कभी कभी तो समझ में ही नहीं आता कि संचार माध्यमों और संचार के तौर तरीकों के विकास के साथ-साथ हम आधुनिक हो रहे हैं या और अधिक आदिम होते जा रहे हैं। मानव सभ्यता के विकास में वह समय सर्वाधिक क्रांतिकारी रहा होगा जब मनुष्य ने संचार और संवाद के लिए भाषा का आविष्कार किया। वैसे भाषा विज्ञानी आज तक इस बात पर एकराय नहीं हो पाए हैं या इसका कोई एक सर्वमान्य सिद्धांत नहीं खोजा जा सका है कि भाषा का विकास कैसे हुआ?
लेकिन भाषा के विकास के लिए जो अलग-अलग सिद्धांत बताए जाते हैं उनमें एक बात यह भी है कि परस्पर संपर्क के लिए भाषा को माध्यम बनाने से पहले मनुष्यों के बीच संकेतों में ही इस तरह का संवाद होता रहा होगा। ठीक वैसा ही जैसा हम मूक बधिरों के बीच होने वाले संवाद को आज देखते हैं। वे उंगलियों के चपल संचालन और चेहरे की मुद्राओं और हावभाव से अपनी बात कह लेते हैं।
लिपि का विकास भी बहुत कुछ इसी तरह हुआ होगा। अक्षर बनाने से पहले मनुष्य ने चित्र बनाए होंगे और उन चित्रों के विषय अपने आसपास के जीव जंतुओं और प्रकृति से लिए होंगे। जैसे कि हमें आदिमानव द्वारा बनाए गए शैलचित्रों में दिखाई भी देते हैं। चित्रों ने हमारी लिपि को कैसे प्रभावित किया इसके उदाहरण के रूप में चीनी भाषा और मिस्र की चित्रलिपि को लिया जा सकता है।
भाषा और लिपि की यह बात इसलिए याद आई क्योंकि दोनों की हजारों वर्ष के इतिहास की धरोहर होने के बावजूद आज 21वीं सदी में एक बार फिर ‘संकेत भाषा’ का महत्व स्थापित हो रहा है। वाक्य ‘संकेत-शब्दों’ में बदल रहे हैं और शब्द ‘संकेत-छवियों’ (इमोजी) में। नई पीढ़ी को शब्दों और वाक्यों के बजाय संकेतों और संकेत छवियों में संवाद करना ज्यादा सुविधाजनक लग रहा है।
नई पीढ़ी की यह रुचि इतनी तेजी से विस्तार पा रही है कि ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को कोर्स में अब ‘इमोजी’ भी पढ़ाने का फैसला किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक किंग्स कॉलेज, एडिनबर्ग और कार्डिफ समेत सभी यूनिवर्सिटी के भाषा, मार्केटिंग, मनोविज्ञान और राजनीति के पाठ्यक्रम में इमोजी और कार्टून को शामिल किया गया है।
भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अब दुनिया भर में शब्दों से ज्यादा ‘इमोजी’ का इस्तेमाल होने लगा है। खासकर सोशल मीडिया पर तो इनकी बाढ़ आई हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ‘इमोजी’ अब भविष्य की भाषा बनने जा रहे हैं। लोग अब शब्दों का चयन कम कर रहे हैं और ‘इमोजी’ के माध्यम से भावनाओं का इजहार ज्यादा कर रहे हैं। दुनिया भर में इस समय 3000 से ज्यादा इमोजी प्रचलित हैं और 90 करोड़ लोग रोज किसी न किसी रूप में इमोजी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
ब्रिटेन की ओपन यूनिवर्सिटी में भाषा विभाग के प्रमुख डॉ. फिलिप सार्जेंट का कहना है कि इमोजी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग अब शोक जताने के लिए भी इमोजी का इस्तेमाल करने लगे हैं। पिछले दिनों जिम्बाब्वे के लोकप्रिय नेता राबर्ट मुगाबे के निधन पर उनके बेटे ने इमोजी पोस्ट की थी। 10 साल पहले सिर्फ 625 इमोजी प्रचलन में थी और अब तीन हजार से ज्यादा हैं।
एक सर्वे के मुताबिक, भारत के यूजर्स 5 इमोजी का सबसे ज्यादा प्रयोग करते हैं। इनमें खुशी के आंसू, आंखों में दिल के साथ मुस्कुराता चेहरा, नमस्कार, खुशी और दिल के इमोजी हैं। फेसबुक पर लोग 2300 और वॉट्सएप पर 2500 इमोजी का इस्तेमाल करते हैं। 2015 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ‘वर्ड ऑफ द इयर’ के लिए किसी शब्द को चुनने के बजाय ‘फेस विथ टिअर्स ऑफ जॉय’ वाले इमोजी को डिक्शनरी में स्थान दिया था। और अब तो 17 जुलाई का दिन विश्व ‘इमोजी-डे’ के रूप में मनाया जाने लगा है।
आलम यह है कि कुछ समय पहले खबर आई थी कि एक छात्रा ने परीक्षा में अपने सारे जवाब एसएमएस की सांकेतिक भाषा में लिख डाले। ऐसा ही एक प्रसंग मुझे अपने एक पत्रकार मित्र से सुनने को मिला था जब उन्होंने बताया था कि एक घोटाले की जांच को लेकर जब उन्होंने जांच एजेंसी के अधिकारी से मामला दर्ज होने की पुष्टि करवानी चाही तो अधिकारी ने फोन नहीं उठाया। बाद में यही प्रश्न वाट्सएप पर संदेश के रूप में भेजा गया तो उसका भी जवाब अधिकारी ने शब्दों यानी टैक्स्ट में न देकर ‘थम्सअप’ वाली इमोजी भेजकर दिया।
अकसर देखा जा रहा है कि सरकारी अधिकारी या राजनेता संवाद के दौरान ऐसे संकेत शब्दों या इमोजी को किसी झंझट से बचने या अपनी बात रिकार्ड पर दर्ज होने से बचाने के लिए भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका एक फायदा यह भी है कि आपकी बात या भावना संप्रेषित भी हो जाती है और सामने वाला यह दावा भी नहीं कर सकता कि आपने कहा क्या है। कुछ इमोजी के तो घोषित अर्थ हैं, लेकिन अब तो लोगों ने इन्हें ‘कूट संदेशों’ के रूप में इस्तेमाल करना भी शुरू कर दिया है। यानी देखने में तो इमोजी का अर्थ कुछ और लगेगा लेकिन जिसे वह संदेश भेजा जा रहा है उसके लिए उसका कोई और ही अर्थ होगा।
कुल मिलाकर हमारे भाषा और लिपि दोनों के संस्कार तेजी से बदल रहे हैं। एक दृष्टि से यह भाषा और लिपि दोनों के लिए खतरा भी है। हिन्दी की ही बात करें तो सोशल मीडिया पर अधिकांश लोग उसे रोमन में टाइप करते हैं और संबंधित ऐप उसे हिन्दी में ‘कन्वर्ट’ कर देता है। इस तरह बच्चे देवनागरी के अक्षरों को लिखना भूलते जा रहे हैं। लेकिन चूंकि नई पीढ़ी इस तरीके को तेजी से अपना रही है और धड़ल्ले से इस्तेमाल भी कर रही है इसलिए कहना मुश्किल है कि भाषा और लिपि पर मंडरा रहे इसके खतरे को रोक पाना कितना संभव हो पाएगा।
वैसे आप भाषा और लिपि की इस चिंता पर अपनी प्रतिक्रिया शब्दों में देना चाहेंगे या फिर कोई इमोजी भेजकर…?