभाषा में की गई पढ़ाई के अभूतपूर्व परिणाम सामने आयेंगे तब हमारा प्रदेश एक नए युग का निर्माण करेगा और हम स्वाधीनता के अमृत संकल्पों को प्राप्त करने में सफल होंगे।

   मुझे उम्मीद है कि मध्यप्रदेश में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में हुई इस पहल की अनुगूंज पूरे देश में होगी। हमारा यह प्रयास मातृभाषा की प्रतिष्ठा को स्थापित करेगा और बदलाव लाने में सफल होगा।  

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय के सूल।।

   भारतीय नवजागरण के कवि भारतेंदु हरिशचंद्र जी की इन पंक्तियों के साथ आइये हम अपनी भाषा में अध्ययन और इसके प्रयोग से ज्ञान प्राप्ति का, उन्नति का, विकास का और नव राष्ट्र के निर्माण का संकल्प लें।   

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