लगता है ट्रंप को ‘बंदर का न्‍याय’ कहानी बहुत पसंद है

सज्‍जनो, बड़ी पुरानी कहावत है कि न तो घोड़े के आगे खड़ा होना अच्‍छा है और न ही उसके पीछे। कालांतर में यह कहावत नौकरशाही में आकर कुछ यूं बदल गई कि अफसर के न आगे खड़े रहो न पीछे… बाद में लोगों ने अपने-अपने अनुभवों के हिसाब से इस कहावत का विस्‍तार किया और यह कई लोगों, वर्गों और समूहों पर लागू होते हुए नाना रूपों में प्रचलित हुई…

यह बात मैंने इसलिए कही क्‍योंकि आज जिस विषय पर मैं बात करने जा रहा हूं, वह इतने बड़े लोगों की बात है कि उन पर बात करना तो दूर सोचने के लिए भी औकात लगती है। फिर भी जोखिम उठाते हुए मैं बात करने का साहस जुटा रहा हूं। इस बात के एक छोर पर दुनिया के महाबली डोनाल्‍ड ट्रंप हैं तो दूसरे छोर पर भारत के महाबली नरेंद्र मोदी। और जब दो महाबलियों का मामला हो तो, कायदा यही कहता है कि या तो आप इनके लिए लगाई गई बल्लियों से दूर रहें या फिर किसी भी तरह की टूट फूट के लिए स्‍वयं जिम्‍मेदार हों।

दरअसल यह किस्‍सा सोमवार रात को टीवी न्‍यूज चैनलों पर एक ब्रेकिंग न्‍यूज से शुरू हुआ था और मंगलवार का दिन चढ़ते-चढ़ते इसने भारत और अमेरिका के राजनीतिक और कूटनीतिक पारे को आसमान पर चढ़ा दिया। अपने बड़बोलेपन के लिए कुख्‍यात राष्‍ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका दौरे पर पहुंचे पाकिस्‍तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात के बाद मीडिया कॉन्‍फ्रेंस के दौरान यह कह डाला कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनसे कश्‍मीर मसला सुलझाने में मध्‍यस्‍थता करने की गुहार लगा चुके हैं और इस मसले पर मध्‍यस्‍थ बनकर उन्‍हें खुशी होगी।

ट्रंप के इस बयान से पाकिस्‍तान को तो मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई। चारों तरफ से आलोचना और मायूसी भरी खबरों के वार झेल रहे इमरान की झोली में यह बयान खुदा की नेमत की तरह आ गिरा। उन्‍होंने ट्रंप के इस बयान का उसी तर्ज पर शुक्रिया अदा किया जैसे कोई भिखारी वांछित भीख मिल जाने पर कहता है- तुझ पर खुदा की नेमत बरसे, तेरे बच्‍चे जिएं…

यह बात अलग है कि भारत ने यह बयान सुर्खियों में आने के तत्‍काल बाद, सोमवार रात ही साफ कर दिया कि न तो नरेंद्र मोदी ने ट्रंप को कभी कश्‍मीर मामले में मध्‍यस्‍थता करने का न्‍योता दिया और न ही इस मामले को लेकर भारत की विदेश नीति में कोई बदलाव हुआ है। हम कश्‍मीर को द्विपक्षीय मसला मानते हैं और इसमें किसी भी तीसरे पक्ष के दखल की कोई गुंजाइश नहीं है।
तब से लेकर अब तक ट्रंप को झूठा, दगाबाज, बड़बोला बताने वाले कई बयान आ चुके हैं। मंगलवार को संसद से लेकर भारतीय राजनीति के गलियारे तक इसी मसले पर अलग-अलग मिजाज वाले बयानों से आबाद रहे। मीडिया की तो मानो लॉटरी ही लग गई। उसने तरह-तरह के एंगल और एंकरों की मदद से इसे पूरे दिन घसीटा।

मैं जब इस प्रसंग को लेकर ट्रंप, उनके स्‍वभाव और उनकी राजनीति को लेकर खबरें टटोल रहा था तभी एक मित्र से बातचीत के दौरान बहुत ही दिलचस्‍प किस्‍सा सामने आया। आज आप वह किस्‍सा सुनिये और उससे ट्रंप की फितरत का अंदाज लगाइये। एक बहुत दिलचस्‍प संयोग यह है कि ताजा प्रसंग में भी मध्‍यस्‍थता शब्‍द का अहम रोल है और उस किस्‍से में भी मध्‍यस्‍थताशब्‍द का अहम रोल था।

आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका का राष्‍ट्रपति बनने से पहले डोनाल्‍ड ट्रंप भारतीय अदालतों के चक्‍कर में फंस गए थे। यहां दायर एक मुकदमे को लेकर उनके वकीलों को लंबे समय तक कोर्ट के फेरे लगाने पड़े थे और बाद में कोर्ट के निर्देश पर दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से मध्‍यस्‍थता पैनलके सामने यह मामला सुलझाया था।

किस्‍सा यह है कि भारत के कोटक महिन्‍द्रा बैंक ने अप्रैल 2008 में अपने क्रेडिट कार्ड लांच करने का ऐलान किया था। कोटक महिन्‍द्रा बैंक के एमडी उदय कोटक ने मीडिया को बताया था कि उनका ग्रुप ट्रंपऔर फॉरचून गोल्‍ड के अलावा लीग प्‍लेटिनमऔर रॉयल सिग्‍नेचरनाम से वीजा क्रेडिट कार्ड की श्रृंखला लेकर आ रहा है। ट्रंप क्रेडिट कार्ड धारकों को सिनेमा हॉल और रेस्‍टारेंट में खर्च की गई राशि पर साल भर 10 फीसदी कैशबैक की सुविधा दी गई थी।

इन कार्ड्स के सुर्खियों में आने के बाद अमेरिका में डोनाल्‍ड ट्रंप के व्‍यापार समूह की ओर से दिल्‍ली हाईकोर्ट में एक मुकदमा दायर कर आरोप लगाया गया कि यह ट्रंप नाम के ट्रेडमार्क के उल्‍लंघन का मामला है। इतना ही नहीं ट्रंप की ओर से इस कार्ड पर पाबंदी लगाने के साथ-साथ मुआवजे के रूप में भारी राशि की मांग भी की गई थी। कोर्ट ने पहली नजर में कोटक महिंद्रा को ट्रंप नाम के इस्‍तेमाल से रोकने का अनुरोध नामंजूर कर दिया था। मामला लंबे समय तक कोर्ट में चला और कई जजों ने इसकी सुनवाई की।

इधर मामला खिंचता ही जा रहा था, इसी बीच पता नहीं क्‍या हुआ कि ट्रंप समूह और कोटक महिंद्रा दोनों ने अर्जी लगाई कि वे आपसी सहमति के आधार पर मामला सुलझाना चाहते हैं। कोर्ट ने इस पर एक मध्‍यस्‍थ की नियुक्ति की और मामला हाईकोर्ट के मध्‍यस्‍थता प्रकोष्‍ठ को सौंप दिया गया। रिकार्ड बताता है कि मध्‍यस्‍थता पैनल के सामने भी कोई नतीजा नहीं निकला। इसका प्रमुख कारण यह था कि सुनवाई के दौरान ट्रंप खुद मौजूद नहीं थे और टेलीकान्‍फ्रेंसिंग की पेशकश करने पर भी वे सुनवाई में शामिल नहीं हुए।

जब हल नहीं निकला तो मामला फिर से हाईकोर्ट की पीठ के समक्ष पहुंचा। कोर्ट ने अगस्‍त 2013 में दोनों पक्षों को चेतावनी दी कि यदि अक्‍टूबर तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे तो कोर्ट अपने हिसाब से मामले को आगे बढ़ाएगा। अंत में अक्‍टूबर 2013 में दोनों पक्षों में समझौते पर सहमति बनी और कोटक महिन्‍द्रा बैंक ने ट्रंप कार्ड को बंद करते हुए नए नाम से कार्ड जारी किया। (यह किस्‍सा टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने ट्रंप के राष्‍ट्रपति बनने से पहले 8 नवंबर 2016 को प्रकाशित भी किया था।)

इस किस्‍से से आप ट्रंप और उनके काम करने के तरीके का अंदाज लगा सकते हैं। साफ है कि वे मूलत: कारोबारी हैं और इसीलिए उनकी राजनीति का अंदाज भी आक्रामक कारोबारी की तरह ही है। करीब दस साल पहले ट्रंप एक कारोबारी की हैसियत से भारत में मध्‍यस्‍थता प्रक्रिया से गुजरे थे और आज वे भारत और पाकिस्‍तान के बीच मध्‍यस्‍थता की पेशकश कर रहे हैं। लगता है ट्रंप को बंदर का न्‍याय वाली कहानी बहुत पसंद है…

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